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Geography (भूगोल): February 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

भारतीय गंगा बेसिन में भूजल कमी

एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, "कई साक्ष्यों के आधार पर यह ज्ञात हुआ है कि भारतीय गंगा बेसिन में भूजल भंडारण में गिरावट का अनुमान लगाया गया है," यह बात प्रकाश में आई है कि गंगा बेसिन में भूजल भंडारण स्तर प्रतिवर्ष 2.6 सेंटीमीटर की दर से घट रहा है।

  • गंगा बेसिन के जलभृत (Aquifers) दुनिया में भूजल के सबसे बड़े जलाशयों में से एक हैं।

निष्कर्ष:

  • वर्ष 1996-2017 के मध्य औसत भूजल स्तर 2.6 सेमी. वर्ष−1 की दर से घट रहा है। 
  • ग्रेविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट (GRACE) से प्राप्त उपग्रह डेटा के विश्लेषण से पता चला है कि प्रतिवर्ष 1.7 सेमी.−1 की औसत हानि हुई।
  • वर्ष 2002 में लॉन्च किये गए ग्रेस उपग्रह, भूमि, बर्फ और समुद्र के ऊपर पृथ्वी के जलाशयों का आकलन करते हैं।
  • उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में औसत भंडारण में गिरावट क्रमशः 2 सेमी. वर्ष−1, 1 सेमी. वर्ष−1 और 0.6 सेमी. वर्ष−1 होने का अनुमान लगाया गया था।
  • ये प्रभाव राजस्थान, हरियाणा एवं दिल्ली में अधिक स्पष्ट थे, औसत भंडारण में क्रमशः लगभग 14 सेमी. वर्ष−1, 7.5 सेमी. वर्ष−1 और 7.2 सेमी. वर्ष−1 की गिरावट आई।
  • कृषि प्रधान क्षेत्रों और दिल्ली तथा आगरा जैसे शहरी क्षेत्रों सहित पश्चिम एवं दक्षिण-पश्चिम क्षेत्रों को सर्वाधिक नुकसान हुआ। 
  • दिल्ली और हरियाणा में भूजल निकासी दर अधिक है, जो भारी गिरावट को संदर्भित करती है। 
  • ब्रह्मपुत्र बेसिन में गंगा और सिंधु बेसिन की तुलना में भूजल स्तर में अधिक कमी देखी गई है।

गंगा नदी प्रणाली: 

  • हिंदू इस नदी को विश्व की सबसे पवित्र नदी मानते हैं। पहाड़ों, घाटियों और मैदानों से बहती हुई यह भारत की सबसे लंबी नदी है, इसकी लंबाई 2,510 किलोमीटर है।
  • गंगा बेसिन भारत, तिब्बत (चीन), नेपाल और बांग्लादेश में 10,86,000 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला हुआ है।
  • भारत में यह उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, झारखंड, हरियाणा, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश और केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली को कवर करता है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 26% है।
  • इसका उद्गम हिमालय में गंगोत्री हिमनद के हिम क्षेत्रों से होता है।
  • इसके उद्गम स्थल पर इस नदी को भागीरथी कहा जाता है। यह देवप्रयाग घाटी से नीचे उतरती है जहाँ एक और पहाड़ी जलधारा अलकनंदा में शामिल होने के बाद गंगा कहलाती है।
  • दाहिनी क्षेत्र से नदी में शामिल होने वाली प्रमुख सहायक नदियाँ यमुना और सोन हैं।
  • रामगंगा, घाघरा, गंडक, कोसी और महानंदा बाईं ओर से इस नदी में मिलती हैं। चंबल तथा बेतवा दो अन्य महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ हैं।
  • गंगा नदी डॉल्फिन एक लुप्तप्राय जीव है जो विशेष रूप से इस नदी में पाई जाती है।
  • गंगा बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र (जमुना) में मिलती है और आगे सभी जगह पद्मा के नाम से जानी जाती है।
  • बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले यह बांग्लादेश के सुंदरबन दलदल में गंगा डेल्टा में चौड़ी हो जाती है।

मैग्नेटाइट प्रदूषण

हाल ही में कुछ भूवैज्ञानिकों ने कोलकाता में सड़क के किनारे की धूल में मैग्नेटाइट प्रदूषण की उपस्थिति पाई है।

