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राज्य सूची के विषयों पर संसद को कानून बनाने का अधिकार - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था | Revision Notes for UPSC Hindi PDF Download

ये परिस्थितियां निम्नलिखित है-

(1) राष्ट्रीय हित में राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने की संसद की शक्ति-संविधान के अनुच्छेद 249 में यह प्रावधान किया गया है कि यदि राज्य सभा अपने उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से यह प्रस्ताव पारित कर दे कि राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखकर संसद राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाये, तो संसद को राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। संसद द्वारा इस प्रकार निर्मित कानून एक वर्ष की अवधि के लिए प्रवर्तनीय होता है, लेकिन राज्य सभा एक वर्ष में पुनः प्रस्ताव पारित करके संसद द्वारा पारित कानून के प्रवर्तन की अवधि एक वर्ष या बार-बार कई वर्षों के लिए बढ़ा सकती है। राज्य सभा ने इस शक्ति का प्रयोग अभी तक केवल एक बार 1950 में किया है जब संसद द्वारा व्यापार तथा वाणिज्य से सम्बन्धित कानून बनाया गया था।

(2) राज्यों की सहमति से विधि बनाने की संसद की शक्ति-जब दो या दो से अधिक राज्यों के विधानमण्डल प्रस्ताव पारित करके संसद से यह अनुरोध करे कि वह राज्य सूची में वर्णित किसी विषय पर कानून का निर्माण करे, तब संसद राज्य सूची में वर्णित उन विषयों, जिन पर कानून बनाने का अनुरोध किया गया है, पर कानून बना सकती है, लेकिन संसद द्वारा इस प्रकार निर्मित कानून केवल उन राज्यों पर लागू होता है, जिनके विधान मण्डल कानून बनाने का अनुरोध करे। राज्य विधान मण्डलों द्वारा संविधान के प्रवर्तन के बाद अब तक केवल दो बार राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार दिया गया है-
(i) पांच राज्यों (बम्बई, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, पंजाब तथा उत्तर प्रदेश) द्वारा 1953 में सम्पदा शुल्क पर कानून बनाने के लिए।
(ii) आठ राज्यों (आन्ध्र प्रदेश, बम्बई, मद्रास, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, हैदराबाद, पेप्सू तथा सौराष्ट्र) द्वारा 1955 में पुरस्कार प्रतियोगिता पर कानून बनाने के लिए।

संसद द्वारा राज्यों के विधानमण्डलों के अनुरोध पर पारित कानून में संशोधन का अधिकार केवल संसद को है, न कि राज्य विधानमण्डलों को।

(3) राष्ट्रीय आपात के समय कानून बनाने की संसद की शक्ति-जब कभी राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया जाय, तब संसद को राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। लेकिन संसद द्वारा इस प्रकार राज्य सूची पर बनाया गया कानून आपातकाल की अवधि के समापन के 6 माह के बाद अप्रवर्तनीय हो जाता है।

(4) राष्ट्रपति शासन लागू होने की स्थिति में संसद की शक्ति-जब राज्य में संवैधानिक तन्त्रा की विफलता के कारण राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है, तब संसद को राज्य सूची पर विधि निर्माण का या राज्य विधानमण्डल द्वारा प्रयुक्त की जाने वाली शक्ति के प्रयोग का अधिकार प्राप्त हो जाता है। यदि संसद चाहे तो इस प्रकार राज्य विधानमण्डल की प्राप्त शक्ति के प्रयोग का अधिकार राष्ट्रपति को दे सकती है तथा राष्ट्रपति कुछ शर्तों के साथ इनके प्रयोग का अधिकार अन्य प्राधिकारी को दे सकता है। संसद या राष्ट्रपति या किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा राष्ट्रपति शासन के दौरान निर्मित कानून तब तक लागू रहते है जब तक विधान मण्डल उसे निरस्त न कर दे।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • भारतीय संसद का निर्माण किन-किन इकाइयों के सम्मलेन से हुआ है? - राष्ट्रपति, राज्यसभा तथा लोकसभा
  • पंचायती राज संस्था को गतिशील बनाने हेतु सिफारिश करने के लिए 1977 में किस समिति का गठन हुआ था? - अशोक मेहता समिति
  • भारतीय संविधान को बनाने में कितने रुपये का व्यय हुआ? - 63,96,729 रुपये
  • संघ की कार्यपालिका की शक्ति का स्वामी कौन होता है? - राष्ट्रपति
  • जम्मू-कश्मीर के संविधान में संशोधन करने का अधिकार किसे है? - राज्य विधानमण्डल
  • राष्ट्रपति किस स्थिति में अध्यादेश जारी कर सकता है? - संसद के अधिवेशन में न रहने की स्थिति में
  • विधि की ‘उचित प्रक्रिया’ किस देश के संविधान की ‘न्यायिक समीक्षा’ की विशेषता है? - संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान की
  • संविधान के किस भाग को भारत का ‘मैग्ना कार्टा’ कहा जाता है?  - भाग-3 को
  • राष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी विवादों का निर्णय कौन करता है? - सर्वोच्च न्यायालय
  • संसद के सदस्य की अयोग्यता से संबंधित विवाद का निर्णय कौन करता है? - निर्वाचन आयोग
  • राज्यसभा लोकसभा के बराबर किस क्षेत्र में है? - संविधान संशोधन
  • देशी नरेशों के प्रिवीपर्सों और विशेषाधिकारों को किस संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा समाप्त किया गया? - 26वें संविधान संशोधन द्वारा
  • मूल संविधान में राज्यों के चार अलग-अलग प्रवर्गों को समाप्त करने के लिए किसकी अध्यक्षता में राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया गया? - फजल अली

