UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly  >  Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): October 2022 UPSC Current Affairs

Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): October 2022 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

पर्यावरणीय मुद्दों को सुलझाने में नैनोमैटेरियल्स की भूमिका 

 

चर्चा में क्यों?
नैनोमैटेरियल्स या कार्बन डॉट्स (CD) जैसी आधुनिक तकनीक का उपयोग जल प्रदूषण जैसे पर्यावरणीय मुद्दों के समाधान में मदद कर सकता है।

  • शहरी विकास ने जल निकायों में हानिकारक और ज़हरीले प्रदूषकों की शुरुआत के परिणामस्वरूप जलीय पर्यावरण की आधुनिक समाज की अखंडता को नष्ट कर दिया है।
  • नैनो टेक्नोलॉजी जैसे आदर्श तकनीकी विकास टिकाऊ और कुशल पर्यावरणीय स्वच्छता के लिये अभिनव समाधान प्रदान करते हैं।

नैनो टेक्नोलॉजी/नैनो तकनीक

  • परिचय:
    • नैनो टेक्नोलॉजी भौतिक घटनाओं का अध्ययन करने और 1 से 100 नैनोमीटर (NM) तक भौतिक आकार सीमा में नई सामग्री एवं उपकरणों की संरचना विकसित करने के लिये तकनीकों का उपयोग तथा विकास है।
    • नैनो टेक्नोलॉजी हमारे जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों को प्रभावित करती है, जिसमें विनिर्माण, इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटर और सूचना प्रौद्योगिकी, चिकित्सा, पर्यावरण एवं ऊर्जा भंडारण, रासायनिक तथा जैविक प्रौद्योगिकियाँ और कृषि शामिल है।
  • भारत में नैनो टेक्नोलॉजी:
    • भारत में नैनोटेक्नोलॉजी के उद्भव ने अभिकर्त्ताओं के विविध समूह की भागीदारी देखी है, जिनमें से प्रत्येक का अपना एजेंडा और भूमिका है।
    • वर्तमान में भारत में नैनो तकनीक ज़्यादातर सरकार के नेतृत्व वाली पहल है। उद्योग की भागीदारी हाल ही में शुरू हुई है।
    • कुछ अपवादों को छोड़कर नैनो प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं विकास बड़े पैमाने पर सार्वजनिक वित्तपोषित विश्वविद्यालयों के साथ-साथ अनुसंधान संस्थानों में किया जा रहा है।

कार्बन डॉट्स

  • परिचय:
    • CDs कार्बन नैनोमटेरियल समूह के सबसे नया सदस्यों में से एक हैं।
    • इसे वर्ष 2004 में खोजा गया था और इसका औसत व्यास 10 नैनोमीटर से कम है।
    • CD में उल्लेखनीय ऑप्टिकल गुण होते हैं, जो संश्लेषण के लिये उपयोग किये जाने वाले अग्रदूत के आधार पर विशिष्ट रूप से भिन्न होते हैं।
    • यह अपने अच्छे इलेक्ट्रॉनदाताओं और ग्राह्यता के कारण सेंसिंग एवं बायोइमेजिंग जैसे अनुप्रयोगों में अधिक लोकप्रिय हो रहे हैं।
    • बायोइमेजिंग उन तरीकों से संबंधित है जो वास्तविक समय में जैविक प्रक्रियाओं की कल्पना करते हैं।
    • इसके अलावा CDs सस्ती, अत्यधिक जैव-संगत और पर्यावरण के अनुकूल हैं।

पर्यावरणीय मुद्दों के प्रबंधन में CDs की भूमिका:

