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महत्वपूर्ण संविधान संशोधन (भाग - 2) - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था | Revision Notes for UPSC Hindi PDF Download

  • संविधान (सत्तावनवां संशोधनअधिनियम, 1987 - संविधान (51वां संशोधन) अधिनियम, 1984 लोकसभा में नागालैंड, मेघालय, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश की अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित करने तथा संविधान के अनुच्छेद 330 व 332 को समुचित प्रकार से संशोधित करके नागालैंड और मेघालय की विधानसभाओं में अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित करने के लिए अधिनियमित किया गया था। 
  • यद्यपि ये क्षेत्र जनजाति-बहुल हैं, तथापि इस संशोधन का उद्देश्य यह था कि इस क्षेत्र में रहने वाली जनजातियां अपना न्यूनतम प्रतिनिधित्व तो कर ही सकें क्योंकि वे विकसित वर्ग के लोगों के साथ चुनाव लड़ने में सक्षम नहीं हैं। 
  • यद्यपि संविधान (51वां संशोधन) अधिनियम औपचारिक रूप से प्रभावी था, फिर भी यह पूरी तरह से तब तक लागू नहीं हो सकता था, जब तक यह निर्धारित न हो जाए कि अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजातियों के लिए किन-किन स्थानों का आरक्षण करना है। किसी भी राज्य में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 332 के अंतर्गत संविधान के अनुच्छेद 332(3) के प्रावधानों को ध्यान में रखकर ही निर्धारित किया जाता है।
  • किन्तु उत्तर-पूर्वी राज्यों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखते हुए, उन राज्यों के अनुसूचित जनजातियों के विकास व अन्य संबंधित बातों पर विचार करके यह जरूरी समझा गया कि इन क्षेत्रों में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण के लिए विशेष प्रावधान किए जाएं। ताकि ये लोग भी जैसा कि संविधान में संकल्पना की गई है, सामान्य जीवन व्यतीत कर सकें। 
  • संविधान के अनुच्छेद 332 को अस्थायी प्रावधान बनाने के लिए फिर से संशोधित किया गया जिससे अनुच्छेद 170 के अंतर्गत वर्ष 2ए000 के बाद पहली जनगणना के आधार पर अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों के आरक्षण का पुनः निर्धारण किया जा सके। इस संशोधन में यह इच्छा व्यक्त की गई कि यदि ऐसे राज्यों की विधानसभाओं (जो संशोधित अधिनियम के लागू होने की तिथि पर अस्तित्व में थी) में सभी स्थान अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों द्वारा अधिग्रहीत किए गए हों, तो एक को छोड़कर सभी स्थानों की संख्या कुल संख्या के बराबर हो, एक ऐसा अनुपात हो जिसमें मौजूदा विधानसभा के सदस्यों की संख्या मौजूदा विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या के बराबर हो। यह अधिनियम इन उद्देश्यों को प्राप्त करता है।
  • संविधान (अट्ठावनवां संशोधनअधिनियम, 1987 -
  • हिन्दी में संविधान के प्राधिकृत पाठ की मांग सामान्यता रही है। विधि प्रक्रिया में संविधान का आसानी से प्रयोग किया जा सके, इसके लिए आवश्यक है कि इसका हिन्दी पाठ भी प्राधिकृत हो।
  • संविधान का कोई भी हिन्दी संस्करण न केवल संवैधानिक सभा द्वारा प्रकाशित हिन्दी अनुवाद के अनुरूप हो, बल्कि हिन्दी में केन्द्रीय अधिनियमों के प्राधिकृत पाठों की भाषा, शैली व शब्दावली के अनुरूप हो, संविधान को संशोधित करके राष्ट्रपति को यह शक्ति प्रदत्त की गई है कि वह अपने प्राधिकार के तहत संविधान के हिन्दी अनुवाद को जिस पर संवैधानिक सभा के सदस्यों ने अपने हस्ताक्षर किए हुए हैं तथा जिनमें उन सभी परिवर्तनों को शामिल कर लिया गया है जिससे यह हिन्दी भाषा के केन्द्रीय अधिनियमों के प्राधिकृत पाठों की भाषा, शैली व शब्दावली के अनुरूप हो, प्रकाशित करा सके। 
