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Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): October 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

डिजिटल वर्ल्ड ऑफ कुकीज

सन्दर्भ

  • नवाचार और उद्यमिता के युग में, डिजिटल साक्षरता और अपस्किलिंग आवश्यक हैं।
  • राष्ट्रीय सर्वेक्षण ने भारत में आईटी और कंप्यूटर-आधारित प्रशिक्षण की आवश्यकता को प्रमोट किया है।
  • वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट ने 2025 तक 97 मिलियन नए रोजगारों की सृजन की संभावना बताई है, जो डिजिटल अपस्किलिंग के क्षेत्र में होंगे।
  • भारत को वैश्विक प्रौद्योगिकी नेता बनाने के लिए कुशलता और डिजिटल कौशल को महत्वपूर्ण बनाए रखना आवश्यक है।
  • इसमें सफलता प्राप्त करने के लिए सरकार, व्यवसाय और शैक्षणिक संस्थानों को संयुक्त प्रयास करने की आवश्यकता है।

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WEF रिपोर्ट: डिजिटल-उन्नति और रोजगार सृजन

  • आशावादी किन्तु सजग अनुमान: WEF रिपोर्ट में 2025 तक 97 मिलियन नई नौकरियों की शुद्ध वृद्धि की बात की गई है, जबकि 85 मिलियन नौकरियां अप्रचलित हो सकती हैं। हालांकि, इस परिवर्तन में, श्रम क्षेत्र में रोजगार के साथ मशीनों की बढ़ती भूमिका तथा डेटा-संचालित और मशीन-संचालित प्रक्रियाओं पर निर्भरता शामिल है, विशेष रूप से भविष्य में दोहराए जाने वाले कार्यों के लिए।
  • भारत में प्रौद्योगिकी-संचालित बदलाव: वैश्विक औसत 23% की तुलना में भारत के रोजगार बाजार में थोड़ी कम वृद्धि की उम्मीद है। यह परिवर्तन मुख्य रूप से प्रौद्योगिकी-संचालित होगा, जिसका नेतृत्व 38% एआई और एमएल (मशीन लर्निंग) जैसे क्षेत्रों द्वारा किया जाएगा, इसके बाद 33% डेटा विश्लेषक तथा वैज्ञानिक और 32% डेटा एंट्री क्लर्क होंगे। यद्यपि अर्थव्यवस्था के श्रम प्रधान क्षेत्रों में कम से कम व्यवधान का अनुभव होने की उम्मीद है तथापि, भारतीय और चीनी नियोक्ता प्रतिभा उपलब्धता के संदर्भ में अभी भी आशावादी बने हुए हैं।

भारत की डिजिटल तैयारी के संकेतक

  • मांग-आपूर्ति में भारी अंतर: नैसकॉम, ड्रूप (Draup) और सेल्सफोर्स की एक रिपोर्ट से एआई, एमएल और बिग डेटा एनालिटिक्स (बीडीए) में 51% प्रतिभा मांग-आपूर्ति अंतर का पता चला है, एमएल इंजीनियर, डेटा आर्किटेक्ट और डेटा विशेषज्ञ जैसी भूमिकाओं के लिए 60% से 73% का अंतर और भी घातक है। ।
  • अपस्किलिंग में कमियाँ: प्रतिभा की गुणवत्ता कभी-कभी समस्या को बढ़ा देती है, अपर्याप्त कौशल के कारण इंजीनियरिंग स्नातकों का एक व्यापक हिस्सा बेरोजगार हो जाता है। विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षित कार्यबल में से लगभग 30% ही आईटी प्रशिक्षण है, फिर भी उनमें से 29% बेरोजगार हैं। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना जैसी योजनाओं सहित कौशल प्रशिक्षण प्रयास उनकी आवश्यकतानुसार मानकों से अभी अपर्याप्त है।
  • बुनियादी कंप्यूटर कौशल का अभाव: एनएसएस 2020-21 इस बात पर प्रकाश डालता है कि 42% भारतीय युवाओं के पास केवल बुनियादी कंप्यूटर कौशल है, जबकि केवल 2.4% के पास प्रोग्रामिंग कौशल है। इसके अलावा, केवल 10% युवा कार्यबल ही स्प्रेडशीट प्रस्तुतियाँ और 8.6% युवा इलेक्ट्रॉनिक प्रस्तुतियाँ बनाने में बुनियादी अंकगणितीय सूत्रों से परिचित हैं।
  • कम निवेश: मध्यम-कैरियर अपस्किलिंग में भारत का निवेश औसत है, जो उन्नत शिक्षा वाले लोगों के बीच उच्च बेरोजगारी दर में योगदान देता है।

सरकारी पहल

  • डिजिटल एवं नवाचार कौशल बढ़ाने की दिशा में निवेश करके, सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देकर, सभी स्तरों पर डिजिटल साक्षरता को प्रोत्साहित कर, और नवाचार एवं उद्यमिता को प्राथमिकता दे करके, भारत अपनी विशाल युवा क्षमता का उचित दोहन कर सकता है, आर्थिक विकास को गति दे सकता है और एक समृद्ध और डिजिटल रूप से सशक्त भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
  • यद्यपि भारत सरकार ने इस क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं, जैसे :
    • राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन
    • प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना (4.0)
    • डिजिटल इंडिया मिशन
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020
    • डिजी सक्षम पहल
    • युवा प्लेटफार्म
    • इंडिया स्किल्स 2021
    • पहले की सीख को मान्यता देना
    • प्रशिक्षुता और कौशल में उच्च शिक्षा युवाओं के लिए योजना (श्रेयस)
    • प्रौद्योगिकी के लिए राष्ट्रीय शैक्षिक गठबंधन (NEAT 3.0)

