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Geography (भूगोल): June 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

हिंद महासागर द्विध्रुव

भारतीय मानसून की अनियमितता का संबंध हिंद महासागर द्विध्रुव से भी है। आस्ट्रेलियाई मौसम विज्ञान ब्यूरो के अनुसार भारत के दक्षिण-पश्चिम मानसून में होने वाली देरी आस्ट्रेलिया के ग्रीष्मकालीन मानसून को भी प्रभावित करती है। इससे पता चलता है कि किस प्रकार कोई ‘विशेष जलवायु घटना’ राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भौगोलिक रूप से अपना प्रभाव छोड़ती है।

  • सामान्यतः पृथ्वी की स्थलीय एवं समुद्री सतह के तापांतर को मानसूनी प्रणाली का मूल संचालक माना जाता है।

क्या है IOD?

  • IOD समुद्री सतह के तापमान का एक अनियमित दोलन है,  जिसमें पश्चिमी हिंद महासागर की सतह का तापमान पूर्वी हिंद महासागर की तुलना में क्रमिक रूप से कम एवं अधिक होता रहता है।
  • हिंद महासागर द्विधुव (IOD) को भारतीय नीनो भी कहा जाता है।
  • सरल शब्दों में कहें तो, पश्चिमी हिंदी महासागर का पूर्वी हिंद महासागर की तुलना में बारी-बारी से गर्म व ठंडा होना ही हिंद महासागर द्विध्रुव कहलाता है।
  • हिंद महासागर द्विध्रुव भारतीय मानसून को सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार से प्रभावित करता है।
  • हिंद महासागर द्विध्रुव भारतीय मानसून के साथ-साथ आस्ट्रेलिया के ग्रीष्मकालीन मानसून को भी प्रभावित करता है।

हिंद महासागर द्विध्रुव के प्रकार

भारतीय मानसून पर प्रभाव के आधार पर IOD के तीन प्रकार हैं।

(i) तटस्थ/ सामान्य IOD: 

  • तटस्थ IOD में पूर्वी हिंद महासागर में आस्ट्रेलिया के उत्तर-पश्चिमी तट के पास प्रशांत महासागर से गर्म जल के प्रवाह के कारण पूर्वी हिंद महासागर की समुद्री सतह का तापमान सामान्य से थोड़ा बढ़ जाता है। 
  • वस्तुतः पूर्वी हिंद महासागर में सामान्य से थोड़ा अधिक वर्षा होती है।
  • तटस्थ (Neature) IOD लगभग सामान्य मानसून की तरह होता है।

(ii) नकारात्मक IOD:

  • जब पूर्वी हिंद महासागर का तापमान पश्चिमी हिंद महासागर की तुलना में सामान्य से बहुत अधिक हो जाता है।
  • वस्तुतः लगातार लंबे समय तक प्रशांत महासागर से पूर्वी हिंद महासागर में गर्म जल के प्रवाह से पूर्वी हिंद महासागर के तापमान में अधिक वृद्धि हो जाती है।

(iii) सकारात्मक IOD:

  • जब पश्चिमी हिंद महासागर पूर्वी हिंद महासागर की तुलना में बहुत अधिक गर्म हो जाता है, इसे सकारात्मक IOD कहते हैं।

IOD  का भारतीय मानसून पर प्रभाव

  • तटस्थ IOD का प्रभाव लगभग नगण्य रहता है।
    • इससे पूर्वी हिंद महासागर व आस्ट्रेलिया का उत्तर पश्चिमी भाग थोड़ी अधिक (सामान्य से) वर्षा प्राप्त करता है।
  • नकारात्मक IOD का प्रभाव भारतीय मानसून पर नकारात्मक पड़ता है।
    • इससे भारतीय मानसून कमजोर पड़ वर्षा की तीव्रता में कमी आती है।
    • ‘हॉर्न ऑफ अफ्रीका’ व पश्चिमी हिंद महासागर में अत्यधिक कम वर्षा होती है।
    • जबकि इसके विपरीत पूर्वी हिंद महासागर व आस्ट्रेलिया के उत्तर-पश्चिमी भाग में अधिक वर्षा होती है।
    • इसके कारण भारत में सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • सकारात्मक IOD का भारतीय मानसून पर (वर्षा पर) सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
    • इससे भारतीय उपमहाद्वीप व पश्चिमी हिंद महासागर अपेक्षाकृत अधिक वर्षा प्राप्त करते हैं।
    • सकारात्मक IOD में जहाँ भारतीय उपमहाद्वीप व पश्चिमी हिंद महासागर औसत से अधिक वर्षो प्राप्त करता है। वहीं उत्तर पश्चिमी आस्ट्रेलिया व पूर्वी हिंद महासागर औसत से कम वर्षा प्राप्त करता है।
  • इसके कारण आस्ट्रेलिया में सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है।