  • राष्ट्रपति को यह शक्ति भी प्रदत्त की गई है कि वह संविधान में किए गए प्रत्येक अंग्रेजी संशोधन का हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करवाएं।
  • संविधान (उनसठवां संशोधन) अधिनियम, 1988 - इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 365(5) का संशोधन किया गया जिससे कि अनुच्छेद 356 के खंड (I) के अधीन राष्ट्रपति की उद्घोषणा का, एक वर्ष की अवधि से आगे विस्तार किया जा सके और यदि आवश्यक हो तो पंजाब राज्य में अशांति की स्थिति बने रहने के कारण अनुच्छेद 356 के खंड (4) के अधीन यथा अनुज्ञेय तीन वर्ष की अवधि तक प्रभावी बनाया जा सके। इस अधिनियम द्वारा आपात की उद्घोषणा से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 352 का, पंजाब राज्य में इसे लागू किए जाने की बाबत संशोधन किए जाने के परिणामस्वरूप, अनुच्छेद 358 और अनुच्छेद 359 का भी संशोधन किया गया है। पंजाब राज्य के संबंध में अनुच्छेद 352ए 358 और 359 के संशोधन की तारीख 30 मार्च, 1988 से जो इस संशोधन के प्रारंभ की तारीख है, दो वर्ष की अवधि के लिए ही प्रवर्तनीय रहेंगे।
  • संविधान (साठवां संशोधनअधिनियम, 1988 - अधिनियम, संविधान के अनुच्छेद 276 के खंड (2) का इस दृष्टि से संशोधन करता है जिससे कि वृत्तियों, व्यापारों, आजीविकाओं और नियोजनों पर कर की अधिकतम सीमा को दो सौ पचास रुपये प्रतिवर्ष से बढ़ाकर दो हजार पांच सौ रुपये प्रतिवर्ष किया जा सके। इस कर में वृद्धि करने से राज्यों को अतिरिक्त òोत जुटाने में सहायता मिलेगी। धारा (2) के उपबंध का लोप किया गया है।
  • संविधान (इकसठवां संशोधनअधिनियम, 1989 - इस अधिनियम के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 326 का संशोधन करके मताधिकार की आयु 21 से घटाकर 18 कर दी गई है, ताकि देश के उस युवा-वर्ग को जिसे अभी तक कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया था, अपनी भावनाएं व्यक्त करने का अवसर मिल सके और वे राजनैतिक प्रक्रिया का अंग बन सकें।
  • संविधान (बासठवां संशोधनअधिनियम, 1989 - संविधान के अनुच्छेद 334 में यह प्रावधान है कि अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों की सीटों के आरक्षण तथा लोकसभा और विधानसभाओं में एंग्लो-इंडियन समुदाय के प्रतिनिधित्व से संबंधित व्यवस्था संविधान लागू होने के 40 वर्ष बाद समाप्त हो जाएगी। हालांकि अनुसूचित जातियों और जनजातियों ने गत 40 वर्षों में पर्याप्त प्रगति की है किन्तु संविधान सभा के सामने इस तरह की व्यवस्था बनाते समय जो कारण थे, वे भी बरकरार हैं। इस अधिनियम के द्वारा अनुच्छेद 334 को संशोधित करके यह व्यवस्था की गई कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण और एंग्लो-इंडियन समुदाय का मनोनयन द्वारा प्रतिनिधित्व अगले 10 वर्षों तक जारी रहेगा।
  • संविधान (तरेसठवां संशोधनअधिनियम, 1989 - संविधान (59वां संशोधन) अधिनियम मार्च 1988 में लागू किया गया जिसमें पंजाब में आपातस्थिति की घोषणा और राज्य में राष्ट्रपति शासन की अवधि के संबंध में कुछ परिवर्तन किए गए थे। इस पर पुनर्विचार करने पर सरकार ने निर्णय किया कि संशोधन में पंजाब में आपातस्थिति की घोषणा के संबंध में जिस विशेष अधिकारी की व्यवस्था की गई थी, उसकी अब जरूरत नहीं रही। तदनुसार अनुच्छेद 356 की धारा 5 तथा अनुच्छेद 359क को हटा दिया गया है।