 

राज्य के विधायी मामलों पर केन्द्रीय नियन्त्रण

(1) राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयकों का आरक्षित किया जाना-संविधान में यह व्यवस्था की गयी है कि राज्यपाल राज्य विधान सभा द्वारा पारित विधेयक पर अपनी सम्मति देने के पूर्व उसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखे। जिस विधेयक में उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में कमी करने का प्रावधान किया गया है, उसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित करना राज्यपाल का संवैधानिक दायित्व है। इसी तरह राज्य विधान मण्डल द्वारा पारित समवर्ती सूची में वर्णित विषयों से सम्बन्धित विधेयक राज्यपाल राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित कर सकता है। इसके अतिरिक्त आपातकाल की उद्धोषणा के प्रवर्तन में रहने के दौरान राष्ट्रपति राज्यपाल को यह निर्देश दे सकता है कि राज्य के विधानमण्डल द्वारा पारित वित्तीय तथा साधारण विधेयक को उसकी अनुमति के लिए आरक्षित रखा जाय।

विधेयक को राष्ट्रपति की अनुमति के लिए आरक्षित किये जाने पर प्रक्रिया जब राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को राष्ट्रपति की अनुमति के लिए आरक्षित करके उसके समक्ष पेश किया जाता है, तब उसके पास विधेयक के सम्बन्ध में दो विकल्प उपलब्ध होते है। पहला यह कि या तो वह विधेयक पर अपनी अनुमति प्रदान कर दे या दूसरा, यदि वह चाहे, तो उस विधेयक को अपनी टिप्पणी सहित विधान मण्डल के पास पुनर्विचार के लिए भेज सकता है। यदि कोई विधेयक विधान मण्डल के पुनर्विचार के लिए भेजा जाता है, तो राष्ट्रपति के पास उस विधेयक को 6 माह के अन्दर वापस भेजा जाना चाहिए, चाहे विधेयक को राष्ट्रपति की टिप्पणी के अनुसार संशोधित किया गया हो या नहीं। दूसरी बार विधेयक प्राप्त करने पर राष्ट्रपति उस पर अपनी सम्मति देने के लिए बाध्य नहीं है।

(2) राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति से विधि निर्माण राज्य सूची में कुछ ऐसे विषयों को शामिल किया गया है, जिन पर राष्ट्रपति की पूर्व सहमति के बिना कानून का निर्माण नहीं किया जा सकता अर्थात् इन विषयों पर कानून निर्माण के लिए राज्य विधानमण्डल में विधेयक पेश करने के पूर्व राष्ट्रपति की सहमति आवश्यक है। उदाहरणार्थ राज्य सूची में वर्णित व्यापार तथा वाणिज्य विषय पर कानून बनाने के लिए राज्य विधानमण्डल में विधेयक पेश करने के पूर्व उस विधेयक पर राष्ट्रपति की सहमति आवश्यक है।