लद्दाख में प्राचीन जलवायु रहस्य का अनावरण

चर्चा में क्यों?  

वैज्ञानिकों ने लगभग 19.6 से 6.1 हज़ार वर्ष पहले अंतिम विहिमनदन अवधि के दौरान जलवायु परिवर्तन को समझने में महत्त्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की है।

  • लद्दाख में सिंधु नदी घाटी में प्राचीन झीलों से तलछट जमाव का अध्ययन करके वैज्ञानिकों ने जलवायु रिकॉर्ड का पुनर्निर्माण किया है तथा इस क्षेत्र के जलवायु इतिहास पर प्रकाश डाला है।

शोध के प्रमुख निष्कर्ष

  • अनुसंधान क्रियाविधि
    • वैज्ञानिकों ने सिंधु नदी के किनारे 3287 मीटर की ऊँचाई पर पाई गई 18 मीटर मोटी तलछट जमाव के नमूने लिये
    • शोधकर्त्ताओं ने रंगबनावटकण का आकारकण की संरचनाकुल ऑर्गेनिक कार्बन और चुंबकीय मापदंडों जैसी भौतिक विशेषताओं की जाँच करते हुए नमूनों का सावधानीपूर्वक प्रयोगशाला में गहन विश्लेषण किया।
    • इन मापदंडों का उपयोग पैलियोलेक तलछट जमाव से पिछली जलवायु स्थितियों के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिये किया गया था।
  • जलवायु विकास से संबंधित प्रमुख निष्कर्ष:
    • 19.6 से 11.1 हज़ार वर्ष पहले के बीच पश्चिमी परिसंचरण के प्रभाव के कारण ठंडी शुष्क जलवायु इस क्षेत्र पर हावी थी
    • 11.1 से 7.5 हज़ार वर्ष पहले मानसूनी दबाव जलवायु का प्राथमिक चालक बन गया जिस कारण मानसून की एक मज़बूत अवधि देखी गई।
    • बाद में कक्षीय रूप से नियंत्रित सौर आतपन ने इंटर ट्रॉपिकल कन्वर्ज़ेंस ज़ोन (ITCZ) की स्थिति और वायुमंडलीय परिसंचरण की परिवर्तनशीलता को प्रभावित करके जलवायु को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • मध्य-होलोसीन (7.5 से 6.1 हजार वर्ष पूर्व) के दौरान पछुआ हवाओं ने ताकत हासिल कर ली, जो घटते सूर्यातप, कमज़ोर मानसून और अल नीनो गतिविधियों में वृद्धि के साथ मेल खाता था।
    • यह अध्ययन उच्च रेज़ोल्यूशन और सटीकता के साथ पुरातन जलवायु विविधताओं (पृथ्वी की जलवायु में अतीत में होने वाले भू-वैज्ञानिक परिवर्तन) के पुनर्निर्माण के लिये तलछट के विविध भौतिक मापदंडों का उपयोग करने की क्षमता को भी प्रदर्शित करता है।