  • संविधान (चैसठवां संशोधनअधिनियम, 1990 - इस अधिनियम के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 356 की धारा 4 व 5 के अन्तर्गत संविधान के अनुच्छेद 356 की धारा 1 के तहत पंजाब के संबंध में 11 मई, 1987 को संशोधित की गई घोषणा की अवधि को साढ़े तीन वर्ष के लिए और बढ़ा दिया गया।
  • संविधान (पैंसठवां संशोधनअधिनियम, 1990 - संविधान के अनुच्छेद 338 में एक विशेष अधिकारी का प्रावधान है, जो संविधान के तहत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के हितों से संबंधित मामलों की जांच करेगा और इस संबंध में राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट भेजेगा।
  • यह अनुच्छेद संशोधित कर दिया गया है। इसमें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए एक राष्ट्रीय आयोग के गठन की व्यवस्था की गई है। जिसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष तथा पांच अन्य सदस्य होंगे जिन्हें राष्ट्रपति अपनी मुहर से नियुक्त करेंगे। संशोधित अनुच्छेद में आयोग के कार्यों के बारे में विस्तार से बताया गया है और उसके उन कदमों के बारे में बताया गया है, जो उसे केन्द्र अथवा राज्य सरकार की कमीशन की रिपोर्ट के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए उठाने होंगे। 
  • इसमें यह भी व्यवस्था की गई है कि आयोग के पास शिकायत पर की जाने वाली जांच के दौरान वे सभी अधिकार होंगे जो कि एक न्यायिक अदालत को होते हैं और आयोग की रिपोर्ट संसद और राज्य विधानसभाओं के समक्ष रखी जाएगी।
  • संविधान (छियासठवां संशोधनअधिनियम, 1990 - इस अधिनियम के तहत भूमि सुधार तथा कृषि भूमि की सीमा से संबंधित राज्य सरकारों के उन 55 नियमों को संविधान के नौंवी अनुसूची में शामिल तथा सुरक्षित कर दिया गया है जिन्हें आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश, मद्रास, उड़ीसा, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और केन्द्रशासित प्रदेश पांडिचेरी के प्रशासन ने इस आशय से बनाया था कि इन्हें अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकेगी।
  • संविधान (सड़सठवां संशोधनअधिनियम, 1990 - संविधान के 64वें संशोधन में पंजाब के संबंध में 11 मई, 1987 की घोषणा को 3 वर्ष से बढ़ाकर साढ़े तीन वर्ष किया गया था। 67वें संशोधन के तहत अनुच्छेद 356 की धारा 4 को पुनःसंशोधित करके इस अवधि को बढ़ाकर 4 वर्ष कर दिया गया।
  • संविधान (अड़सठवां संशोधनअधिनियम, 1991 - संविधान के 67वें संशोधन के तहत पंजाब के संबंध में 11 मई, 1987 को की गई घोषणा को बढ़ाकर 4 वर्ष किया गया था। 68वें संशोधन के तहत अनुच्छेद 356 की धारा 4 को संशोधित करके इस अवधि को बढ़ाकर 5 वर्ष कर दिया गया है।
  • संविधान (उनहत्तरवां संशोधनअधिनियम, 1991 -
  • भारत सरकार ने 24 दिसम्बर, 1987 को दिल्ली के प्रशासन से संबंधित विभिन्न मामलों का अध्ययन करने तथा प्रशासनिक ढांचे को चुस्त बनाने के उपाय सुझााने के लिए एक कमेटी गठित की थी। 
  • पूरी जांच-पड़ताल और अध्ययन के बाद इस समिति ने यह सिफारिश की थी कि दिल्ली एक केन्द्रशासित प्रदेश बनी रहे तथा इसमें एक विधानसभा तथा एक मंत्रिपरिषद भी हो, जो आम आदमी से संबंधित मामलों के बारे में पूरी तरह से अधिकार सम्पन्न हो। कमेटी मंत्रिपरिषद भी हो, जो आम आदमी से संबंधित मामलों के बारे में पूरी तरह से अधिकार सम्पन्न हो। 