  • भारी वाहनों के आवागमन और अन्य प्रदूषणकारी स्रोतों वाले क्षेत्रों में प्रदूषकों की आवृत्ति अधिक होती है। मैग्नेटाइट की मात्रा सड़क पर यातायात के समानुपाती होती है।

मैग्नेटाइट प्रदूषण

परिचय: 

  • मैग्नेटाइट प्रदूषण पर्यावरण में मैग्नेटाइट (Fe3O4) नामक एक चुंबकीय खनिज की उपस्थिति को संदर्भित करता है, जो खनन, इस्पात उत्पादन और औद्योगिक प्रक्रियाओं जैसी मानवीय गतिविधियों का परिणाम है।
  • मैग्नेटाइट आयरन का ऑक्साइड है। यह पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले सभी खनिजों में सबसे अधिक चुंबकीय है। यह एक प्राकृतिक चुंबक है।
  • मैग्नेटाइट में लगभग 72% धत्त्विक लोहा होता है। यह कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, गोवा और केरल में पाया जाता है।

प्रभाव: 

  • पारिस्थितिक प्रभाव:
    • चुंबकीय कण पक्षियों और अन्य जानवरों के प्रवासी पैटर्न में हस्तक्षेप कर सकते हैं, जिससे उनके अस्तित्त्व और प्रजनन क्षमता प्रभावित हो सकती है।
  • मृदा और जल संदूषण:  
    • मैग्नेटाइट कण मिट्टी और पानी में बस जमा हो सकते हैं, ये वातावरण को दूषित कर सकते हैं तथा पौधों के विकास एवं जलीय जीवों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। 
  • मानव स्वास्थ्य:
    • चुंबकीय कण श्वास द्वारा शरीर में प्रवेश करने से श्वसन संबंधी समस्याएँ और अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं, जैसे फेफड़ों का कैंसर, हृदय रोग और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की क्षति। 
  • भवन और बुनियादी ढाँचे की क्षति:  
    • स्टील की इमारतें और अन्य धातु की वस्तुएँ चुंबकीय कणों द्वारा जंग के प्रति अतिसंवेदनशील होती हैं, जो समय के साथ उन्हें नुकसान पहुँचा सकती हैं।
  • विद्युत  को उपकरणों को नुकसान:  
    • चुंबकीय प्रदूषण इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, जैसे कम्पास और नेविगेशन सिस्टम के संचालन को भी प्रभावित कर सकता है।

हिमनद झील के फटने से बाढ़

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में हिमनद झील के फटने से बाढ़ (Glacial Lake Outburst Flood -GLOF) के संबंध में एक नया शोध प्रकाशित हुआ है, अनुमान है कि इस आपदा से विश्व स्तर पर लाखों लोग खतरे में है।

  • विनाशकारी बाढ़ वाले संभावित हॉटस्पॉट की पहचान करने की दिशा में यह पहला वैश्विक प्रयास है। यह अध्ययन हिमनद झीलों और इनके आसपास रहने वाली बड़ी आबादी की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिये किया गया था।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु

  • सुभेद्यता: 
    • हिमनद झीलों के कारण उत्पन्न विनाशकारी बाढ़, जो अचानक उनके प्राकृतिक बाँधों को क्षति पहुँचा सकती है, लगभग 15 मिलियन लोगों के जीवन को प्रभावित कर सकती है।
    • एशिया और दक्षिण अमेरिका के पर्वतीय देश सबसे अधिक जोखिम में हैं।
    • विश्व स्तर पर सुभेद्य आबादी का अधिकांश हिस्सा, जो कि 9.3 मिलियन (62%) है, उच्च पर्वतीय एशिया (HMA) क्षेत्र में स्थित है।
    • एशिया में लगभग दस लाख लोग एक हिमाच्छादित झील के केवल 10 किमी. के दायरे में रहते हैं।
    • भारत, पाकिस्तान, पेरू और चीन में रहने वाले लोग भी जोखिम में (विश्व स्तर पर) हैं।
  • सबसे जोखिमपूर्ण बेसिन: 
    • सबसे खतरनाक हिमनद बेसिन पाकिस्तान (खैबर पख्तूनख्वा बेसिन), पेरू (सांता बेसिन) और बोलिविया (बेनी बेसिन) में हैं जिनमें क्रमशः 1.2 मिलियन, 0.9 मिलियन और 0.1 मिलियन लोग रहते हैं जो GLOF के प्रभावों से प्रभावित हो सकते हैं।
    • जलवायु परिवर्तन के कारण एंडीज़ (दक्षिणी अमेरिका) के हिमनदों में पिछले 20 वर्षों में तेज़ी से गिरावट आई है।
  • भारत के लिये खतरा: 
    • हिमालय में 25 हिमनद झीलों और जल निकायों में वर्ष 2009 के बाद से जल प्रसार क्षेत्र में वृद्धि देखी गई है।
    • भारत, चीन और नेपाल में पानी के प्रसार में 40% की वृद्धि हुई है, जिससे सात भारतीय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये एक बड़ा खतरा पैदा हो गया है।
    • इनमें से छह हिमालयी राज्य/केंद्रशासित प्रदेश हैं: जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, असम और अरुणाचल प्रदेश।
    • GLOF की तीव्रता के साथ शुरुआत और उच्च निर्वहन का मतलब है कि डाउनस्ट्रीम आबादी विशेष रूप से स्रोत झील के 10-15 किमी. के भीतर स्थित आबादी के लिये प्रभावी ढंग से चेतावनी देने और प्रभावी कार्रवाई हेतु पर्याप्त समय नहीं मिल पाता है।
  • प्रभाव: 
    • यह बाढ़ काफी तीव्र होती है तथा कई मामलों में इतनी शक्तिशाली होती है कि यह कई ढाँचों को नष्ट कर देती है।
    • यह लोगों के जीवन, आजीविका और क्षेत्रीय बुनियादी ढाँचे को विनाशकारी रूप से खतरे में डालती है।
  • सुझाव: 
    • इन अत्यधिक जोखिम वाले क्षेत्रों में अधिक तीव्र चेतावनी और आपातकालीन कार्रवाई को सक्षम बनाने के लिये निकासी अभ्यास एवं समुदायों तक पहुँच के अन्य उपायों के साथ-साथ पूर्व चेतावनी प्रणाली के डिज़ाइन में भी सुधार की आवश्यकता है।

हिमनद झील के फटने से बाढ़ (GLOF)

परिचय: 

  • हिमनद झील के फटने से आने वाली बाढ़ विनाशकारी होती है, यह स्थिति तब उत्पन्न होती है  जब हिमनद झील का बाँध कमज़ोर हो जाता है और जल तेज़ प्रवाह के साथ बहने लगता है।
    • इस प्रकार की बाढ़ आमतौर पर ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलने, भारी वर्षा, झील में पानी के बढ़ने के कारण आती है।
    • फरवरी 2021 में उत्तराखंड के चमोली ज़िले में फ्लैश फ्लड देखा गया, जिसके बारे में संदेह है कि यह GLOF के कारण हुआ था। 
  • कारण:  
    • बाढ़ की इन घटनाओं के लिये कई कारकों को ज़िम्मेदार माना जा सकता है, जिसमें ग्लेशियर के आकार में परिवर्तन, झील के जल स्तर में परिवर्तन और भूकंप शामिल हैं।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के कारण  हिंदू-कुश हिमालय के अधिकांश हिस्सों में ग्लेशियर पिघल रहे हैं और नई ग्लेशियर झीलों का निर्माण हो रहा है, जो कि GLOF का प्रमुख कारण है।