जलवायु अनुसंधान में लद्दाख का महत्त्व

  • उच्च ऊँचाई वाला वातावरण: ट्रांस-हिमालय में स्थित लद्दाख क्षेत्र उत्तरी अटलांटिक और मानसून बलों के बीच एक पर्यावरणीय सीमा के रूप में कार्य करता है।
    • यह क्षेत्र अत्यधिक तापमानकम ऑक्सीजन स्तर और शुष्क परिस्थितियों की विशेषता है।
    • जलवायु की गतिशीलता और ऐसे उच्च ऊँचाई वाले वातावरण में परिवर्तन का अध्ययन करने से वैज्ञानिकों को दुनिया भर में समान क्षेत्रों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलती है
  • वायुमंडलीय परिसंचरण का अध्ययन करने हेतु आदर्शइसकी भौगोलिक स्थिति इसे पश्चिमी हवाओं और भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून सहित वायुमंडलीय परिसंचरण में विविधताओं का अध्ययन करने के लिये आदर्श बनाती है।
    • ग्लोबल वार्मिंग और क्षेत्रीय जलवायु पैटर्न के लिये इसके प्रभाव के संदर्भ में इन वायुमंडलीय परिसंचरणों की परिवर्तनशीलता को समझना महत्त्वपूर्ण है।
    • तलछटी साक्ष्य : इस क्षेत्र में तलछटी साक्ष्य बड़ी मात्रा में मौजूद हैं जिनका उपयोग प्राचीन जलवायु को समझने के लिये किया जा सकता है। 
  • दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तन:
    • ऐसा इसलिये है क्योंकि झीलों में निरंतर अवसादन दर देखी जाती है और तलछट की भौतिक एवं रासायनिक विशेषताओं को संरक्षित करती है जो पिछले पर्यावरणीय परिस्थितियों को दर्शाती हैं।
  • ग्लेशियल रिट्रीट/हिमनद का पीछे हटना: लद्दाख सहित हिमालयी क्षेत्र कई हिमनदों का घर है जो सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों के लिये ताज़े जल के महत्त्वपूर्ण स्रोत के रूप में कार्य करते हैं
    • जलवायु परिवर्तन से इन हिमनदों के पीछे हटने (निवर्तनमें तेज़ी लाई है, जिससे जल सुरक्षा, नदी के प्रवाह पैटर्न में बदलाव एवं स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र तथा समुदायों पर संभावित प्रभावों के बारे में चिंताएँ बढ़ गई हैं
    • लद्दाख हिमनद परिवर्तनों की निगरानी और ग्लेशियल रिट्रीट के परिणामों का अध्ययन करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान करता है।
  • इसके अलावा एक हिमनद से अंतर-हिमनदी जलवायु अवधि में संक्रमण बड़े पैमाने पर जलवायु पुनर्गठन पर ज़ोर देता है। इस संक्रमणकालीन चरण के दौरान गतिशीलता को समझना जलवायु विकास को समझने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • लद्दाख जैसे पहाड़ी क्षेत्र विशेष रूप से अपनी अनूठी भू-आकृति संबंधी विशेषताओं के कारण इन परिवर्तनों के लिये अतिसंवेदनशील हैं।

अल नीनो 2023: 2009 की तरह असामान्य रूप से गर्म होना

चर्चा में क्यों? 

भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में एक असामान्य घटना विकसित हो रही हैजो वर्ष 2023 में अल नीनो स्थितियों के उभरने का संकेत दे रही है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि भूमध्यरेखीय प्रशांत के पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों के एक साथ गर्म होने की प्रवृत्ति, जो कि आखिरी बार वर्ष 2009 में देखी गई थीदुनिया भर में समुद्री जीवन पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है।

इस घटना का कारण

  • जब पूर्वी प्रशांत क्षेत्र गर्म हो जाता है, तो पश्चिमी क्षेत्र को आमतौर पर ठंडा हो जाना चाहिये।
    • हालाँकि ग्लोबल वार्मिंग के कारण उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में बेसिन स्केल वार्मिंग की स्थिति है।
  • यह घटना दो तरीके से उत्प्रेरित हो सकती है:
    • प्रशांत क्षेत्र में ग्लोबल वार्मिंग और दूसरा प्राकृतिक परिवर्तनशीलता ।
    • ला नीना शीत से अल नीनो ऊष्ण में संक्रमण जो अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) चक्र का हिस्सा है।