  • प्रदूषक संवेदन:
    • CDs प्रतिदीप्ति (fluorescence) और वर्णमिति (colourimetric) पर्यावरण प्रदूषकों का पता लगाने के लिये एक उत्कृष्ट संभावना प्रदान करते हैं।
    • ये अपने उच्च प्रतिदीप्ति उत्सर्जन के कारण प्रदूषक का पता लगाने के लिये एक फ्लोरोसेंट नैनोप्रोब के रूप में व्यापक रूप से उपयोग किये जाते हैं।
    • ये वर्णमिति (colourimetric) विधि द्वारा रंग परिवर्तन के साथ प्रदूषकों का पता लगाने में भी सक्षम बनाते हैं।  
  • प्रदूषक ग्राही (Contaminant Adsorption):
    • यह प्रौद्योगिकी इनके छोटे आकार और बड़े विशिष्ट सतह क्षेत्र के कारण सतह पर प्रदूषक ग्राही की सुविधा दे सकती है।
  • जल उपचार:
    • CDs, जल उपचार के लिये भी उपयोगी हो सकते हैं क्योंकि इनसे पतली-फिल्म नैनोकम्पोज़िट झिल्ली के निर्माण द्वारा यह अन्य यौगिकों के साथ रासायनिक बंधन बना सकते हैं।
    • जलकुंभी अपशिष्ट से CDs का उत्पादन किया गया है, जो UV प्रकाश के तहत हरी प्रतिदीप्ति प्रदर्शित करते हैं। जलीय निकायों के लिये नुकसानदायक वनस्पतियों का पता लगाने के लिये ये फ्लोरोसेंट सेंसर भी साबित हुए हैं 
  • प्रदूषक पदार्थों में गिरावट:
    • यह प्रौद्योगिकी अगली पीढ़ी के फोटोकैटलिसिस के लिये अत्याधुनिक दृष्टिकोण प्रदान करके प्रदूषक निराकरण के लिये भी उपयोगी हो सकती है।
    • फोटोकैटलिसिस में प्रकाश और अर्धचालक का उपयोग करके होने वाली प्रतिक्रियाएँ शामिल हैं।
    • प्रदूषित पानी में कार्बनिक प्रदूषक इलेक्ट्रॉन और होल (hole) स्थानांतरित करने वाले एजेंटों के रूप में कार्य कर सकते हैं, जबकि कार्बन डॉट्स फोटोसेंसिटाइज़र के रूप में कार्य करते हैं।
  • रोगाणुरोधी:
    • CDs के रोगाणुरोधी तंत्र में मुख्य रूप से-  भौतिक / यांत्रिक विनाश, ऑक्सीडेटिव तनाव, फोटोकैटालिटिक प्रभाव और जीवाणु चयापचय का निषेध आदि शामिल हैं।
    • दृश्य या प्राकृतिक प्रकाश के तहत बैक्टीरिया सेल के संपर्क में CDs कुशलतापूर्वक प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन प्रजातियाँ उत्पन्न कर सकते हैं।
    • यह डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (डीएनए) या राइबोन्यूक्लिक एसिड (आरएनए) को नुकसान पहुँचा सकता है, जिससे बैक्टीरिया की मृत्यु हो सकती है।

कार्बन डॉट्स के ग्रीन संश्लेषण का वर्गीकरण:

आम तौर पर कार्बन डॉट्स के संश्लेषण को "टॉप-डाउन" और "बॉटम-अप" विधियों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

  • टॉप-डाउन विधि लेज़र पृथक्करण, चाप निर्वहन और रासायनिक या विद्युत रासायनिक ऑक्सीकरण द्वारा बड़े कार्बन संरचनाओं को क्वांटम आकार के कार्बन डॉट्स में परिवर्तित करती है।
  • बॉटम-अप विधि में सीडी पायरोलिसिस, कार्बोनाइज़ेशन, हाइड्रोथर्मल प्रक्रियाओं या माइक्रोवेव-असिस्टेड संश्लेषण द्वारा छोटे अणु अग्रदूतों को कार्बोनाइज़ करने से उत्पन्न होती है।

पिलर्स ऑफ क्रिएशन : जेम्स वेब टेलीस्कोप

चर्चा में क्यों?
अत्यधिक विस्तृत परिदृश्य- "पिलर्स ऑफ़ क्रिएशन" को नासा के शक्तिशाली जेम्स वेब टेलीस्कोप द्वारा कैप्चर किया गया है। 