हिमनद झील की बाढ़ से निपटने हेतु NDMA के दिशा-निर्देश

  • संभावित खतरनाक झीलों की पहचान:
    • स्थानीय दौरे, पूर्व की घटनाओं, झील/बाँध और आस-पास की भू-तकनीकी विशेषताओं तथा अन्य भौतिक स्थितियों के आधार पर संभावित खतरनाक झीलों की पहचान की जा सकती है। 
  • तकनीक का उपयोग: 
    • मानसून के महीनों के दौरान नई झील संरचनाओं समेत जल निकायों में आने वाले स्वतः परिवर्तनों का पता लगाने के लिये सिंथेटिक-एपर्चर रडार इमेज़री (एक प्रकार का रडार जो द्वि-आयामी छवियों के निर्माण में सहायता करता है) के उपयोग को बढ़ावा दिया जा सकता है। 
  • संभावित बाढ़ को कम करना: 
    • जल की मात्रा को कम करने हेतु जल के नियंत्रित बहाव की दिशा में परिवर्तन, पम्पिंग या जल की निकासी और मोराइन बाधा के माध्यम से या बाँध के नीचे सुरंग बनाना।
  • निर्माण गतिविधि के लिये समान संहिता:
    • संवेदनशील क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे के विकास, निर्माण और उत्खनन के लिये एक व्यापक ढाँचा विकसित किया जाना चाहिये।
    • हिमनद झील के फटने से बाढ़ (GLOF) के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में भूमि उपयोग नियोजन के लिये प्रक्रियाओं को मान्यता दिये जाने की आवश्यकता है। 
  • अर्ली वार्निंग सिस्टम (EWS) में सुधार करना:
    • भारत समेत विश्व के लगभग सभी देशों में GLOF से संबंधित अर्ली वार्निंग सिस्टम (EWS) की संख्या बहुत कम है।
    • हिमालयी क्षेत्र में GLOF को लेकर पूर्व चेतावनी के लिये सेंसर और निगरानी आधारित तकनीकी प्रणालियों के तीन उदाहरण मौजूद हैं, जिसमें से दो नेपाल में तथा एक चीन में है।
  • स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित करना:
    • आपातकालिक स्थिति में राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (National Disaster Response Force- NDRF), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) और थल सेना जैसे विशेष बलों का प्रयोग करने के साथ-साथ स्थानीय श्रम-शक्ति को भी प्रशिक्षित किया जाना चाहिये।
    • यह देखा गया है कि 80 प्रतिशत से अधिक खोज और बचाव कार्य स्थानीय समुदाय द्वारा राज्य मशीनरी तथा विशेष खोज एवं बचाव टीमों के हस्तक्षेप से पूर्व किया जाता है।
    • इस प्रणाली के तहत स्थानीय टीमें आपातकालीन आश्रयों की योजना बनाने और स्थापित करने, राहत पैकेज वितरित करने, लापता लोगों की पहचान करने तथा भोजन, स्वास्थ्य देखभाल, पानी की आपूर्ति आदि ज़रूरतों को पूरा करने में भी सहायता कर सकती हैं।
  • व्यापक अलार्म सिस्टम: 
    • पारंपरिक अलार्म सिस्टम के स्थान पर स्मार्टफोन का उपयोग करने वाली आधुनिक संचार तकनीक प्रणाली का उपयोग किया जा सकता है।

तुर्किये में भूकंप और इसके कारण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तुर्किये में 7.8 तीव्रता के भूकंप के झटके महसूस किये गए, जिसमें एनातोलिया टेक्टोनिक ब्लॉक के रूप में जानी जाने वाली प्लेट प्रसिद्ध भ्रंश प्लेट सीमा के साथ टकरा गई।

  • यह भूकंप "स्ट्राइक-स्लिप क्वेक" था जो अपेक्षाकृत कम गहराई पर उत्पन्न हुआ था।
  • इसे तुर्किये के संदर्भ में शताब्दी का सबसे शक्तिशाली भूकंप और वर्ष 1939 के बाद से सबसे खराब आपदा के रूप में वर्णित किया जा रहा है। वर्ष 1939 का भूकंप एर्ज़िनकन भूकंप था जिसने "एर्ज़िनकन मैदान और केल्किट नदी घाटी में अत्यधिक क्षति पहुँचाई थी। 

तुर्किये को भूकंप का खतरा:

पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र के टेक्टोनिक्स, जिसमें तुर्किये, सीरिया और जॉर्डन शामिल हैं, अफ्रीकी, अरब एवं यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेटों के साथ-साथ एनातोलिया टेक्टोनिक ब्लॉक के बीच जटिल अंतः क्रिया का प्रभाव है।