इस घटना के संभावित परिणाम

  • ग्लोबल वार्मिंग:
    • ला नीना (भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के जल का ठंडा होना) के खत्म होने का मतलब है कि समुद्र ऊष्मा को अवशोषित नही कर रहा है जो पूरे वातावरण को गर्म करेगा।
      • यदि वातावरण गर्म है तो समुद्र पर्याप्त ऊष्मा उत्सर्जित नही करता है जिससे सतह गर्म हो जाती है।
      • यह अस्थायी रूप से ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस से आगे बढ़ा सकता है।
  • भू-भौतिकीय प्रभाव:
    • यह घटना चक्रवातहरिकेन और टाइफून को प्रभावित करेगी, पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में टाइफून मावर (Mawar) पहले ही सबसे मज़बूत है।
    • समुद्री जल का गर्म होना समुद्री ऊष्मा तरंगों हेतु उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है, भूमध्यरेखीय संचलन धीमा हो जाता है, जो समुद्री जैवविविधता के लिये अपूरणीय क्षति का कारण बन सकता है।
  • प्रवाल विरंजन:
    • समुद्री जल के 1.5 डिग्री सेल्सियस तक गर्म होने से 70 से 90 प्रतिशत प्रवाल भित्तियों के नष्ट होने का खतरा है, जबकि 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि का अर्थ है कि प्रवाल भित्तियाँ लगभग 100 प्रतिशत नष्ट हो जाएंगी और पुनः पनप नहीं पाएंगी।

वर्ष 2023 में अल नीनो का भारत पर प्रभाव

  • भारत के लिये कमज़ोर मानसून: मई या जून 2023 में अल नीनो के विकास से दक्षिण-पश्चिम मानसून कमज़ोर हो सकता है जिसके कारण भारत में कुल वर्षा के लगभग 70% वर्षा होती है, साथ ही अभी भी इस पर अधिकांश कृषक निर्भर हैं।
    • हालाँकि मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (MJO) और मानसून कम दबाव प्रणाली जैसे उप-मानसूनी कारक वर्ष 2015 में देखे गए थे जो कुछ हिस्सों में अस्थायी रूप से वर्षा में वृद्धि सकते हैं।
  • गर्म तापमान: यह भारत और विश्व के अन्य क्षेत्रों जैसे कि दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और प्रशांत द्वीप समूह में हीटवेव और सूखे का कारण बन सकता है। 

मानसून में देरी

चर्चा में क्यों? 

वर्ष 2023 में मानसून 8 जून को केरल तट पर पहुँचा, जो कि मानसून के आरंभ की सामान्य तिथि 1 जून की तुलना में विलंब है।

मानसून

  • परिचय
    • मानसून मौसमी पवनें (लयबद्ध पवन की गति या आवधिक पवनें) हैं जो मौसम के परिवर्तन के साथ अपनी दिशा बदल देती हैं।
  • दक्षिण-पश्चिम मानसून को प्रभावित करने वाले कारक:
    • भूमि और जल की अलग-अलग ऊष्मा और आर्द्रता भारत के भूभाग पर कम दबाव बनाती हैं जबकि आसपास के समुद्र तुलनात्मक रूप से उच्च दबाव का अनुभव करते हैं।
    • गंगा के मैदानी भागों के ऊपर, ग्रीष्मकाल के दौरान में अंतर-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) की स्थिति में परिवर्तन, यह भूमध्यरेखा पर कम दबाव का क्षेत्र है जो सामान्यतः भूमध्य रेखा के लगभग 5°N पर स्थित होता है।
      • इसे मानसून के मौसम के दौरान मानसून-ट्रफ (कम दबाव का क्षेत्र) के रूप में भी जाना जाता है।
    • हिंद महासागर के ऊपर मेडागास्कर के पूर्व में लगभग 20°दक्षिणी अक्षांश पर उच्च दाब क्षेत्र की उपस्थिति उच्च दबाव वाले क्षेत्र की तीव्रता एवं स्थिति भारतीय मानसून को प्रभावित करती है।
    • गर्मियों के दौरान तिब्बती पठार अत्यधिक गर्म हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप समुद्र तल से लगभग 9 किमी. ऊपर पठार पर मज़बूत ऊर्ध्वाधर वायु धाराएंँ और कम दबाव का निर्माण होता है
    • हिमालय के उत्तर में पश्चिमी जेट स्ट्रीम की गति और गर्मियों के दौरान भारतीय प्रायद्वीप पर उष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट स्ट्रीम की उपस्थिति भी मानसून को प्रभावित करती है।
    • दक्षिणी दोलन (Southern Oscillation- SO):
    • यह उष्णकटिबंधीय पूर्वी प्रशांत महासागर और हिंद महासागर के बीच वायु और समुद्र की सतह के तापमान में बदलाव है। इसे सामान्यतः वायुदाव में बदलाव की घटना के रूप में जाना जाता है।
    • ला नीना शीतलन घटना है और अल नीनो ऊष्ण घटना है। 
    • ला नीना आमतौर पर भारतीय मानसून पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
  • हिंद महासागर डिपोल (IOD): 
    • IOD पूर्वी (बंगाल की खाड़ी) और पश्चिमी हिंद महासागर (अरब सागर) के तापमान के बीच का अंतर है। 
    • सकारात्मक IOD के कारण भारत में अधिक वर्षा होती है, जबकि नकारात्मक IOD नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।