प्रशासनिक या कार्यपालिका सम्बन्ध

भारतीय संविधान में इस सिद्धान्त को मान्यता दी गयी है कि कार्यपालिका विधान पालिका की सहविस्तारी है अर्थात् जिस विषय पर संसद कानून बना सकती है, उस विषय पर केन्द्रीय कार्यपालिका का नियन्त्राण होगा और जिस विषय पर राज्य का विधान मण्डल कानून बना सकता है, उस विषय पर राज्य की कार्यपालिका का नियन्त्राण रहता है। इस प्रकार संघ सूची के विषयों पर केन्द्र सरकार को तथा राज्य सूची के विषयों पर राज्य सरकार को प्रशासन करने की अधिकारिता है। संविधान की सातवीं अनुसूची में शामिल समवर्ती सूची के विषयों पर कार्यपालिका शक्ति राज्यों के पास है लेकिन इसके कुछ अपवाद भी है, जैसे जब संविधान ऐसे विषयों से सम्बन्धित किसी कार्यपालिका शक्ति को केन्द्र सरकार में निहित करता है, जैसे भूमि अर्जन अधिनियम, 1894 तथा औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947, तो इन अधिनियमों में अन्तर्विष्ट प्रावधानों को कार्यान्वित करने की शक्ति केन्द्र के पास है।

प्रशासन के सम्बन्ध में राज्यों को निर्देश देने की केन्द्र की शक्ति

(i)सामान्य स्थिति में-केन्द्र सरकार सामान्य स्थिति में राज्यों को निम्नलिखित निर्देश दे सकती है-
(क) राज्य में प्रवर्तित केन्द्रीय विधि तथा विद्यमान विधियों के सम्यक् अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए,
(ख) यह सुनिश्चित करने के लिए कि केन्द्र की कार्यपालिका शक्ति के प्रयोग में राज्य की कार्यपालिका शक्ति हस्तक्षेप नहीं करती,
(ग) राज्य द्वारा राष्ट्रीय या सैनिक महत्व के संचार साधनों के निर्माण तथा उन्हें बनाये रखे जाने को सुनिश्चित करने के लिए,
(घ) राज्य के सीमा क्षेत्रा के अन्तर्गत रेलों के संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए,
(ङ) अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए योजना बनाने तथा उसके क्रियान्वयन के लिए,
(च) भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त सुविधायें सुनिश्चित करने के लिए,
(छ) हिन्दी भाषा का विकास सुनिश्चित करने के लिए,
(ज) यह सुनिश्चित करने के लिए कि राज्य की सरकार संविधान के अनुसार चलाई जाय।

(ii) आपातकालीन स्थिति में- आपातकालीन स्थिति में केन्द्र सरकार राज्य को निम्नलिखित निर्देश दे सकती है-
(क) किसी विषय के सम्बन्ध में राज्य की कार्यपालिका शक्ति का किस प्रकार प्रयोग किया जाये,
(ख) राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने की स्थिति में राज्य की समस्त कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग करने के लिए।

(iii) वित्तीय आपातकालीन स्थिति में - वित्तीय आपातकालीन स्थिति में केन्द्र सरकार राज्य सरकार को निम्नलिखित निर्देश दे सकती है-
(क) ऐसे वित्तीय सिद्धान्तों का पालन करने के लिए, जो निदेशों के अनुसार विनिर्दिष्ट किये जाएं,
(ख) राज्य में सेवारत सभी या किसी वर्ग के व्यक्तियों, जिनके अन्तर्गत उच्च यायालय के न्यायाधीश भी है, के वेतन तथा भत्ते में कमी करने के लिए,
(ग) धन विधेयकों या ऐसे अन्य विधेयकों को राज्य विधान मण्डल द्वारा पारित किये जाने के बाद राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित करने के लिए।