भारत के कार्यबल को डिजिटल रूप से तैयार करना

  • कौशल और निवेश का पुनरुद्धार: भारत को उभरती प्रौद्योगिकियों पर विशेष ध्यान देने के साथ-साथ मौजूद कार्यबल को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अपनी कौशल विकास प्रणाली का पुनर्गठन करना चाहिए। अपनी विस्तृत कामकाजी उम्र की आबादी और युवा जनसांख्यिकी का लाभ उठाते हुए, भारत कौशल में रणनीतिक निवेश के माध्यम से अपनी जनसांख्यिकी का पूरा लाभ उठा सकता है।
  • आईटी कौशल पर विशेष फोकस: विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए, सभी क्षेत्रों के व्यक्तियों के पास विशेष आईटी कौशल होना चाहिए। कौशल भारत मिशन और प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) 4.0 जैसी पहल का उद्देश्य उभरती प्रौद्योगिकियों पर जोर देते हुए आईटी और डिजिटल कौशल सहित विभिन्न व्यावसायिक कौशल में लोगों को प्रशिक्षित और प्रमाणित करना है।
  • वैकल्पिक प्रतिभा पूल: छोटे शहरों में डिजिटल क्षमताओं का विस्तार करना, महिलाओं को कार्यबल में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों सहित पॉलिटेक्निक से व्यावसायिक शिक्षा को पुनर्जीवित करना इस दिशा में सरकार के महत्वपूर्ण प्रयास माने जा सकते हैं। इन कार्यक्रमों के लिए वाणिज्यिक सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) फंडिंग का लाभ उठाना और सरकारों, नियोक्ताओं, प्रशिक्षण प्रदाताओं तथा श्रमिकों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना बढ़ती डिजिटल सीखने की जरूरतों को पूरा करने के लिए अनिवार्य होगा।

निष्कर्ष

वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए भारत के डिजिटल कौशल अंतर को समाप्त करना आवश्यक है। सरकारी पहलों, रणनीतिक निवेशों और अपस्किलिंग के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण का अभिसरण भारत के कार्यबल को उभरते डिजिटल परिदृश्य को बढ़ावा देगा और देश की आर्थिक वृद्धि में योगदान देने के लिए सशक्त बनाएगा।

भौतिकी में नोबेल पुरस्कार 2023

चर्चा में क्यों? 

भौतिकी के लिये वर्ष 2023 का नोबेल पुरस्कार तीन प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों को दिया गया है: पियरे एगोस्टिनी, फ़ेरेन्क क्रॉस्ज़ और ऐनी एल. हुइलियर।

  • प्रायोगिक भौतिकी के क्षेत्र में उनके अभूतपूर्व कार्य ने एटोसेकंड पल्स के विकास को जन्म दिया है, जिससे वैज्ञानिकों को पदार्थ के भीतर इलेक्ट्रॉनों की तीव्र गतिशीलता का सीधे निरीक्षण और अध्ययन करने में मदद मिली है।

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इलेक्ट्रॉन डायनेमिक्स

  • इलेक्ट्रॉन गतिशीलता परमाणुओं, अणुओं और ठोस पदार्थों के भीतर इलेक्ट्रॉनों के व्यवहार एवं गति के अध्ययन व समझ को संदर्भित करती है।
    • इसमें इलेक्ट्रॉन व्यवहार के विभिन्न पहलुओं को शामिल किया गया है, जिसमें उनकी गति, विद्युत चुम्बकीय क्षेत्रों के साथ अंतःक्रिया और बाह्य बलों के प्रति अनुक्रिया शामिल है।
  • इलेक्ट्रॉन ऋणात्मक आवेश वाले मूलभूत कण हैं और वे सघन नाभिक की परिक्रमा करते हैं। लंबे समय तक, वैज्ञानिकों को इलेक्ट्रॉन व्यवहार को समझने के लिये अप्रत्यक्ष पद्धतियों पर निर्भर रहना पड़ता था, जैसे कि एक तेज़ गति से चलने वाली रेस कार की लंबे समय तक एक्सपोज़र समय के साथ तस्वीर लेना, जिसके परिणामस्वरूप धुंधली छवि बनती है।
    • इलेक्ट्रॉनों की तीव्र गति, इनके पारंपरिक माप तकनीकों के लिये लगभग अदृश्य थी।
  •  अणुओं में परमाणु फेम्टो सेकंड के क्रम पर गति प्रदर्शित करते हैं, जो बहुत ही कम समय अंतराल होते हैं, जो एक सेकंड के एक अरबवें हिस्से का दस लाखवाँ हिस्सा होते हैं। 
    • इलेक्ट्रॉन हल्के होने के कारण और इससे भी तेज़ गति से इंटरैक्ट करने के कारण, एटोसेकंड दायरे में गति करते हैं, एक सेकंड के अरबवें हिस्से का अरबवाँ हिस्सा (सेकंड का 1×10−18 भाग)।