मानसून की शुरुआत

  • मानसून की शुरुआत:
    • केरल तट पर मानसून की शुरुआत चार महीने के दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है, जिससे भारत में वार्षिक वर्षा के 70% से अधिक वर्षा होती है।
    • आम धारणा के विपरीत शुरुआत मौसम की पहली बारिश का उल्लेख नहीं करती है, बल्कि भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा निर्धारित विशिष्ट तकनीकी मानदंडों का पालन करती है।
  • मानसून का आगमन:
    • IMD, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में वायुमंडलीय और महासागर परिसंचरण में महत्त्वपूर्ण बदलाव के आधार पर मानसून के आगमन का निर्धारण करता है।
    • आगमन की घोषणा बारिश की निरंतरता, तीव्रता और हवा की गति से संबंधित विशिष्ट मापदंडों पर निर्भर करती है।
  • वर्षा:
    • आगमन की घोषणा तब की जाती है जब केरल और लक्षद्वीप में 14 नामित मौसम केंद्रों में से कम-से-कम 60% 10 मई के बाद लगातार दो दिनों तक कम-से-कम 2.5 मिमी बारिश रिकॉर्ड की जाती है
    • विशिष्ट हवा और तापमान मानदंडों को पूरा करने पर दूसरे दिन आगमन की घोषणा की जाती है।
  • पवन क्षेत्र
    • भूमध्य रेखा में 10ºN अक्षांश और 55ºE से 80ºE देशांतर सीमा के भीतर पछुवा हवा की गहराई 600 हेक्टोपास्कल (hPa) तक होनी चाहिये।
    • 925 hPa पर 5-10ºN अक्षांश और 70-80ºE देशांतर के बीच क्षेत्रीय हवा की गति लगभग 15-20 समुद्री मील (28-37 किलोमीटर प्रति घंटा) होनी चाहिये।
  • ऊष्मा
    • INSAT से प्राप्त आउटगोइंग लॉन्गवेव रेडिएशन (OLR) मान, 5ºN और 10ºN अक्षांशों तथा 70ºE एवं 75ºE देशांतरों के बीच के क्षेत्र में 200 वाट प्रति वर्ग मीटर (wm2) से कम होना चाहिये।

विलंबित शुरुआत का प्रभाव

  • कृषि:
    • विलंबित मानसून की शुरुआत कृषि गतिविधियों, विशेष रूप से फसलों की बुवाई को प्रभावित कर सकती है।
    • किसान सिंचाई और फसल के विकास के लिये मानसून की बारिश पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
    • बारिश में देरी से बुवाई में देरी हो सकती है, जिससे फसल की पैदावार और कृषि उत्पादकता प्रभावित हो सकती है
  • जल संसाधन:
    • देरी से मानसून की शुरुआत के परिणामस्वरूप पानी की कमी हो सकती है, विशेष रूप से जलाशयों, नदियों और झीलों को भरने के लिये वर्षा पर निर्भर क्षेत्रों में।
  • ऊर्जा क्षेत्र:
    • विलंबित मानसून जलविद्युत उत्पादन को प्रभावित कर सकता है, जो पर्याप्त जल उपलब्धता पर निर्भर करता है।
  • पर्यावरण
    • यह वनस्पति के विकास और वितरण को प्रभावित कर सकता है, कुछ प्रजातियों के प्रवासन में देरी कर सकता है तथा पारिस्थितिक चक्र को बाधित कर सकता है।
    • विलंबित मानसून भी प्रभावित क्षेत्रों में मिट्टी के कटाव, भूमि क्षरण और कम जैवविविधता में योगदान कर सकता है।
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