केन्द्र के निर्देश को न मानने का प्रभाव - यदि राज्य सरकारें केन्द्र सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करने में असमर्थ रहती है, या पालन करने में उपेक्षा बरतती है, तो उन्हें केन्द्र सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा बर्खास्त किया जा सकता है और राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • 13 दिसम्बर, 1946 को ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ प्रस्तुत कियावह कब पारित हुआ था? - 22 जनवरी, 1947 
  • 26 जनवरी, 1950 को भारत को क्या घोषित किया गया? - पूर्ण प्रमुख सम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य
  • 69वां संविधान संशोधन कब हुआ? - 1991 में
  • भारत में कितने केंद्र प्रशासित प्रदेश हैं? - केन्द्रशासित क्षेत्र-6, अंडमान निकोबार द्वीप समूहचंडीगढ़दादर नागर हवेली,दमन और दियूपांडिचेरीलक्षद्वीप राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली
  • संविधान के किस अनुच्छेद में कहा गया है कि भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा? - अनुच्छेद 63 में
  • भारत की संचित निधि सेभारत के न्यायाधीशों को वेतन तथा भत्ते कहां से दिए जाते हैं? - 
  • भारतीय संविधान के किस भाग को उसकी ‘आत्मा’ की संज्ञा दी जाती है? - प्रस्तावना
  • 12मूल रूप में स्वीकृत संविधान में 22 भाग, 395 अनुच्छेद तथा 9 अनुसूचियां थीं। इस समय संविधान के अनुसूचियों की कुल संख्या है? - 
  • संविधान के अनुसार भारतीय संसद का कार्य किस-किस भाषा में किया जाता है? (अनुच्छेद 120 के तहत) - हिंदी अंग्रेजी में 
  • निर्वाचन आयोग नामक एक स्वतंत्र निकाय का सृजन संविधान के किस अनुच्छेद के तहत किया गया है? - अनुच्छेद 324 
  • मार्ले-मिन्टो सुधारभारतीय परिषद् अधिनियम 1909 किस नाम से प्रचलित है? -  
  • ब्रिटिश संसद द्वारा बनाया गया ‘भारत सरकार अधिनियम 1858श् का अर्थ क्या था? - भारत का शासन चलाना
  • भारतीय संविधान में संविधान संशोधन की प्रक्रिया किस अनुच्छेद के अन्तर्गत दी गई है? -  अनुच्छेद 368 
  • 45 से 63 विषयों परकेन्द्र सरकार को संघीय सूची के कितने विषयों पर अधिकार प्राप्त है? -  
  • लोक सभा के अधिवेशन की प्रथम बैठक के बीच कितने महीने का अधिक से अधिक अंतर होना चाहिए?  -  6 महीने

वित्तीय सम्बन्ध

संविधान में केन्द्र तथा राज्यों के मध्य राजस्व के स्रोतों का स्पष्ट विभाजन किया गया है तथा संविधान में यह प्रावधान भी किया गया है कि संसद संघ सूची में वर्णित विषयों पर कर अधिरोपित कर सकती है, जबकि राज्य विधान मण्डल राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कर अधिरोपित कर सकता है।

संघ के प्रमुख राजस्व स्रोत-संघ के प्रमुख राजस्व स्रोत इस प्रकार है-निगम कर, सीमा शुल्क, निर्यात शुल्क, कृषि भूमि को छोड़कर अन्य सम्पत्ति पर सम्पदा शुल्क, विदेशी ऋण, रेल, रिजर्व बैंक तथा शेयर बाजार।
राज्य के प्रमुख राजस्व स्रोत-राज्यों के प्रमुख राजस्व स्रोत है-व्यक्ति कर, कृषि भूमि पर कर, सम्पदा शुल्क, भूमि और भवनों पर कर, पशुओं तथा नौकायन पर कर, बिजली के उपयोग तथा विक्रय पर कर, वाहनों पर चुंगी आदि।

संघ द्वारा लगाये गये तथा राज्य द्वारा वसूले जाने वाले कर-जो कर संघ द्वारा लगाये जाते है लेकिन राज्य द्वारा वसूले जाते है, वे है-वसीयतों, विनिमय पत्रों, वचन पत्रों, हुण्डियों, चेकों आदि पर स्टाम्प शुल्क, दवा तथा मादक द्रव्य कर पर तथा औषधि एवं प्रसाधन सामग्री पर लगाये गये कर।
संघ द्वारा लगाये तथा वसूले जाने वाले लेकिन राज्यों में वितरित किये जाने वाले कर-
(i) कृषि भूमि से भिन्न सम्पत्ति के उत्तराधिकार के सम्बन्ध में शुल्क,
(ii) रेल, समुद्र, वायु मार्ग द्वारा ले जाये जाने वाले माल या यात्रियों पर सीमा कर,
(iii) रेल भाड़ातथा माल भाड़ों पर कर,
(iv) स्टाक एक्सचेन्जों तथा शेयर बाजारों के संव्यवहारों पर स्टाम्प शुल्क से भिन्न कर,
(v) कृषि से भिन्न सम्पत्ति के सम्बन्ध में सम्पदा शुल्क,
(vi) समाचार पत्रों के क्रय या विक्रय पर और उनमें प्रकाशित विज्ञापनों पर कर,
(vii) समाचार पत्रों से भिन्न माल के क्रय या विक्रय पर उस दशा में कर, जिसमें ऐसा क्रय या विक्रय अन्तर्राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के दौरान होता है,
(vii) माल के पोषण पर उस दशा में कर, जिसमें ऐसी घोषणा अन्तर्राज्यिक व्यापार या वाणिज्य के दौरान होती है।

