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मुगलों की धार्मिक नीति
बाबर: बाबर पक्का सुन्नी मुसलमान था लेकिन वह धर्मान्ध नहीं था। 
¯  उसने राणा सांगा के विरुद्ध जिहाद की घोषणा की, लेकिन उसका मतलब राजनीतिक था, न कि धार्मिक। 
हुमायूँ: हुमायूँ भी सुन्नी मुसलमान था, तथा अपने व्यक्तिगत जीवन में धार्मिक नियमों का पालन करता था। लेकिन उसने सहनशील धार्मिक नीति अपनायी। 
¯ वह शिया मुसलमानों के प्रति भी सहनशील था। 
¯ उसकी पत्नी हमीदा बानो बेगम और उसका स्वामिभक्त और योग्य अधिकारी बैरम खां शिया मुसलमान थे। 
¯ वह सूफी आन्दोलन से भी बहुत प्रभावित था। 
अकबर: अकबर की सबसे महान सफलता इस बात में निहित है कि उसने भिन्न-भिन्न जातियों, भिन्न-भिन्न धर्मों तथा भिन्न-भिन्न राज्यों को मिलाकर सांस्कृतिक एकीकरण के पनपने में विशेष योग दिया। 
¯ वह इस्लाम धर्म के सिद्धान्तों को भली प्रकार समझना चाहता था। इस कारण उसने 1575 ई. में फतेहपुर सीकरी में एक धार्मिक भवन बनवाया था जिसे इबादतखाना कहा जाता है। 
 ¯ 1579 ई. में उसने एक घोषणा-पत्र जारी किया जिसे अन्तिम धार्मिक आदेश ;प्दंिससपइपसपजल क्मबतममद्ध कहा जाता है। उसके अनुसार यदि उलेमा किसी धार्मिक प्रश्न की व्याख्या से सहमत नहीं होते थे तो राजा का निर्णय अंतिम समझा जाता था। 
¯ 1582 ई. में उसने एक नए मत की नींव रखी जिसे दीने-इलाही कहा जाता है। 
जहांगीर: जहांगीर अपने पिता की भांति धार्मिक सहनशील था। 
¯ जहांगीर ने एक कुशल राजनीतिज्ञ की भांति अपने पिता की राजपूत-नीति का अनुशरण किया, उन्हें ऊंचे पदों पर नियुक्त किया तथा उनके साथ विवाह सम्बन्ध स्थापित किया। 
¯ राजा मानसिंह ने राजसिंहासन प्राप्त करते समय जहांगीर का विरोध किया था, परन्तु उन्हें क्षमा करके जहांगीर ने उन्हें सदा के लिए अपना मित्र बना लिया। 
¯ इसी तरह मेवाड़ के राणा अमर सिंह का उचित आदर करके तथा उसे विवाह-सम्बन्ध के लिए मजबूर न करके जहांगीर ने मेवाड़ के राजा को भी अपना वफादार बना लिया।

शाहजहां: अकबर और जहांगीर के विपरीत शाहजहां पक्का सुन्नी मुसलमान था जो दिन में पांच बार नमाज पढ़ने और रमजान का सारा महीना रोजा रखने में विशेष रुचि रखता था। ¯ उसने नए बनने वाले मन्दिरों को गिराने का शाही फरमान जारी किया और इस प्रकार हिन्दुओं के मन को ठेस पहुंचाई। 
¯ शिया रियासतों के विरुद्ध युद्ध लड़ने में भी वह धार्मिक विचारों से ही प्रभावित हुआ। 
¯ बुरहानपुर में, जहां हिन्दू-मुसलमान एक-दूसरे से विवाह कर लिया करते थे, वहां भी शाहजहां ने हस्तक्षेप किया और मुसलमानों का हिन्दू बनना रोक दिया। 
¯ परन्तु शाहजहां ने राजदरबार में होली व दिवाली जैसे हिन्दू त्यौहारों का मनाया जाना जारी रखा, हिन्दुओं को ऊंचे पदों पर बनाए रखा और मुसलमान पीर-फकीरों के साथ-साथ हिन्दू साधु-सन्तों को दान देने की रीति को बनाए रखा और जजिया तथा यात्रा-कर आदि को दोबारा लगाने का प्रयत्न नहीं किया। 