वैज्ञानिकों द्वारा एटोसेकंड पल्स जेनरेशन

  • पृष्ठभूमि:
    • 1980 के दशक में, भौतिक विज्ञानी केवल कुछ फेमटोसेकेंड तक चलने वाली हल्की पल्स बनाने में कामयाब रहे।
    • उस समय यह माना जाता था कि हल्की पल्सों के लिये यह न्यूनतम प्राप्त अवधि थी।
    • हालाँकि इलेक्ट्रॉनों को गति में 'देखने' के लिये और भी छोटी/अल्पकालीन पल्स की आवश्यकता थी।
  • एटोसेकंड पल्स जेनरेशन में प्रगति:
    • वर्ष 1987 में एक फ्राँसीसी प्रयोगशाला में ऐनी एल'हुइलियर और उनकी टीम ने एक महत्त्वपूर्ण सफलता हासिल की।
    • उन्होंने एक उत्कृष्ट गैस के माध्यम से एक अवरक्त लेज़र किरण को गुजारा, जिससे ओवरटोन की उत्पत्ति हुई- तरंग दैर्ध्य के साथ प्रकाश की तरंगें जो मूल किरण के पूर्णांक अंश थे। 
    • गैस में उत्पन्न ओवरटोन पराबैंगनी प्रकाश के रूप में थे। वैज्ञानिकों ने देखा कि जब कई ओवरटोन परस्पर क्रिया करते हैं, तो वे या तो रचनात्मक व्यतिकरण के माध्यम से एक-दूसरे को तीव्र कर सकते हैं या विनाशकारी व्यतिकरण के माध्यम से एक-दूसरे को रद्द कर सकते हैं।
    • अपने सेटअप को परिष्कृत करके, भौतिक विज्ञानी प्रकाश की तीव्र एटोसेकंड पल्स बनाने में कामयाब रहे।
    • वर्ष 2001 में फ्राँस में पियरे एगोस्टिनी और उनके अनुसंधान समूह ने 250-एटोसेकंड प्रकाश पल्सों की एक शृंखला का सफलतापूर्वक उत्पादन किया।
    • उन्होंने इस पल्स शृंखला को मूल बीम के साथ संयोजित कर तेज़ी से प्रयोग किये, जिन्होंने इलेक्ट्रॉन गतिशीलता में अभूतपूर्व अंतर्दृष्टि प्रदान की।
    • इसके साथ ही ऑस्ट्रिया में फेरेन्क क्रॉस्ज़ और उनकी टीम ने एक पल्स शृंखला से व्यक्तिगत 650-एटोसेकंड पल्स को अलग करने की तकनीक विकसित की।
    • इस सफलता ने शोधकर्त्ताओं को क्रिप्टन परमाणुओं द्वारा उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जा को उल्लेखनीय सटीकता के साथ मापने में मदद की।

एटोसेकंड भौतिकी के अनुप्रयोग

  • अल्पकालिक प्रक्रियाओं का अध्ययन: एटोसेकंड पल्स वैज्ञानिकों को अल्ट्राफास्ट परमाणु और आणविक प्रक्रियाओं की 'छवियों' को कैप्चर करने में सक्षम बनाता है।
    • इसका पदार्थ विज्ञानइलेक्ट्रॉनिक्स और कैटेलिसिस जैसे क्षेत्रों, जिसमें त्वरित रूप से हो रहे परिवर्तनों को समझना महत्त्वपूर्ण होता है, पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
  • मेडिकल डायग्नोस्टिक्स: क्षणिक चिह्नों के आधार पर विशिष्ट अणुओं की पहचान करने के लिये एटोसेकंड पल्स का उपयोग चिकित्सीय नैदानिक परीक्षणों में किया जा सकता है। यह मेडिकल इमेजिंग और डायग्नोस्टिक तकनीकों को बेहतर बनाने में मदद करता है।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में प्रगति: एटोसेकंड भौतिकी कंप्यूटिंग और दूरसंचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अधिक तेज़ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के विकास को बढ़ावा दे सकती है।
  • उन्नत इमेजिंग और स्पेक्ट्रोस्कोपी: जीव विज्ञान से लेकर खगोल विज्ञान तक के क्षेत्र में अनुप्रयोगों के साथ, एटोसेकंड पल्स को संशोधित करने की क्षमता उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेजिंग और स्पेक्ट्रोस्कोपी में मदद करती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की ‘स्पेक्स 2030’ पहल

चर्चा में क्यों? 

विश्वभर में लाखों लोग दृष्टि/नेत्रदोष की समस्याओं से पीड़ित हैं, इनमें से एक बड़े हिस्से को चश्मे की आवश्यकता है। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में नेत्र देखभाल की सुविधाओं तक पहुँच एक बड़ी चुनौती है।

  • इस संकट को देखते हुए वर्ष 2021 में आयोजित 74वीं विश्व स्वास्थ्य सभा में एकीकृत और जन-केंद्रित नेत्र देखभाल प्रदान करने के लिये "स्पेक्स 2030" नामक एक पहल शुरू करने पर सहमति जताई गई।

स्पेक्स 2030

  • परिचय:
    • स्पेक्स 2030 पहल की शुरुआत विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा की जाएगी। इस पहल का लक्ष्य गुणवत्तापूर्ण नेत्र देखभाल सुनिश्चित करते हुए चश्मे से संबंधित समस्या का समाधान करने में सदस्य देशों की सहायता करना है।
  • विज़न:
    • इसका दूरगामी विज़न एक ऐसे विश्व का निर्माण करना है जिसमें अपवर्तन दोष से जूझ रहे प्रत्येक व्यक्ति के पास इसके निदान हेतु गुणवत्तापूर्ण, सस्ती और जन-केंद्रित सेवाओं तक पहुँच हो।
  • मिशन:
    • इसका मिशन अपवर्तन दोष कवरेज़ पर 74वीं विश्व स्वास्थ्य सभा द्वारा समर्थित वर्ष 2030 के लक्ष्य को प्राप्त करने में सदस्य देशों की सहायता करना है।
    • यह पहल अपवर्तन दोष कवरेज में सुधार हेतु प्रमुख चुनौतियों का समाधान करने के लिये, SPECS के अक्षरों एवं उनके अर्थों के अनुरूप 5 रणनीतिक रूप से सभी हितधारकों के बीच समन्वय स्थापित कर वैश्विक कार्रवाई का आह्वान करती है।

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दृष्टि की अपवर्तक त्रुटि

  • परिचय:
    • दृष्टि की अपवर्तक त्रुटि वह दृष्टि समस्या है जिसमें नेत्र का आकार प्रकाश द्वारा रेटिना (नेत्र के पश्च ऊतक की एक प्रकाश-संवेदनशील परत) पर सही ढंग से फोकस करने की सामान्य स्थिति को अवरोधित कर प्रभावित करता है, जिससे धुंधली या विकृत दृष्टि का अनुभव होता है।
    • यह स्थिति विभिन्न रूपों और गंभीरता स्तरों में प्रकट हो सकती है।
  • अपवर्तक त्रुटियों के प्रकार:

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  • अपवर्तक त्रुटियों के लक्षण:
    • सबसे आम लक्षण धुंधली दृष्टि है। अन्य लक्षणों में दोहरी दृष्टि, धुंधली दृष्टि, तीव्र ज्योति पुंज के निकट चकाचौंध या प्रभामंडल का आभास होना, सिरदर्द और नेत्र पर तनाव शामिल हैं।

दृष्टि हानि का प्रभाव

  • वैश्विक दृष्टि संकट:
    • WHO के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 2.2 अरब से अधिक लोग दृष्टि संबंधी समस्याओं से पीड़ित हैं।
    • इनमें से लहभग 1 अरब मामलों को उचित नेत्र की देखभाल से रोका जा सकता था।
    • दृष्टिबाधित या अंधेपन से पीड़ित 90% व्यक्ति निम्न और मध्यम आय वाले देशों में निवास करते हैं।
  • भारत को दृष्टि देखभाल की तत्काल आवश्यकता:
    • भारत में लाखों व्यक्ति नेत्र देखभाल और चश्में की उपलब्धता संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहा है जो अपवर्तक त्रुटियों के कारण दृष्टि हानि से पीड़ित हैं। WHO के अनुसार, कम से कम 10 करोड़ भारतीयों को चश्मे की आवश्यकता है, लेकिन उन तक उनकी पहुँच नहीं है।
  • दृष्टि हानि का आर्थिक प्रभाव:
    • दृष्टि हानि के परिणामस्वरूप लगभग 410.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर की महत्त्वपूर्ण वैश्विक आर्थिक हानि हो सकती है।
    • WHO के अनुसार, सभी के लिये नेत्र की देखभाल और उपचार तक पहुँच सुनिश्चित करने की लागत का अनुमान लगभग 24.8 अरब अमेरिकी डॉलर है।
  • निकट दृष्टिदोष (Myopia) की चिंताजनक वृद्धि:
    • वैश्विक स्तर पर निकट दृष्टिदोष बढ़ रहा है। चीन में केवल दो दशकों में निकट दृष्टिदोष की समस्या पहली बार दिखाई देने की औसत आयु 10.5 वर्ष से घटकर 7.5 वर्ष हो गई है।
    • ताइवान, कोरिया, चीन, सिंगापुर और जापान सहित पूर्वी एवं दक्षिण एशियाई देशों में निकट दृष्टिदोष के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है।
    • ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2050 तक विश्व की 50% आबादी निकट दृष्टिदोष से पीड़ित होगी। साथ ही यह भी अनुमान लगाया गया है कि निकट भविष्य में विश्व की आधी आबादी को चश्मे की आवश्यकता होगी।
    • WHO के अनुसार, सभी लोगों के लिये आँखों की देखभाल और उपचार तक पहुँच सुनिश्चित करने की लागत 24.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर आंकी गई है।

आगे की राह 

  • स्क्रीन पर बिताए जाने वाले समय को कम करने, बाहरी गतिविधियों को प्रोत्साहित करने और बच्चों की आँखों के स्वास्थ्य की निगरानी करने की रणनीतियों को लागू करने से मायोपिया से निपटने में मदद मिल सकती है।
  • इसका शीघ्र पता लगाने और उपचार के लिये सभी उम्र के व्यक्तियों को नियमित आँखों की जाँच कराने के लिये प्रोत्साहित करना आवश्यक है।
  • सुलभ नेत्र देखभाल सेवाओं के लिये बुनियादी ढाँचे का निर्माण, विशेष रूप से दूरदराज़ और न्यून सेवा पहुँच वाले क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण है।
  • अपवर्तक त्रुटियों और दृष्टि पर उनके प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये सार्वजनिक शिक्षा अभियान शुरू किया जाना चाहिये।
  • Specs 2030 में सहयोग और निवेश के लिये सरकारों, गैर सरकारी संगठनों व निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करना इसके लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये आवश्यक है।

भारत के अंतरिक्ष प्रयास

मानवता की भलाई के लिए अंतरिक्ष अन्वेषण में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को नई दिल्ली में हाल ही में एक सम्मेलन के दौरान प्रकट किया गया। केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए बाहरी अंतरिक्ष का उपयोग करने के भारत के समर्पण पर जोर दिया और चीन सहित सभी अंतरिक्ष अन्वेषण करने वाले देशों से अंतरिक्ष गतिविधियों में पारदर्शिता और स्थिरता सुनिश्चित करते हुए खुली बातचीत में शामिल होने का आग्रह किया।

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भारत के शांतिपूर्ण अंतरिक्ष प्रयास

  • पारदर्शिता और जवाबदेही आधारित भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम ने महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ जैसे देशों की ऐतिहासिक अंतरिक्ष उपलब्धियों के बावजूद, भारत के चंद्रयान मिशनों ने चंद्रमा की सतह पर पानी का पता लगाने जैसी अभूतपूर्व खोजें की हैं। अग्रणी वैश्विक अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ इसरो का सहयोग अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत के शांतिपूर्ण उद्देश्य को दर्शाता है।

लागत प्रभावी और नवीन दृष्टिकोण

  • भारत के अंतरिक्ष मिशनों को उनकी लागत-प्रभावशीलता, मानव संसाधनों और कौशल का लाभ उठाने के लिए सराहा गया है। डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारत के चंद्रयान-3 मिशन की दक्षता पर प्रकाश डाला, जिसकी लागत समान अंतरराष्ट्रीय प्रयासों की तुलना में काफी कम है। इस मितव्ययी नवाचारी दृष्टिकोण ने भारत को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों में उत्कृष्टता प्राप्त करने में सक्षम बनाया है, जिससे कृषि, स्वास्थ्य देखभाल और बुनियादी ढांचे जैसे विभिन्न क्षेत्रों को लाभ हुआ है।