सहायता अनुदान-संघ द्वारा करों को उद्रहीत करके राज्यों में वितरित किये जाने के बाद भी यह आवश्यक नहीं है कि राज्यों के संसाधन पर्याप्त हों। राज्यों के संसाधन के पर्याप्त न होने की स्थिति में संविधान में यह प्रावधान किया गया है कि प्रत्येक वर्ष संघ ऐसे राज्यों को सहायता अनुदान देगा, जिनके बारे में संसद यह निर्धारित करे कि उन्हें सहायता की आवश्यकता है। विशेषकर राज्यों को जनजातीय क्षेत्रों के कल्याण के लिए अनुदान दिये जायेंगे, जिसमें इस सम्बन्ध में असम को दी जाने वाली सहायता भी शामिल है।

संघ तथा राज्य की उधार लेने वाली शक्ति-संघ को भारत सरकार के राजस्व की प्रतिभूति (security) पर भारत के बाहर उधार लेने की असीमित शक्ति है लेकिन संघ इस शक्ति का प्रयोग संसद द्वारा विहित सीमाओं के अधीन कर सकता है।

  • राज्य सरकार की उधार लेने की शक्ति सीमित है, जो इस प्रकार है-
    (क) राज्य भारत से बाहर उधार नहीं ले सकते,
    (ख) राज्य सरकार को अपने राजस्व की प्रतिभूति पर निम्नलिखित शर्तों के अधीन रहते हुए भारत के राज्य क्षेत्रा के अन्तर्गत उधार लेने की शक्ति है-
    (i) उन शर्तों के अधीन, जो राज्य विधान मण्डल विहित करता है,
    (ii) यदि संघ ने राज्य के किसी बकाया उधार की प्रतिभूति दी है, तो संघ सरकार की सम्मति के बिना राज्य ऋण नहीं ले सकता।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • राज्यसभा सर्वप्रथम कब गठित हुई थी? - 3 अगस्तए 1952
  • ग्राम सभा की न्यूनतम सदस्य संख्या कितनी होती है? - 250
  • किस संविधान संशोधन द्वारा भारत तथा पाकिस्तान के बीच 1958 की संधि की शर्तों के अनुसार बेरूबारी, खुलना आदि क्षेत्र पाकिस्तान को दे दिए गए? - 9वां संशोधन (1960)
  • संविधान सभा की प्रथम बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई थी। इस बैठक की अध्यक्षता किसने की थी?- डाॅ. सच्चिदानन्द सिन्हा
  • भारतीय संविधान के निर्माण में कुल 2 वर्ष 11 माह और 18 दिन लगे। इस संविधान को कब पारित घोषित किया गया? - 29 नवम्बर, 1949
  • प्रस्तावना के मुताबिक भारतीय संविधान के अधीन सभी शक्तियों के स्रोत हैं - भारत के लोग
  • भारतीय संविधान में विधि द्वारा स्थापित किया गया विधि सिद्धांतों को प्रावधान, जिसके आधार पर भारत का सर्वोच्च न्यायालय कार्य करता है, किस देश के संविधान से लिया गया है? -  जापान
  • केन्द्र और राज्यों के बीच तथा विभिन्न राज्यों के मध्य परस्पर सहयोग के लिए 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत किसकी स्थापना की गयी? - क्षेत्रीय परिषद्
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32) संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के लिए प्रभावी कार्यनिधियां प्रतिपादित करता है। इसीलिए इससे कहा जाता है -  संविधान की आत्मा
  • राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को कितने रुपये जमानत राशि के रूप में जमा करनी पड़ती है? -  15,000 रुपये
  • यदि राष्ट्रपति चुनाव के समय किसी राज्य की विधनसभा भंग हो, तो उसका प्रभाव चुनाव पर पड़ता है या नहीं? -  नहीं पड़ता
  • संविधान की किस अनुसूची में राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के लिए राज्यसभा में स्थानों के आवंटन का उल्लेख किया गया है?  -  चैथी अनुसूची