औरंगजेब: औरंगजेब आरम्भ से ही पक्का सुन्नी मुसलमान था। राजसिंहासन पर बैठते ही उसने सारी शक्ति इस्लाम धर्म के प्रचार में लगा दी। 
¯ उसने कुरान के नियमों को सामने रखते हुए उन सब प्रथाओं को बन्द कर दिया जो उसके अनुकूल नहीं थी। 
¯ सारे देश में नाच-गानों आदि पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। 
¯ दरबार में भी संगीत की मनाही कर दी गई और दरबारी गायकों को चले जाने का हुक्म दिया गया। 
¯ इसी प्रकार चित्रकला पर रोक लगा दी गई क्योंकि इस्लाम धर्म इसकी इजाज़त नहीं देता। 
¯ सिक्कों पर से कलमा हटा देने की आज्ञा दी गई ताकि सिक्कों के कभी पांव तले आने से उसका निरादर न हो। 
¯ स्वयं उसने झरोखे से दर्शन देने की रस्म को बन्द कर दिया क्योंकि कुरान उसकी आज्ञा नहीं देता। 
¯ कुछ इतिहासकारों के अनुसार कट्टर सुन्नी मुसलमान होने पर भी औरंगजेब ने अनेक धर्म-निरपेक्ष कानूनों को जारी किया। इन कानूनों को ‘जवाबित’ कहते हैं और जिस पुस्तक में ऐसे कानूनों को संगठित किया गया है उसे ‘जवाबित-ए-आलमगीरी’ कहा जाता है।
¯ कहा जाता है कि औरंगजेब स्वयं वीणा बजाने में दक्ष था। 
¯ भारतीय संगीत पर फारसी में पुस्तकें सबसे अधिक औरंगजेब के काल में ही लिखी गईं। 
¯ उसने मुसलमान व्यापारियों के लाभ के लिए उन्हें कर-मुक्त व्यापार करने की आज्ञा दे दी परन्तु जब उन्होंने इसका नाजायज फायदा उठाना शुरू किया तो यह कर उन पर फिर से लगा दिया गया। 
¯ औरंगजेब ने 1679 ई. में जजिया कर दोबारा लगा दिया। 
¯ जहां कट्टर मुसलमान होने के नाते वह इस्लाम के नियमों पर चलना चाहता था, वहां एक शासक होने के नाते वह अपने साम्राज्य को सुदृढ़ भी करना चाहता था जो हिन्दुओं की सहायता के बिना सम्भव नहीं था। फिर भी जजिया और यात्रा-कर का दोबारा लगाना, चाहे वह किसी कारण से भी हो, मुगल साम्राज्य के लिए बड़ा हानिकारक सिद्ध हुआ और समय-समय पर राजपूतों, सतनामियों, जाटों, सिक्खों, मराठों के विद्रोह का कारण बना।

शासन व्यवस्था

 केन्द्रीय शासन

¯ केन्द्रीय शासन कई विभागों में विभाजित था तथा प्रत्येक विभाग का एक मंत्री होता था। 
¯ वज़ीर सम्राट का प्रधानमंत्री होता था जो वकील कहलाता था। उसके पास कोई विशेष विभाग न होता था। वह सभी विभागों व सम्पूर्ण साम्राज्य के सुप्रबन्ध के लिए उत्तरदायी होता था। प्रत्येक गम्भीर प्रश्न पर अकबर उससे परामर्श लेता था। वह सेना नायक का कार्य भी करता था। 
¯ ‘दीवान’ राजकोष का प्रधान होता था। उसे हम माल मंत्री कह सकते हैं जो वज़ीर के नीचे था। वह साम्राज्य की आय-व्यय का प्रबंध देखता था। 
¯ ‘खान-ए-सामा’ के अधीन राज परिवार था। वह सम्राट की रसोई व गृह सम्बन्धी अन्य व्यवस्थाएँ करता था। सम्पूर्ण व्यय का वही हिसाब रखता था। 
¯ यह पद भी बड़ा महत्वपूर्ण होता था और अनेक बार वज़ीर ही ‘खान-ए-सामा’ भी होता था। 
¯ ‘सदर-ए-सुदूर’ के नियन्त्रण में दान विभाग था। 
¯ ‘मोहतासिब’ इस विभाग का प्रधान था। वह जनता के आचरण का निरीक्षण करता था कि जनता राजनियमों का किस सीमा तक पालन कर रही है। 
¯  ‘मीर अतिश’ तोपखाने का प्रमुख था, वह ‘दरोगा-ए-तोपखाना’ भी कहलाता था। वह तोपखाने की पूरी व्यवस्था करता था। 
 ¯ ‘दरोगा-ए-डाक चैकी’ गुप्तचर विभाग का प्रधान था तथा साम्राज्य की डाक का पूर्ण प्रबन्ध करता था। 
¯ टकसाल की व्यवस्था देखने वाला एक दरोगा होता था।