  • कमेटी ने यह सिफारिश भी की थी कि स्थायित्व और सुदृढ़ता को दृष्टि में रखते हुए ऐसी व्यवस्था की जाए जिससे राष्ट्रीय राजधानी को अन्य केन्द्रशासित प्रदेशों की तुलना में एक विशेष दर्जा प्राप्त हो। यह अधिनियम उपरोक्त सिफारिशों को लागू करने के लिए पारित किया गया।
  • संविधान (इकहत्तरवां संशोधनअधिनियम, 1992 - संविधान की आठवीं अनुसूची में कुछ भाषाएं और जोड़ने की मांग चल रही थी। इस अधिनियम से संविधान की आठवीं अनुसूची में संशोधन करके इसमें कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली भाषाओं को शामिल किया गया है।
  • संविधान (बहत्तरवां संशोधनअधिनियम, 1992 - 
  • त्रिपुरा राज्य में जहां गड़बड़ी का माहौल बना हुआ है, शांति और सद्भाव कायम करने के लिए गत 12 अगस्त, 1988 को भारत सरकार और त्रिपुरा राष्ट्रीय स्वयंसेवकों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। 
  • इस समझौते को लागू करने के लिए संविधान (बहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, 1992 के माध्यम से संविधान के अनुच्छेद 322 में संशोधन किया गया है, ताकि त्रिपुरा राज्य विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए सुरक्षित सीटों की संख्या निर्धारित करने के लिए तब तक के लिए अस्थाई व्यवस्था की जा सके, जब तक कि संविधान के 17वें अनुच्छेद के अंतर्गत वर्ष 2ए000 के बाद प्रथम जनगणना के आधार पर सीटों का तालमेल न हो जाए।
  • संविधान (तिहत्तरवां संशोधनअधिनियम, 1993 - 
  • संविधान के अनुच्छेद 40 में सुरक्षित की गई राज्यों की नीति निर्देशक सि)ांतों में से एक में यह कहा गया है कि राज्यों को ग्राम पंचायतों का गठन करने और उन्हें ये सभी अधिकार प्रदान करने के लिए कदम उठाने चाहिएं जो उन्हें एक स्वायत्तशासी सरकार की इकाइयों के रूप में काम करने के लिए आवश्यक हैं।
  • ऊपर दिए गए प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए संविधान में पंचायत से संबंधित एक नया पैरा-9 जोड़ा गया है। इसका उद्देश्य अन्य चीजों के अलावा एक गांव में अथवा गांवों के समूह को ग्राम तथा दान करना, गांव के स्तर या अन्य स्तरों पर पंचायतों का गठन करना, गांव और उसके बीच के स्तर पर पंचायतों की सभी सीटों के लिए सीधे चुनाव करना, ऐसे स्तरों पर पंचायतों के यदि सरपंच हैं तो उनका चुनाव कराना, पंचायत में सदस्यता के लिए और सभी स्तरों पर पंचायत के पदाधिकारियों के चुनाव के लिए जनसंख्या के आधार पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों का आरक्षण, महिलाओं के लिए कम से कम एक तिहाई सीटों का आरक्षण, पंचायतों के लिए पांच साल की कार्य अवधि तय करना और यदि कोई पंचायत भंग हो जाती है तो छह महीने के भीतर उसका चुनाव कराने की व्यवस्था करना है।
  • संविधान (चैहत्तरवां संशोधनअधिनियम, 1993 - 
  • अनेक राज्यों में विभिन्न कारणों से स्थानीय निकाय कमजोर और बेअसर हो गए हैं। इनमें नियमित चुनाव न होना, लंबे समय तक भंग रहना और कर्तव्यों तथा अधिकारों का समुचित हस्तांतरण न होना शामिल है। इसके परिणामस्वरूप शहरी स्थानीय निकाय एक स्वायत्तशासी सरकार की जीवंत लोकतांत्रिक इकाई के रूप में कारगर ढंग से काम नहीं कर पा रहे हैं।
  • इन खामियों को देखते हुए संविधान में पालिकाओं के संबंध में एक नया भाग 9.ए शामिल किया गया है ताकि अन्य चीजों के अलावा निम्नलिखित प्रावधान किए जा सकें। तीन तरह की पालिकाओं का गठन, जैसे कि ग्रामीण से शहरी क्षेत्र में परिवर्तित हो रहे क्षेत्रों के लिए नगर पंचायतें, छोटे शहरी क्षेत्रों के लिए नगर परिषदें और बड़े शहरी क्षेत्रों के लिए नगर निगम।