  • 26 जून, 1975 को आंतरिक गड़बड़ी की आशंका के आधार पर राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा की गयी। यह कब तक प्रवर्तन में रही? -  21 मार्च, 1977 तक
  • संविधान में राज्यसभा का सदस्य चुने जाने के लिए कितने वर्ष की न्यूनतम आयु का प्रावधान है? -  30 वर्षराज्यसभा सर्वप्रथम कब गठित हुई थी? - 3 अगस्तए 1952
  • ग्राम सभा की न्यूनतम सदस्य संख्या कितनी होती है? - 250
  • किस संविधान संशोधन द्वारा भारत तथा पाकिस्तान के बीच 1958 की संधि की शर्तों के अनुसार बेरूबारी, खुलना आदि क्षेत्र पाकिस्तान को दे दिए गए? - 9वां संशोधन (1960)
  • संविधान सभा की प्रथम बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई थी। इस बैठक की अध्यक्षता किसने की थी? - डाॅ. सच्चिदानन्द सिन्हा
  • भारतीय संविधान के निर्माण में कुल 2 वर्ष 11 माह और 18 दिन लगे। इस संविधान को कब पारित घोषित किया गया? - 29 नवम्बर, 1949
  • प्रस्तावना के मुताबिक भारतीय संविधान के अधीन सभी शक्तियों के स्रोत हैं - भारत के लोग
  • भारतीय संविधान में विधि द्वारा स्थापित किया गया विधि सिद्धांतों को प्रावधान, जिसके आधार पर भारत का सर्वोच्च न्यायालय कार्य करता है, किस देश के संविधान से लिया गया है? -  जापान
  • केन्द्र और राज्यों के बीच तथा विभिन्न राज्यों के मध्य परस्पर सहयोग के लिए 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत किसकी स्थापना की गयी? - क्षेत्रीय परिषद्
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32) संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के लिए प्रभावी कार्यनिधियां प्रतिपादित करता है। इसीलिए इससे कहा जाता है -  संविधान की आत्मा
  • राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को कितने रुपये जमानत राशि के रूप में जमा करनी पड़ती है? -  15,000 रुपये
  • यदि राष्ट्रपति चुनाव के समय किसी राज्य की विधनसभा भंग हो, तो उसका प्रभाव चुनाव पर पड़ता है या नहीं? -  नहीं पड़ता
  • संविधान की किस अनुसूची में राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के लिए राज्यसभा में स्थानों के आवंटन का उल्लेख किया गया है?  -  चैथी अनुसूची
  • 26 जून, 1975 को आंतरिक गड़बड़ी की आशंका के आधार पर राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा की गयी। यह कब तक प्रवर्तन में रही? -  21 मार्च, 1977 तक
  • संविधान में राज्यसभा का सदस्य चुने जाने के लिए कितने वर्ष की न्यूनतम आयु का प्रावधान है? -  30 वर्ष


केन्द्र राज्य संबंधों से संबंधित आयोग

केन्द्र तथा राज्य के मध्य विवाद को सुलझाने के लिए मुख्यतः चार आयोग गठित किये गये है, जो इस प्रकार हैं-प्रशासनिक सुधार आयोग (1970), राजमन्नार आयोग (1970), भगवान सहाय समिति (1971) तथा सरकारिया आयोग (1987)। इनमें से प्रथम तीन आयोग/समिति की रिपोर्ट में की गयी सिफारिशें अमान्य कर दी गयी है, जबकि सरकारिया आयोग की सिफारिशों में से कुछ को स्वीकार करने की घोषणा की गयी है।

सरकारिया आयोग की सिफारिश-केन्द्र तथा राज्य सम्बन्धों पर विचार करने के लिए 1983 में न्यायमूर्ति आर. एस. सरकारिया की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया था। इस समिति ने 1987 में अपनी रिपोर्ट केन्द्र सरकार को सौंप दी। 1600 पृष्ठीय रिपोर्ट में आयोग द्वारा की गयी सिफारिशों में मुख्य निम्नलिखित है-