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FAQs on मुगलों की धार्मिक नीति और शासन व्यवस्था - मुगल साम्राज्य, इतिहास, युपीएससी - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. मुगलों ने अपनी धार्मिक नीति को कैसे अपनाया था?
उत्तर: मुगल साम्राज्य के समय मुस्लिम धर्म को बढ़ावा दिया गया था और इसे प्रचलित किया गया था। मुगल शासकों ने इस्लाम के नियमों का पालन करने की अपेक्षा रखी थी और इससे कुछ लोगों को नाराजगी भी हुई थी। इसके अलावा, वे अन्य धर्मों के प्रति भी सहज थे और उन्होंने इस्लाम को मजबूत करने के लिए धर्म सम्मेलन आयोजित किए।
2. मुगल साम्राज्य की शासन व्यवस्था की विशेषताएं क्या थीं?
उत्तर: मुगल साम्राज्य की शासन व्यवस्था शासक के अनुशासन में थी। शासक को अपनी सेवा में कुशल लोगों को नियुक्त किया जाता था जो शासन के विभिन्न क्षेत्रों में काम करते थे। उनमें से अधिकांश लोग मुस्लिम थे लेकिन कुछ हिंदू और अन्य धर्मों के लोग भी थे। शासन का विस्तार इम्पीरियल आईना था, जो शासक के बड़े शहरों के ज़िलों तक फैला था। शासक अपने सम्राटीय अधिकारों के अलावा अपने वजीरों के सुझावों पर भी निर्णय लेते थे।
3. मुगल साम्राज्य की शासन व्यवस्था में शिक्षा का क्या महत्व था?
उत्तर: मुगल साम्राज्य की शासन व्यवस्था में शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण थी। शासकों ने शिक्षा को महत्व दिया और उन्होंने शिक्षा के लिए विशेष कार्यक्रम शुरू किए। शासक अकबर से लेकर औरंगजेब तक कई शिक्षकों को नियुक्त किया गया था जो विभिन्न विषयों में शिक्षा देते थे।
4. मुगल साम्राज्य में न्याय प्रणाली कैसी थी?
उत्तर: मुगल साम्राज्य में न्याय प्रणाली थोड़ी अलग थी। शासक को न्याय कार्यक्रम को नियंत्रण में रखना था और वे जांच-पड़ताल का अधिकार भी रखते थे। शासक न्याय के मामलों में धार्मिक भावनाओं का ख्याल रखते थे और इसलिए इस्लामिक न्याय पद्धति द्वारा न्याय किया जाता था।
5. मुगल साम्राज्य के समय व्यापार कैसे था?
उत्तर: मुगल साम्राज्य के समय व्यापार व्यवस्था खूबसूरत थी। शासक से लेकर व्यापारियों तक सभी लोग व्यापार करने में रुचि रखते थे। मुगल साम्राज्य एक व्यवस्थित व्यापार नेटवर्क के साथ आता था और इसलिए व्यापार बढ़ावा मिलता था। शासक ने विदेशी व्यापार को भी बढ़ावा दिया था जिससे देश का अर्थव्यवस्था सुधारी गयी थी।
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