  • तुर्किये एनातोलिया टेक्टोनिक प्लेट पर स्थित है, जो दो प्रमुख भ्रंश सीमाएँ बनाती है अर्थात्  उत्तरी एनाटोलियन फॉल्ट (NAF) जो पश्चिम से पूर्व की ओर और ईस्ट एनातोलिया फॉल्ट (EAF) दक्षिण-पूर्व में विस्तृत है।
  • NAF लाइन यूरेशियन और अनातोलियन विवर्तनिक प्लेटों का मिलन बिंदु है जिसे "विशेष रूप से विनाशकारी" के रूप में जाना जाता है।
  • NAF उत्तरी तुर्की में दाएँ-पार्श्व स्ट्राइक-स्लिप संरचना है जो यूरेशिया और अफ्रीका के संबंध में अनातोलिया ब्लॉक की पार्श्वीय गति को पश्चिम की ओर समायोजित करती है। 
  • EAF अनातोलियन प्लेट और उत्तर की ओर बढ़ने वाली अरब प्लेट के बीच विवर्तनिक सीमा है। यह पूर्वी तुर्की से भूमध्य सागर में 650 किलोमीटर तक है।  
  • इसके अलावा दक्षिणी ग्रीस और पश्चिमी तुर्की के तहत पूर्वी भूमध्य सागर में स्थित एज़ियन सी प्लेट भी इस क्षेत्र में भूकंपीय गतिविधि का एक स्रोत है।
  • एक अनुमान के अनुसार, तुर्की के लगभग 95% भूभाग भूकंप के प्रति संवेदनशील है, जबकि देश का लगभग एक-तिहाई हिस्सा उच्च जोखिम में है, जिसमें इस्तांबुल और इज़मिर के प्रमुख शहर और पूर्वी अनातोलिया के आसपास के क्षेत्र शामिल हैं। 

सामान्य भूकंप एवं स्ट्राइक स्लिप भूकंप में अंतर

  • प्लेट संचलन: स्ट्राइक-स्लिप भूकंप में दो विवर्तनिक प्लेटें क्षैतिज रूप से एक-दूसरे के पार्श्व में संचलन करती हैं, जबकि एक सामान्य भूकंप में संचलन ऊर्ध्वाधर होता है।
  • फॉल्ट ज़ोन, विवर्तनिक भूकंप, ज्वालामुखीय भूकंप, मानव प्रेरित भूकंप विभिन्न प्रकार के भूकंप हैं। 
  • फाॅल्ट लाइन के प्रकार और स्थान: ट्रांसफॉर्म सीमाओं के आसपास, जैसे कि कैलिफोर्निया के सैन एंड्रियास फॉल्ट में स्ट्राइक-स्लिप भूकंप आते हैं, जबकि नियमित भूकंप अलग-अलग अथवा अभिसरण प्लेट सीमाओं के आसपास आते हैं जहाँ प्लेटों में गतिविधि लंबवत रूप में होती है, जैसे प्रशांत "रिंग ऑफ फायर"
  • आवृत्ति: नियमित भूकंपों की तुलना में स्ट्राइक-स्लिप भूकंप अधिक बार आते हैं, क्योंकि प्लेटें ट्रांसफॉर्म सीमाओं के साथ निरंतर गतिमान होती हैं।
  • भूकंपीय अंतरालस्ट्राइक-स्लिप भूकंप के कारण "भूकंपीय अंतराल" हो सकता है, जिसमें किसी ट्रांसफॉर्म सीमा के एक हिस्से में लंबे समय तक भूकंप नहीं आता है, इससे भविष्य में उस क्षेत्र में भूकंपीय घटना की संभावना बढ़ जाती है। आमतौर पर नियमित भूकंप के कारण "भूकंपीय अंतराल" नहीं होता है।
  • कारण: एक-दूसरे के विपरीत दो प्लेटों की गति और तनाव से निकलने वाली ऊर्जा स्ट्राइक-स्लिप फॉल्ट भूकंप का कारण है।

शैलो भूकंप के प्रभाव

  • शैलो भूकंप एक ऐसा भूकंप है जो सतह के करीब बहुत कम दूरी पर उत्पन्न होता है, आमतौर पर पृथ्वी की भू-पर्पटी के अंदर। सामान्यतः इसकी गहराई 70 किमी. से कम होती है और इसके परिणामस्वरूप सतह पर काफी हलचल होने और सतह के टूटने की घटनाएँ हो सकती हैं।
  • अक्सर गहरे भूकंपों की तुलना में वे अधिक घातक होते हैं क्योंकि भूकंपीय तरंगों से ऊर्जा सतह के करीब निकलती है, जिससे सतह में गति अधिक होती है और अधिक तीव्र कंपन होता है।
  • यह इमारतों और बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचा सकता है, साथ ही भूस्खलन, चट्टानों के गिरने और अन्य माध्यमिक स्तर के खतरे उत्पन्न कर सकता है। 
  • हालाँकि भूकंप के कारण होने वाली क्षति कई कारकों पर निर्भर करती है, जिसमें भूकंप का दायरा, उपरिकेंद्र से दूरी, भूकंप की गहराई, मिट्टी का प्रकार और सतह पर भूवैज्ञानिक स्थितियाँ सम्मिलित हैं।
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