सार्वजनिक-निजी भागीदारी और उद्यमिता

  • भारतीय प्रधानमंत्री के दूरदर्शी दृष्टिकोण ने अंतरिक्ष क्षेत्र के दरवाजे निजी उद्योग के लिए खोल दिए हैं । 2014 से लेकर 2023 तक अर्थात् कुछ ही वर्षों में 150 से अधिक अंतरिक्ष स्टार्टअप की शुरूआत, भारत की गतिशील उद्यमशील भावना का उदाहरण है। इसीक्रम में "अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन" की स्थापना सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देती है,और भारत को अत्याधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी प्रगति की ओर प्रेरित करती है।

आर्थिक प्रभाव और भविष्य के अनुमान

  • भारत के अंतरिक्ष प्रयासों ने न केवल वैज्ञानिक प्रगति में योगदान दिया है बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी बढ़ाया है। कई विदेशी उपग्रहों के प्रक्षेपण के साथ, भारत ने पर्याप्त राजस्व अर्जित किया है, और खुद को वैश्विक अंतरिक्ष उद्योग में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया है। अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों के अनुसार, अनुमान बताते हैं कि भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था उल्लेखनीय ऊंचाइयों तक पहुंच सकती है, जो संभावित रूप से 2040 तक 100 अरब डॉलर तक हो सकती है।

भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र की वर्तमान स्थिति

  • भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र ने लागत प्रभावी उपग्रहों के निर्माण और विदेशी उपग्रहों को अंतरिक्ष में लॉन्च करने की अपनी क्षमता के लिए वैश्विक स्वीकृति प्राप्त की है। बाहरी अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण और नागरिक उपयोग के लिए प्रतिबद्ध, भारत निरस्त्रीकरण पर जिनेवा सम्मेलन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के अनुरूप, अंतरिक्ष शस्त्रीकरण का दृढ़ता से विरोध करता है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अपनी असाधारण सफलता के साथ विश्व स्तर पर छठी सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसी है। इसीप्रकार भारत को अपने निजी अंतरिक्ष उद्योग पर भी गर्व है, जिसमें 400 से अधिक कंपनियां हैं, जो अंतरिक्ष उद्यमों की संख्या के मामले में दुनिया में पांचवें स्थान पर है।

हालिया घटनाक्रम

  • रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (डीएसए) और रक्षा अंतरिक्ष मिशन: भारत ने रक्षा अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (डीएसआरओ) द्वारा समर्थित रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (डीएसए) की स्थापना की है। डीएसए को "किसी प्रतिद्वंद्वी की अंतरिक्ष क्षमता को कम करने , बाधित करने, नष्ट करने" के लिए हथियार विकसित करने का काम सौंपा गया है। इसके अलावा, भारतीय प्रधान मंत्री ने गांधीनगर में डिफेंस एक्सपो 2022 में रक्षा अंतरिक्ष मिशन का शुभारंभ किया, जो भारत की रक्षा-उन्मुख अंतरिक्ष पहल में एक महत्वपूर्ण प्रगति है।
  • सैटेलाइट विनिर्माण विस्तार: भारत की उपग्रह निर्माण क्षमताएं तेजी से बढ़ रहीं हैं , अनुमान है कि 2025 तक यह 3.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाएगी, जो 2020 में 2.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक थी । यह विस्तार वैश्विक उपग्रह विनिर्माण परिदृश्य में भारत के बढ़ते प्रभाव का संकेत देता है।
  • संवाद कार्यक्रम: युवाओं के बीच अंतरिक्ष अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए, इसरो ने संवाद कार्यक्रम शुरू किया। यह छात्र आउटरीच कार्यक्रम इसरो की बेंगलुरु सुविधा में आयोजित किया जाता है, जो अंतरिक्ष वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की अगली पीढ़ी के पोषण के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है।
  • भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र लगातार विकसित हो रहा है, यह नवाचार, सहयोग और रणनीतिक पहल को अपना रहा है । इससे भारत कि अंतरिक्ष अन्वेषण और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक अग्रणी शक्ति के रूप में स्थिति अधिक प्रभावी हो रही है।

अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियाँ

  • व्यावसायीकरण पर विनियमों का अभाव: इंटरनेट सेवाओं और अंतरिक्ष पर्यटन के लिए स्पेसएक्स के स्टारलिंक जैसे उद्यमों द्वारा संचालित बाहरी अंतरिक्ष का तेजी से व्यावसायीकरण एक चुनौती प्रस्तुत करता है। वास्तव में एक मजबूत नियामक ढांचे की अनुपस्थिति से एकाधिकार की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिससे निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा और अंतरिक्ष संसाधनों तक समान पहुंच के बारे में चिंताएं बढ़ती हैं।
  • बढ़ता अंतरिक्ष मलबा: अंतरिक्ष अभियानों में वृद्धि के साथ, अंतरिक्ष मलबे का संचय एक महत्वपूर्ण चुनौती बन गया है। यहां तक कि छोटे मलबे के टुकड़े भी, अपनी उच्च गति के कारण, संभावित रूप से परिचालन अंतरिक्ष यान को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे मानवयुक्त और मानवरहित दोनों मिशनों के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है। भविष्य के अंतरिक्ष प्रयासों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इस मलबे का प्रबंधन करना आवश्यक है।
  • चीन की अंतरिक्ष प्रगति: अंतरिक्ष उद्योग में चीन की तीव्र प्रगति, जिसका उदाहरण उसके स्वयं के नेविगेशन सिस्टम, बाइडू का सफल प्रक्षेपण है भी चिंता पैदा करता है। चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) सदस्यों का उनके अंतरिक्ष क्षेत्र में संभावित एकीकरण चीन के वैश्विक प्रभाव को मजबूत कर सकता है। इसके अलावा, यह वृद्धि अंतरिक्ष शस्त्रीकरण की आशंका को बढ़ाती है, जिससे भू-राजनीतिक तनाव बढ़ सकता है।
  • वैश्विक विश्वास की कमी: बाहरी अंतरिक्ष के शस्त्रीकरण के लिए हथियारों की होड़ ने दुनिया भर में संदेह, प्रतिस्पर्धा और आक्रामकता का वातावरण बना दिया है। यह प्रवृत्ति न केवल वैज्ञानिक अन्वेषण और संचार सेवाओं के लिए आवश्यक उपग्रहों को ख़तरे में डालती है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों का ख़तरा भी बढ़ाती है। राष्ट्रों के बीच विश्वास का क्षरण अंतरिक्ष अन्वेषण प्रयासों में सहयोग और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को और अधिक जटिल बना देता है।
  • इन चुनौतियों से निपटने के लिए बाहरी अंतरिक्ष संसाधनों के जिम्मेदारीपूर्ण और टिकाऊ उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, कड़े नियमों और राजनयिक प्रयासों की आवश्यकता है। इन मुद्दों को संबोधित करना अंतरिक्ष अन्वेषण के भविष्य की सुरक्षा और शांति बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