  • संविधान (75वां संशोधनअधिनियम, 1994 - 
  • इन दिनों विभिन्न राज्यों में जो किराया नियंत्रण कानून लागू हैं उनमें कई खामियां हैं, जिनके कारण अनेकविध अवांछनीय परिणाम हो रहे हैं। किराया नियंत्रण कानूनों के कुछ वैधानिक दुष्परिणाम हैंः लगातार बढ़ती हुई मुकदमेबाजी, न्यायालयों द्वारा समय पर न्याय न दे पाना, किराया नियंत्रण कानूनों से बचने के तरीके निकालना और किराए के लिए मिल सकने वाले मकानों की निरन्तर बढ़ती हुई कमी।
  • उच्चतम न्यायालय ने देश में किराया नियंत्रण कानूनों की अनिश्चित और तर्क रहित स्थित को ध्यान में रखते हुए प्रभाकरन नय्यर और अन्य बनाम तमिलनाडु राज्य (सिविल रिट पिटीशन संख्या 506 आॅफ 1986) तथा अन्य रिट याचिकाओं के संदर्भ में यह विचार प्रकट किया था कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों को किराया कानूनों के जबर्दस्त भार से मुक्त कर दिया जाना चाहिए। इन मुकदमों में अपील करने के अवसर कम कर दिये जाने चाहिए। किराया नियंत्रण कानून, सरल, विवेकपूर्ण और स्पष्ट होने चाहिए। मुकदमेबाजी जल्दी ही अवश्य समाप्त हो जानी चाहिए।
  • इसलिए इस कानून द्वारा संविधान के भाग 14 (अ) के अनुच्छेद 323 (ब) में संशोधन किया गया है ताकि किरायेदारों और मकान मालिकों को समय पर राहत मिल सके। इस संशोधन में राज्य स्तर पर किराया नियंत्रण न्यायाधिकरण स्थापित करने की और अन्य सभी अदालतों में मकान मालिक किरायेदार से सम्ब) मुकदमें दायर करने  पर रोक लगाने की व्यवस्था है। इस व्यवस्था के कारण ऐसे मुकदमों के फैसलों की अपील संविधान के अनुच्छेद 136 के अधीन केवल उच्चतम न्यायालय में की जा सकेगी।
  • संविधान (77वां संशोधनअधिनियम, 1995 - धारा 16 (4ए) इस अधिनियम के अंतर्गत अनुसूचित जाति एवं जनजाति की प्रोन्नति के लिये आरक्षण को बढ़ाना है।
  • संविधान (78वां संशोधन) अधिनियम कृ नवीं अनुसूची में पहले से ही समाहित संशोधन जिन्हें वैधानिक चुनौति नहीं मिली, अनेक संशोधित अधिनियम व आधारीय अधिनियम को नवीं अनुसूची में जोड़ा गया है( यह सुनिश्चित करने के लिये कि इन पर वैधानिक चुनौतियों का प्रतिकूल असर न पड़े।
  • संविधन (93वां संशोधन अधिनियम 2006 -
  • संविधन के अनुच्छेद 30 की धारा (1) के प्रावधनों के तहत सभी अल्पसंख्यकों को अपनी इच्छानुसार शिक्षण संस्थान स्थापित करने और उसे संचालित करने का अध्किार है। अल्पसंख्यक वर्गों को संस्थानों की स्थापना और उसके संचालन के बारे में जो अध्किार मिले हुए हैं। उनकी रक्षा करना आवश्यक है। इसके पफलस्वरूप जिन संस्थानों को सरकार ने अनुच्छेद 30 की धारा (1) के तहत अल्पसंख्यक घोषित कर रखा है, उन्हें इस कानून के दायरे से बाहर रख गया है।
  • सामाजिक और शिक्षा के स्तर पर पिछडे़ हुए वर्गों के नागरिकों अर्थात अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछडे़ वर्गों के छात्रों को, अनुच्छेद 30 की धारा (1) के तहत आनेवाले अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को छोड़कर बाकी गैर सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में दाखिला देने के मामले में अनुच्छेद 15 के प्रावधनों का विस्तार किया गया है। अनुच्छेद 15 की नयी धारा (5) के तहत संसद तथा राज्यों की विधायिकाएं उपर दिए गए उद्देश्य के लिए समुचित कानून बना सकती है।
  • संविधन (94वां संशोधनअधिनियम- 12 जून, 2006) झारखण्ड एवं छत्तीसगढ़ (ओडिसा एवं मध्य प्रदेश सहित) में आदिवासी कल्याण मंत्रालय के सृजन के लिए