पिलर्स ऑफ क्रिएशन

  • परिचय:
    • यह तारे के बीच की धूल और गैस से बने तीन उभरते टावरों का एक दृश्य है।
    • ये आइकॉनिक पिलर्स ऑफ क्रिएशन ईगल नेबुला (यह सितारों का एक तारामंडल है) के केंद्र में स्थित है, जिसे मेसियर 16 के नाम से भी जाना जाता है।
    • यह इमेज गैस और धूल के घने बादलों के विशाल, ऊँचे पिलर्स को दिखाती है जहाँ नवीन तारे पृथ्वी से लगभग 6,500 प्रकाश-वर्ष दूर बन रहे हैं।
    • कई पिलर्स के सिरों पर चमकीले लाल, लावा जैसे धब्बे हैं। ये ऐसे सितारों से निकलने वाले इजेक्शन हैं जो अभी भी बन रहे हैं एवं केवल कुछ सौ हजार साल पुराने हैं।
    • इन पिलर्स को हबल स्पेस टेलीस्कोप द्वारा महत्त्व मिला जिसने इन्हें पहली बार वर्ष 1995 में और फिर वर्ष 2014 में कैप्चर किया था।
  • महत्त्व:
    • यह नई इमेज शोधकर्त्ताओं को इस क्षेत्र में गैस और धूल की मात्रा का पता लगाने के साथ-साथ नवगठित तारों के गठन के बारे में अधिक सटीक जानकारी प्रदान करने में सहायक होंगी।

ेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप

  • परिचय:
    • यह टेलीस्कोप नासा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) और कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी के बीच एक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का परिणाम है जिसे दिसंबर 2021 में लॉन्च किया गया था।
    • यह वर्तमान में अंतरिक्ष में एक ऐसे बिंदु पर है जिसे सूर्य-पृथ्वी L2 लैग्रेंज बिंदु के रूप में जाना जाता है, जो सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की कक्षा से लगभग 1.5 मिलियन किमी दूर है।
    • लैग्रेंज प्वाइंट 2 पृथ्वी-सूर्य प्रणाली के कक्षीय तल के पाँच बिंदुओं में से एक है।
    • इतालवी-फ्राँसीसी गणितज्ञ जोसेफी-लुई लैग्रेंज के नाम पर रखा गया यह बिंदु पृथ्वी और सूर्य जैसे किसी भी घूर्णन करने वाले दो पिंडों में विद्यमान होते हैंं जहाँ दो बड़े निकायों के गुरुत्वाकर्षण बल एक-दूसरे को संतुलित कर देते हैं।
    • इन स्थितियों में रखी गई वस्तुएँ अपेक्षाकृत स्थिर होती हैं और उन्हें वहाँ रखने के लिये न्यूनतम बाहरी ऊर्जा या ईंधन की आवश्यकता होती है, अन्य कई उपकरण यहाँ पहले से स्थापित हैं।
    • यह अब तक का सबसे बड़ा, सबसे शक्तिशाली इन्फ्रारेड स्पेस टेलीस्कोप है।
    • यह हबल टेलीस्कोप का उत्तराधिकारी है।
    • यह इतनी दूर आकाशगंगाओं की तलाश में बिग बैंग के ठीक बाद के समय में देख सकता है जिस प्रकाश को उन आकाशगंगाओं से हमारी दूरबीनों तक पहुँचने में कई अरब वर्ष लग गए।
  • उद्देश्य:
    • यह ब्रह्मांड के अतीत के हर चरण की जाँच करेगा: बिग बैंग से लेकर आकाशगंगाओं, तारों और ग्रहों के निर्माण से हमारे अपने सौरमंडल के विकास तक।
    • जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की थीम्स को चार विषयों में बाँटा जा सकता है।
    • पहला, लगभग 13.5 बिलियन वर्ष पूर्व खगोलीय घटना के साथ आरंभ में । तारों एवं आकाशगंगाओं की निर्माण प्रक्रिया को समझना।
    • दूसरा, सबसे कमज़ोर, आरंभिक आकाशगंगाओं की तुलना आज के भव्य सर्पिलों से करना और यह समझना कि आकाशगंगाएँं अरबों वर्षों में कैसे एकत्रित होती हैं।
    • तीसरा, यह जानने का प्रयास करना कि तारे और ग्रह प्रणालियाँ कहाँ उत्पन्न हो रही हैं।
    • चौथा, एक्स्ट्रासोलर ग्रहों (हमारे सौरमंडल से परे) के वातावरण का निरीक्षण करना जिससे ब्रह्मांड में कहीं और जीवन के निर्माण खंडों का पता लगाया जा सके।