(i) केन्द्र-राज्य से सम्बन्धित संवैधानिक प्रावधान में कोई संशोधन न तो उचित है और न ही आवश्यक। देश की एकता तथा अखण्डता के लिए मजबूत केन्द्र अनिवार्य है।
(ii) राज्यों में राष्ट्रपति शासन को अन्तिम विकल्प के रूप में लागू किया जाना चाहिए तथा राज्यपाल को 5 वर्ष के लिए नियुक्त किया जाना चाहिए और बीच में इनका स्थानान्तरण नहीं करना चाहिए।
(iii) केन्द्र तथा राज्यों के बीच निगम कर के उचित बंटवारे के लिए संविधान में संशोधन किया जाना चाहिए।
(iv) समवर्ती सूची में अन्तर्विष्ट विषयों के सम्बन्ध में केन्द्र सरकार तथा राज्यों की सरकारों के बीच विचार-विमर्श किया जाना चाहिए।
(v) राज्यों को ऋण देने की पद्धति पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए और केन्द्र द्वारा प्रायोजित परियोजनाओं की संख्या कम से कम रखी जानी चाहिए।
(vi) राज्यों में केन्द्रीय सुरक्षा बलों को तैनात करने में केन्द्र सरकार को पूरा अधिकार होना चाहिए तथा केन्द्र राज्य की इच्छा के विरुद्ध भी केन्द्रीय सुरक्षा बलों को तैनात कर सकता है।
(vii) अभियांत्रिकी, चिकित्सा तथा शिक्षा के लिए अखिल भारतीय सेवा का गठन किया जाना चाहिए।
(viii) योजना आयोग को स्वायत्तशासी संस्था बनाया जाए।
(ix) राष्ट्रीय विकास परिषद् के नाम में परिवर्तन करके इसका नाम राष्ट्रीय एवं आर्थिक विकास परिषद् करना चाहिए तथा इसे और अधिक प्रभावी बनाया जाना चाहिए, जिससे यह केन्द्र तथा राज्य सरकारों के बीच राजनीतिक स्तर की सर्वोच्च संस्था हो सके।
(x) किसी राज्य के मुख्यमंत्राी या पूर्व मंत्राी के विरुद्ध पद के दुरुपयोग के आरोपों की जांच के लिए आयोग की नियुक्ति के प्रस्ताव पर संसद के दोनों सदनों में उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत का समर्थन होना चाहिए।
(xi) देश की एकता तथा अखण्डता के लिए त्रिभाषा सूत्रा को सभी राज्यों में लागू करने के लिए प्रभावी कदम उठाये जाने चाहिए।

 

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FAQs on राज्य सूची के विषयों पर संसद को कानून बनाने का अधिकार - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था - Revision Notes for UPSC Hindi

1. What is the meaning of the right of Parliament to make laws on the subjects mentioned in the State List?
Ans. The Constitution of India divides the powers between the Centre and the States. The State List consists of subjects that are under the exclusive jurisdiction of the States. However, under certain circumstances, such as when a subject in the State List is of national importance, Parliament can make laws on that subject. This is known as the right of Parliament to make laws on the subjects mentioned in the State List.
2. What is the purpose of the provision that allows Parliament to make laws on State List subjects?
Ans. The provision that allows Parliament to make laws on State List subjects is intended to ensure that there is uniformity in laws across the country, especially in matters of national importance. This provision ensures that the Centre can make laws on State List subjects if there is a need for national uniformity or if a national emergency arises.
3. Can Parliament make laws on State List subjects without the consent of the State government?
Ans. No, Parliament cannot make laws on State List subjects without the consent of the State government. However, in certain circumstances, such as when a subject in the State List is of national importance, Parliament can make laws on that subject even without the consent of the State government.
4. How does the provision that allows Parliament to make laws on State List subjects affect the federal structure of India?
Ans. The provision that allows Parliament to make laws on State List subjects affects the federal structure of India by giving the Centre a degree of control over the States. This provision ensures that the Centre can make laws on State List subjects if there is a need for national uniformity or if a national emergency arises. However, it is important to note that the Constitution of India is based on a federal structure, and the States have a high degree of autonomy.
5. What is the significance of the provision that allows Parliament to make laws on State List subjects for UPSC aspirants?
Ans. The provision that allows Parliament to make laws on State List subjects is significant for UPSC aspirants as it is an important feature of the Indian Constitution. UPSC aspirants should have a thorough understanding of the federal structure of India and the distribution of powers between the Centre and the States. They should also be aware of the circumstances under which Parliament can make laws on State List subjects and the impact of this provision on the federal structure of India.
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