  • संविधन (95वां संशोधनअधिनियम- 25 जनवरी, 2010) लोकसभा एवं राज्यसभाओं में SC/STs  का आरक्षण 60 वर्ष से 70 वर्ष के लिए बढ़ाया गया।
  • संविधन (96वां संशोधनअधिनियम23 सितम्बर, 2011) ‘Odia’ शब्द को ‘Oria’ किया गया।
  • संविधन (97वां संशोधनअधिनियम12 जनवरी, 2012) Article 19(1)C में Co-operative Societies शब्द जोड़ा गया जो ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक प्रगति को अग्रसर करेगा।
  • संविधन (98वां संशोधनअधिनियम- 2 जनवरी, 2013) कर्नाटक के राज्यपाल को हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के विकास के लिए शक्ति प्रदान की गई।
  • संविधन (99वां संशोधनअधिनियम13 अप्रैल, 2015) National Judicial Appointment Commission गठित करने के लिए कानून का प्रावधन किया गया, 29 में से 16 राज्य ने सहमति भी दी, पर सर्वोच्च न्यायालय ने इसे असंवैधनिक करार देकर खारिज कर दिया। यह बिल उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति के लिए था।
  • संविधन (100वां संशोधन, अधिनियम- 1 अगस्त, 2015) बांग्लादेश के साथ कुछ गाँवों का आदान-प्रदान में किए गए और गाँवों के लोगों को नागरिकता प्रदान करने के लिए जो भारत-बांग्लादेश के बीच स्ंदक Boundary Treaty में बात मानी गई थी।
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FAQs on महत्वपूर्ण संविधान संशोधन (भाग - 2) - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था - Revision Notes for UPSC Hindi

1. महत्वपूर्ण संविधान संशोधन (भाग - 2) क्या है?
उत्तर. महत्वपूर्ण संविधान संशोधन (भाग - 2) एक भारतीय संविधान में किए गए संशोधनों का एक विशेष भाग है। इसमें संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में संशोधन किए जाते हैं और इससे राष्ट्रीय राजकीय प्रणाली में परिवर्तन हो सकता है।
2. संविधान संशोधन नोटस क्या होता है?
उत्तर. संविधान संशोधन नोटस एक आधिकारिक दस्तावेज होता है जिसमें संविधान संशोधन करने की प्रक्रिया, संशोधन के प्रपत्र, विधायी संशोधन का विवरण और अन्य संबंधित जानकारी होती है। इसे राष्ट्रपति के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत पारित किया जाता है।
3. भारतीय राजव्यवस्था क्या है?
उत्तर. भारतीय राजव्यवस्था भारतीय संविधान द्वारा स्थापित एक केंद्रीय शासन प्रणाली है। इसमें सरकारी नियमन, शासन और न्याय के लिए विभिन्न संस्थाएं और अधिकारियों की एक व्यवस्था होती है। भारतीय राजव्यवस्था में संविधान और न्यायपालिका महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
4. संविधान संशोधन में कितने भाग होते हैं?
उत्तर. संविधान संशोधन दो भागों में विभाजित होते हैं - भाग 1 और भाग 2। भाग 1 में संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में संशोधन किए जाते हैं जबकि भाग 2 में संविधान के विशेष अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन करने की प्रक्रिया वर्णित होती है।
5. संविधान संशोधन क्यों महत्वपूर्ण होते हैं?
उत्तर. संविधान संशोधन महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि वे राष्ट्रीय राजकीय प्रणाली में परिवर्तन कर सकते हैं और संविधान को आधुनिक और वर्तमान युग के आवश्यकताओं के अनुरूप बना सकते हैं। संविधान संशोधन राष्ट्रीय विकास और सामरिक बदलाव के लिए महत्वपूर्ण हैं और समानता, न्याय, और स्वतंत्रता की रक्षा करने का माध्यम हो सकते हैं।
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