भारत का अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र

चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष संघ (ISpA) की वर्षगाँठ मनाने के लिये इंडियन स्पेस कॉन्क्लेव का आयोजन किया गया।

  • अर्नस्ट एंड यंग (EY) और भारतीय अंतरिक्ष संघ (ISpA) द्वारा तैयार की गई संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था वर्ष 2025 तक 13 बिलियन अमेरिकी डाॅलर तक पहुँचने के लिये तैयार है।

प्रमुख बिंदु:

  • स्पेस-लॉन्च सेगमेंट 13% की कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR) से बढ़ेगा, जो निजी भागीदारी बढ़ने, नवीनतम प्रौद्योगिकी अपनाने और लॉन्च सेवाओं की कम लागत से प्रेरित है।
  • उपग्रह सेवाएँ और अनुप्रयोग खंड वर्ष 2025 तक अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र के 36 प्रतिशत के साथ अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा हिस्सा होगा।
  • वर्ष 2025 तक देश का उपग्रह विनिर्माण 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा। वर्ष 2020 में यह 2.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
    • उपग्रह निर्माण भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में दूसरा सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला क्षेत्र होगा।

भारतीय अंतरिक्ष संघ (ISpA):

  • परिचय:
    • इसे वर्ष 2021 में लॉन्च किया गया था, यह अंतरिक्ष और उपग्रह कंपनियों का प्रमुख उद्योग संघ है।
  • अंतरिक्ष सुधार के चार स्तंभ:
    • निजी क्षेत्र को नवाचार की स्वतंत्रता की अनुमति देना।
    • सरकार की भूमिका प्रवर्तक के रूप में।
    • युवाओं को भविष्य के लिये तैयार करना।
    • अंतरिक्ष क्षेत्र को आम आदमी की प्रगति के लिये एक संसाधन के रूप में देखना।
    • ISpA को भारतीय अंतरिक्ष उद्योग को एकीकृत करने के उद्देश्य से प्रारंभ किया गया है। ISpA का प्रतिनिधित्व प्रमुख घरेलू और वैश्विक निगमों द्वारा किया जाएगा जिनके पास अंतरिक्ष तथा उपग्रह प्रौद्योगिकियों में उन्नत क्षमताएँ हैं।
  • उद्देश्य:
    • ISpA भारत को आत्मनिर्भर, तकनीकी रूप से उन्नत और अंतरिक्ष क्षेत्र में अग्रणी बनाने के लिये सरकार तथा उसकी एजेंसियों सहित भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में सभी हितधारकों के साथ नीतिगत एकीकरण एवं परामर्श करेगा।
    • ISpA भारतीय अंतरिक्ष उद्योग के लिये वैश्विक संबंध बनाने की दिशा में भी काम करेगा ताकि देश में महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी और निवेश लाया जा सके तथा अधिक उच्च कौशल वाली नौकरियाँ सृजित की जा सकें।
  • महत्त्व:
    • संगठन के मुख्य लक्ष्यों में से एक भारत को वाणिज्यिक अंतरिक्ष-आधारित क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अग्रणी बनाने की दिशा में सरकार के प्रयासों को पूरा करना है।
    • ISRO के रॉकेट द्वारा विभिन्न देशों के पेलोड और संचार उपग्रहों को ले जाने में लंबा समय लगता है, निजी हितधारकों के प्रवेश से इसमें तेज़ी आएगी।
    • निजी क्षेत्र की कई कंपनियों ने भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में रुचि दिखाई है, जिसमें अंतरिक्ष आधारित संचार नेटवर्क सामने आ रहे हैं।

अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता

  • अंतरिक्ष क्षेत्र के बाज़ार को बढ़ाने की आवश्यकता:
    • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) केंद्र द्वारा वित्तपोषित है और इसका वार्षिक बजट 14,000 से 15,000 करोड़ रुपए के मध्य है, इसका अधिकांश उपयोग रॉकेट और उपग्रहों के निर्माण में किया जाता है।
    • भारत में अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का आकार छोटा है। इस क्षेत्र के आकार को बढ़ाने के लिये निजी हितधारकों का बाज़ार में प्रवेश करना अनिवार्य है।
    • इसरो सभी निजी हितधारकों के लिये ज्ञान और प्रौद्योगिकी, जैसे कि रॉकेट एवं उपग्रहों की निर्माण तकनीक को साझा करने  योजना बना रहा है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप, रूस जैसे देशों में बोइंग, स्पेसएक्स, एयरबस, वर्जिन गैलेक्टिक आदि बड़ी निजी कंपनियाँ अंतरिक्ष उद्योग में संलग्न हैं।
  • निजी क्षेत्रं में सुधार:
    • इस क्षेत्र में निजी क्षेत्र की हमेशा से भागीदारी रही है, लेकिन यह पूरी तरह से पुर्जों और उप-प्रणालियों के निर्माण तक सीमित है। रॉकेट एवं उपग्रहों के निर्माण में सक्षम होने के लिये उद्योगों को प्रोत्साहन प्रदान करने की आवश्यकता है।
    • निजी हितधारक अंतरिक्ष आधारित अनुप्रयोगों और सेवाओं के विकास के लिये आवश्यक नवाचार कर सकते हैं।
    • इसके अतिरिक्त इन सेवाओं की मांग विश्व स्तर पर बढ़ रही है, अधिकांश क्षेत्रों में उपग्रह डेटा, इमेजरी और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा है।
  • संबंधित पहलें:
    • इन-स्पेस (IN-SPACe):
      • इन-स्पेस को निजी कंपनियों को भारतीय अंतरिक्ष अवसंरचना का उपयोग करने के एक समान अवसर प्रदान करने के लिये लॉन्च किया गया था।
      • यह ISRO और अंतरिक्ष से संबंधित गतिविधियों में भाग लेने या भारत के अंतरिक्ष संसाधनों का उपयोग करने वाले सभी लोगों के मध्य सिंगल-पॉइंट इंटरफेस के रूप में कार्य करता है।
      • न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL):
      • बजट 2019 में घोषित NSIL का उद्देश्य भारतीय उद्योग भागीदारों के माध्यम से वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये ISRO द्वारा वर्षों से किये जा रहे अनुसंधान और विकास का उपयोग करना है।

आगे  की राह

  • भारतीय अंतरिक्ष उद्योग पर ISRO के एकाधिकार को ख़त्म करने के लिये एक नई नीति के निर्माण की आवश्यकता है जिसके तहत इच्छुक एवं सक्षम निजी अभिकर्त्ताओं के साथ उपग्रहों एवं रॉकेटों को बनाने के लिये आवश्यक ज्ञान और प्रौद्योगिकी को साझा किया जा सकता है।
  • भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम दुनिया के सर्वश्रेष्ठ अंतरिक्ष कार्यक्रमों में से एक है, इस क्षेत्र में FDI की अनुमति देने का कदम भारत को वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में एक महत्त्वपूर्ण अभिकर्ता के रूप में स्थापित कर सकता है।
  • अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) विदेशी अभिकर्त्ताओं को भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में उद्यम करने की अनुमति देगा, इससे राष्ट्रीय और विदेशी भंडार में योगदान प्राप्त होगा, साथ ही प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एवं नवाचारों हेतु अनुसंधान को बढ़ावा मिलेगा।

नाविक

चर्चा में क्यों?
भारत अपनी क्षेत्रीय उपग्रह नेविगेशन प्रणाली NaVIC (भारतीय नक्षत्र में नेविगेशन) का विस्तार करने की योजना बना रहा है, ताकि देश की सीमाओं से दूर यात्रा करने वाले नागरिक क्षेत्र और जहाज़ों, विमानों में इसके उपयोग को बढ़ाया जा सके।

नाविक:

  • परिचय:
    • कुल आठ उपग्रह हैं लेकिन अभी तक केवल सात ही सक्रिय हैं।
    • भूस्थिर कक्षा में तीन और भू-समकालिक कक्षा में चार उपग्रह स्थापित हैं।
    • नाविक या भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS) को 7 उपग्रहों के एक समूह और 24 x 7 पर चलने वाले ग्राउंड स्टेशनों के नेटवर्क के साथ डिज़ाइन किया गया है।
    • नाविक का पहला उपग्रह (IRNSS-1A) 1 जुलाई, 2013 को लॉन्च किया गया था और आठवांँ उपग्रह RNSS-1 अप्रैल 2018 में लॉन्च किया गया था।
    • तारामंडल के उपग्रह (IRNSS-1G) के सातवें प्रक्षेपण के साथ 2016 में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा IRNSS का नाम बदलकर NaVIC कर दिया गया।
    • इसे अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) द्वारा 2020 में हिंद महासागर क्षेत्र में संचालन के लिये वर्ल्ड-वाइड रेडियो नेविगेशन सिस्टम (WWRNS) के एक भाग के रूप में मान्यता दी गई थी।

संभावित उपयोग:

  • स्थलीय, हवाई और समुद्री नेविगेशन;
  • आपदा प्रबंधन;
  • वाहन ट्रैकिंग और बेड़ा प्रबंधन (विशेषकर खनन व परिवहन क्षेत्र के लिये);
  • मोबाइल फोन के साथ एकीकरण;
  • सटीक समय (एटीएम और पावर ग्रिड के लिये);
  • मानचित्रण और जियोडेटिक डेटा कैप्चर

महत्त्व:

  • यह 2 सेवाओं के लिये वास्तविक समय की जानकारी देता है अर्थात् नागरिक उपयोग के लिये मानक स्थिति सेवा और जिसे सेना के लिये अधिकृत एन्क्रिप्ट की जाने वाली प्रतिबंधित सेवा का संचालन करता है।
  • भारत उन 5 देशों में से एक बन गया जिनके पास अपना नेविगेशन सिस्टम है। इसलिये नेविगेशन उद्देश्यों के लिये अन्य देशों पर भारत की निर्भरता कम हो जाती है।
  • यह भारत में वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति में मदद करेगा। यह देश की संप्रभुता और सामरिक आवश्यकताओं के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • अप्रैल 2019 में, सरकार ने निर्भया मामले के फैसले के अनुसार देश के सभी वाणिज्यिक वाहनों के लिये नाविक-आधारित वाहन ट्रैकर्स को अनिवार्य कर दिया।
  • साथ ही, क्वालकॉम टेक्नोलॉजीज ने नाविक का समर्थन करने वाले मोबाइल चिपसेट का अनावरण किया है
  • इसके अलावा व्यापक कवरेज के साथ परियोजना के भविष्य के उपयोगों में से एक में सार्क देशों के साथ परियोजना को साझा करना शामिल है। इससे क्षेत्रीय नौवहन प्रणाली को और एकीकृत करने में मदद मिलेगी तथा इस क्षेत्र के देशों के प्रति भारत की ओर से कूटनीतिक सद्भावना का संकेत मिलेगा।

मुद्दे एवं उनमें सुधार

  • L बैंड:
    • इसरो ने कम से कम पाँच उपग्रहों को बेहतर L-बैंड से बदलने की योजना बनाई है, जो इसे जनता को बेहतर वैश्विक स्थिति सेवाएंँ प्रदान करने में सक्षम बनाएगा क्योंकि इस समूह के कई उपग्रहों की कार्यावधि को समाप्त कर दिया गया है।
    • निष्क्रिय उपग्रहों को बदलने के लिये समय-समय पर पाँच और उपग्रह प्रक्षेपित किये जाएंगे।
    • नए उपग्रहों में L-1, L-5 और S बैंड होंगे।
    • L1, L2 और L5 GPS आवृत्ति हैं, जहाँ L1 आवृत्ति का उपयोग GPS उपग्रह स्थान को ट्रैक करने के लिये किया जाता है, L2 आवृत्ति का उपयोग GPS उपग्रहों की स्थिति को ट्रैक करने के लिये किया जाता है और L5 आवृत्ति का उपयोग नागरिक उपयोग के लिये सटीकता जैसे कि विमान की सटीकता में सुधार करने के लिये किया जाता है।
    • S बैंड 8-15 सेमी की तरंग दैर्ध्य और 2-4 गीगाहर्ट्ज़ की आवृत्ति पर काम करता है। तरंग दैर्ध्य और आवृत्ति के कारण, S बैंड रडार आसानी से क्षीण नहीं होते हैं। यह उन्हें निकट और दूर के मौसम के अवलोकन के लिये उपयोगी बनाता है।
  • सामरिक क्षेत्र के लिये लॉन्ग कोड:
    • वर्तमान में इसरो केवल शाॅर्ट कोड प्रदान कर रहा है। अब शॉर्ट कोड को रणनीतिक क्षेत्र के उपयोग के लिये लॉन्ग कोड बनना होगा ताकि सिग्नल का उल्लंघन या वह अनुपलब्ध हो सके।
    • ऐसा इसलिये किया जाएगा ताकि यूज़र बेस को चौड़ा किया जा सके और इसे यूज़र फ्रेंडली बनाया जा सके।
  • मोबाइल संगतता:
    • वर्तमान में भारत में मोबाइल फोन को इसके संकेतों को संसाधित करने के लिये अनुकूल नहीं बनाया गया है।
    • भारत सरकार निर्माताओं पर अनुकूल ब्राॅडबैंड के लिये दबाव बना रही है और जनवरी 2023 की समय-सीमा तय की है, लेकिन मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि वर्ष 2025 से पहले इसकी संभावना नहीं है।

दुनिया में अन्य नेविगेशन सिस्टम:

  • चार वैश्विक प्रणालियाँ:
    • अमेरिका का जीपीएस
    • रूस का ग्लोनास
    • यूरोपीय संघ का गैलीलियो
    • चीन का बाइडू
  • दो क्षेत्रीय प्रणालियाँ:
    • भारत का नाविक
    • जापान का QZSS

नाविक की आवश्यकता, अन्य नेवीगेशन प्रणालियों के समांतर:  

  • GPS और ग्लोनास आदि देशों की रक्षा एजेंसियों द्वारा संचालित होती है।
  • यह संभव है कि नागरिक सेवा को बाधित या अस्वीकार किया जा सकता है।
  • नाविक भारतीय क्षेत्र में एक स्वतंत्र क्षेत्रीय प्रणाली है और सेवा क्षेत्र के भीतर स्थिति सेवा प्रदान करने के लिये अन्य प्रणालियों पर निर्भर नहीं है।
  • यह पूरी तरह से भारत सरकार के नियंत्रण में है।

आगे की राह 

  • नाविक को वास्तव में जीपीएस की तरह वैश्विक बनाने के लिये वर्तमान प्रणाली की तुलना में अधिक उपग्रहों को पृथ्वी के करीब एक कक्षा में स्थापित करने की आवश्यकता होगी।
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