भावी रणनीति

  • भारत की अंतरिक्ष संपत्तियों की सुरक्षा: उपग्रहों सहित अपनी अंतरिक्ष संपत्तियों की सुरक्षा और अंतरिक्ष मलबे से बचाव के लिए, भारत को अपनी ट्रैकिंग क्षमताओं को बढ़ाना होगा। भारतीय उपग्रहों के लिए खतरों का पता लगाने के लिए डिज़ाइन की गई एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली “प्रोजेक्ट नेत्र” जैसी पहल, इस दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति का प्रतीक है, जिससे राष्ट्र किमहत्वपूर्ण अंतरिक्ष बुनियादी ढांचे की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
  • अंतरिक्ष में स्थायी सीट की वकालत: भारत को अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ सक्रिय रूप से सहयोग करना चाहिए और एक ग्रह रक्षा कार्यक्रम की वकालत करनी चाहिए। संयुक्त अंतरिक्ष अभियानों में शामिल होने और वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने से भारत के लिए अंतरिक्ष प्रशासन में स्थायी सीट सुरक्षित करने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। इसके अतिरिक्त, गगनयान मिशन जैसी पहलें, मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान पर ध्यान केंद्रित करते हुए, भारत की विकसित होती अंतरिक्ष उपस्थिति में योगदान कर रहीं है।
  • अंतरिक्ष में लैंगिक समानता को बढ़ावा देना: UNOOSA के Space4Women प्रोजेक्ट का अनुकरण करते हुए, भारत लैंगिक समानता को बढ़ावा दे सकता है और अंतरिक्ष क्षेत्र में महिलाओं को सशक्त बना सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में अंतरिक्ष जागरूकता कार्यक्रम शुरू करना और कॉलेज-इसरो इंटर्नशिप कॉरिडोर स्थापित करना, जो विशेष रूप से महिला छात्रों के लिए तैयार किया गया है, युवाओं को प्रेरित कर सकता है। भारत की 750 स्कूली छात्राओं द्वारा तैयार किया गया आज़ादीसैट इस संबंध में देश की प्रगति का उदाहरण है।
  • स्वच्छ अंतरिक्ष के लिए तकनीकी नवाचार: भारत अंतरिक्ष स्थिरता के लिए अभिनव समाधानों का नेतृत्व कर सकता है। स्वयं-भक्षी रॉकेट (self-eating rockets), स्वयं-लुप्त होने वाले उपग्रह (self-vanishing satellites) और अंतरिक्ष मलबे की पुनर्प्राप्ति के लिए रोबोटिक हथियारों जैसी तकनीकों का विकास भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में एक समस्या समाधानकर्ता और खोजकर्ता के रूप में स्थापित कर सकता है। इन प्रगतियों को अपनाना स्वच्छ और टिकाऊ अंतरिक्ष अन्वेषण के भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप है।

निष्कर्ष

  • अंतरिक्ष अन्वेषण के प्रति भारत का दृष्टिकोण शांतिपूर्ण सहयोग के प्रतीक के रूप में स्थापित है, जो पारदर्शिता, नवाचार और आर्थिक विकास पर जोर देता है। खुला संवाद, लागत प्रभावी मिशन और रणनीतिक सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से, भारत न केवल अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं को आगे बढ़ा रहा है, बल्कि पृथ्वी की सीमाओं से परे ज्ञान की वैश्विक खोज में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। जैसे-जैसे राष्ट्र सहयोग की भावना से एक साथ आएंगे, अंतरिक्ष अन्वेषण का भविष्य सभी मानव जाति के लिए अभूतपूर्व खोजों और साझा प्रगति पर आधारित होता जायेगा ।

मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग/ समुद्री बादल उज्ज्वलन की अवधारणा ने समुद्री गर्मी के अत्यधिक तापमान से निपटने की रणनीति के साथ-साथ प्रवाल विरंजन को कम करने और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा करने की तकनीक के रूप में लोकप्रियता हासिल की है।

मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग

  • परिचय: 
    • क्लाउड ब्राइटनिंग की अवधारणा ब्रिटिश क्लाउड भौतिक विज्ञानी जॉन लैथम ने दी है, उन्होंने वर्ष 1990 में पृथ्वी के ऊर्जा संतुलन को बदलकर ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने के साधन के रूप में इस विचार को प्रस्तावित किया था।
    • लैथम की गणना से पता चला है कि संवेदनशील समुद्री क्षेत्रों पर चमकते बादल पूर्व-औद्योगिक वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के दोगुने होने के कारण होने वाली गर्मी का प्रतिकार कर सकते हैं।
  • मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग की प्रक्रिया:
    • स्वच्छ समुद्री वायु में बादल मुख्य रूप से सल्फेट्स और समुद्री लवणीय क्रिस्टल से बनते हैं, जो अपेक्षाकृत दुर्लभ होते हैं, जिससे न्यून प्रकाश परावर्तन वाली बड़ी बूंदें बनती हैं।
    • मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग (MCB) की प्रक्रिया के लिये समुद्री बादल परावर्तनशीलता (अल्बेडो) में वृद्धि की आवश्यकता होती है, जिससे बादल सफेद और चमकीले हो जाते हैं।  
    • इसमें समुद्री जल की बारीक बूंदों को वायुमंडल में छोड़ने के लिये वाटर कैनन या विशेष जहाज़ों का उपयोग करना शामिल है।
    • बूंदों के वाष्पित होने के बाद लवणीय कणों का अवक्षेप बच जाता हैं, जो बादल संघनन नाभिक के रूप में कार्य करते हैं तथा घने, चमकीले बादलों का निर्माण करते हैं। 
  • संभावित लाभ: 
    • MCB में लक्षित क्षेत्रों में समुद्र की सतह के तापमान को कम करने की क्षमता है, जिससे प्रवाल विरंजन घटनाओं की आवृत्ति और गंभीरता कम हो सकती है।
    • विश्व में जीवाश्म ईंधन के प्रयोग में कमी प्रवाल के लिये एक जीवन रेखा प्रदान कर सकती है, जिससे उनके अस्तित्व और पुनर्प्राप्ति को सक्षम किया जा सकता है।
    • शोधकर्त्ताओं द्वारा इसकी मॉडलिंग के अध्ययन और छोटे पैमाने के प्रयोगों के माध्यम से ग्रेट बैरियर रीफ के लिये MCB की व्यवहार्यता का पता लगाया जा रहा है।
    • ग्रेट बैरियर रीफ, एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल, विशेष रूप से प्रवाल विरंजन के प्रति संवेदनशील रहा है, हाल के वर्षों में बड़े पैमाने पर प्रवाल विरंजन की घटनाओं का सामना करना पड़ रहा है।
  • MCB से जुड़ी चुनौतियाँ और संकट 
    • तकनीकी व्यवहार्यता: MCB में काफी ऊँचाई पर वायुमंडल में समुद्री जल का बड़े पैमाने पर छिड़काव शामिल है, यह छिड़काव उपकरणों के डिज़ाइन, लागत, रखरखाव और संचालन के संदर्भ में इंजीनियरिंग जटिलताओं को प्रस्तुत करता है।
    • पर्यावरणीय प्रभाव: MCB के कारण बादलों के पैटर्न और वर्षा में होने वाला परिवर्तन क्षेत्रीय जलवायु एवं जल विज्ञान चक्रों को प्रभावित कर सकता है, जिससे संभावित रूप से सूखे या बाढ़ जैसे अनपेक्षित परिणाम हो सकते हैं।
    • नैतिक मुद्दे: MCB प्राकृतिक प्रक्रियाओं में मानवीय हस्तक्षेप और इसके कार्यान्वयन के आसपास शासन एवं निर्णय लेने की प्रक्रियाओं के संदर्भ में नैतिक दुविधाएँ उत्पन्न करता है।
    • नैतिक खतरा: MCB के कारण नीति निर्माताओं और जनता में आत्मसंतुष्टि/आत्ममुग्धता हो सकती है, लेकिन इससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने तथा जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन की उनकी प्रतिबद्धता कम हो सकती है।

आगे की राह

MCB अभी भी अनुसंधान और विकास के प्रारंभिक चरण में है, इसकी व्यवहार्यता, प्रभावकारिता, प्रभाव, जोखिम तथा शासन का आकलन करने के लिये अतिरिक्त अध्ययन की आवश्यकता है। यह पहचानना आवश्यक है कि MCB कोई स्टैंडअलोन समाधान नहीं है, बल्कि अल्पावधि में प्रवाल भित्तियों को अत्यधिक गर्मी के तनाव का सामना करने में मदद करने हेतु एक संभावित पूरक उपाय है। MCB को एक व्यापक दृष्टिकोण में एकीकृत किया जाना चाहिये जिसमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से प्रवाल भित्तियों की सुरक्षा के लिये संरक्षण, बहाली, अनुकूलन तथा नवाचार शामिल हैं।

क्रू एस्केप सिस्टम पर परीक्षण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने संभवत: 2025 तक गगनयान मिशन के उद्देश्यों को पूरा करने के उद्देश्य से फ्लाइट टेस्ट व्हीकल एबॉर्ट मिशन-1 (टी.वी.-डी.1) नामक सिस्टम और प्रक्रियाओं की शृंखला का पहला परीक्षण किया।
Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): October 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly

TV-D1 टेस्ट

  • परिचय: 
    • फ्लाइट टेस्ट व्हीकल एबॉर्ट मिशन-1 (TV-D1) गगनयान परियोजना के क्रू एस्केप सिस्टम को प्रदर्शित करता है।
    • यह फ्लाइट सुरक्षा तंत्र का परीक्षण करने वाले दो अबॉर्ट मिशनों में से एक है जो गगनयान चालक दल को आपातकालीन स्थिति में अंतरिक्ष यान छोड़ने की अनुमति देगा।
    • टेस्ट व्हीकल एक सिंगल-स्टेज लिक्विड रॉकेट है जिसे इस अबॉर्ट मिशन के लिये विकसित किया गया है। पेलोड में क्रू मॉड्यूल (CM) और क्रू एस्केप सिस्टम (CES) के साथ उनके तेज़ी से काम करने वाले ठोस मोटर, CM फेयरिंग (CMF) तथा इंटरफेस एडेप्टर भी शामिल हैं।
  • कार्य प्रणाली: 
    • परीक्षण अभ्यास में रॉकेट को अबॉर्ट सिग्नल ट्रिगर होने से पूर्व लगभग 17 किमी की ऊँचाई तक देखा जाएगा, जिससे क्रू मॉड्यूल अलग हो जाएगा, जो बंगाल की खाड़ी में स्पलैशडाउन के लिये पैराशूट का उपयोग करके उतरेगा।
    • रॉकेट ISRO का नया, कम लागत वाला परीक्षण व्हीकल, उड़ान के दौरान 363 मीटर/सेकंड (लगभग 1307 किमी/घंटा) के चरम सापेक्ष वेग तक पहुँच जाएगा और परीक्षण के लिये चालक दल का मॉड्यूल रिक्त हो जाएगा।  
    • कम लागत वाले परीक्षण वाहन का क्रू मॉड्यूल उड़ान के दौरान खाली रहेगा और यह 363 मीटर प्रति सेकंड की अधिकतम सापेक्ष गति प्राप्त करेगा।
  • प्रासंगिकता मानदंड:
    • यह क्रू मॉड्यूल के एक मूल संस्करण प्रदर्शित करेगा जिसमें गगनयान मानव अंतरिक्ष उड़ान के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों को बैठाया जाएगा।
    • यह परीक्षण मध्य-उड़ान आपातकालीन स्थिति (निरस्त मिशन) और अंतरिक्ष यात्रियों के पलायन की स्थिति में रॉकेट से क्रू मॉड्यूल को अलग करने हेतु सिस्टम की कार्यप्रणाली की जाँच करेगा।  

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TV-D1 में उपयोग किया जाने वाला नया परीक्षण व्हीकल

  • नये परीक्षण व्हीकल का परिचय:
    • ISRO ने वर्ष 2024 में मानव-रेटेड LVM3 रॉकेट का उपयोग करके एक पूर्ण क्रू मॉड्यूल परीक्षण उड़ान आयोजित करने की योजना बनाई है। हालाँकि TV-D1 मिशन के लिये ISRO ने एक कम लागत वाला परीक्षण वाहन विकसित किया है जो विशेष रूप से विभिन्न प्रणालियों के मूल्यांकन हेतु डिज़ाइन किया गया है।
  • परीक्षण व्हीकल की विशेषताएँ:
    • परीक्षण व्हीकल में मौजूदा तरल प्रणोदन तकनीक शामिल है।
    • उल्लेखनीय नवाचारों में थ्रॉटलेबल और पुनः आरंभ करने योग्य L110 विकास इंजन शामिल है, जो LVM3 रॉकेट के दूसरे चरण का एक मुख्य घटक है तथा प्रणोदक उपयोग पर बेहतर नियंत्रण प्रदान करता है।
  • GSLV Mk III का लागत प्रभावी विकल्प:
    • वर्ष 2014 में क्रू मॉड्यूल वायुमंडलीय पुन: प्रवेश प्रयोग (CARE) जैसी पिछली क्रू मॉड्यूल परीक्षण उड़ानों में महँगे GSLV Mk III रॉकेट का उपयोग किया गया था, जिनमें से प्रत्येक की लागत 300-400 करोड़ रुपए थी। लागत संबंधी चिंताओं के जवाब में ISRO ने अधिक किफायती परीक्षण व्हीकल पेश किया है।
  • विभिन्न अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के लिये टेस्ट व्हीकल का उपयोग:
    • टेस्ट व्हीकल पुन: प्रयोज्य अंतरिक्ष प्रक्षेपण यानों के लिये स्क्रैमजेट इंजन टेक्नोलॉजी सहित कई अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के परीक्षण एवं विकास के लिये एक मंच के रूप में कार्य करेगा। 
    • यह टेस्ट व्हीकल भविष्य की अंतरिक्ष परियोजनाओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है। ISRO ने भारी लागत का भुगतान किये बिना गगनयान मिशन के क्रू एस्केप सिस्टम का बार-बार परीक्षण करने के महत्त्व को पहचाना है। 

गगनयान मिशन का क्रू एस्केप सिस्टम (CES)

  • रूसी सोयुज़ रॉकेट की विफलता से सीख:
    • वर्ष 2018 में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के अभियान 57 के दौरान सोयुज़ FG रॉकेट की विफलता के कारण चालक दल को आपातकालीन निकास करना पड़ा। 50 कि.मी. की ऊँचाई पर क्रू मॉड्यूल रॉकेट से अलग हो गया, जिससे अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित हुई। यह 55 मिशनों में पहली सोयुज़ FG विफलता एवं वर्ष 1975 के बाद सोयुज़ रॉकेट की पहली मध्य-उड़ान विफलता थी।
  • गगनयान में चालक दल/क्रू की सुरक्षा सुनिश्चित करना:
    • गगनयान परियोजना में ISRO चालक दल की सुरक्षा को प्राथमिकता देता है और इसीलिये मिशन को सुरक्षित बनाने के लिये निर्धारित समय सीमा को वर्ष 2022 से आगे बढ़ाया गया। आपात स्थिति के लिये एक विश्वसनीय निकासी व्यवस्था के अतिरिक्त, चालक दल मॉड्यूल को अत्यधिक ऊष्मा एवं दबाव सहन करने में सक्षम होना चाहिये। 
    • अंतरिक्ष यात्रियों को खतरे में डालने वाली विसंगतियों की पहचान करने व मिशन को अबॉर्ट करने के लिये ISRO एकीकृत स्वास्थ्य प्रबंधन प्रणाली व जीवन समर्थन प्रणाली विकसित कर रहा है।
  • TV-D1 मिशन चरण:
    • TV-D1 उड़ान में क्रू एस्केप सिस्टम लगभग 11.7 किमी की ऊँचाई पर परीक्षण वाहन से अलग हो जाता है। लगभग 90 सेकंड के बाद क्रू मॉड्यूल अलग हो जाता है, पैराशूट तैयार करता है और सात मिनट में धीरे-धीरे नीचे उतरता है।
    • भारतीय नौसेना, बंगाल की खाड़ी में उतारने के बाद इसे पुनर्प्राप्त करेगी, जो गगनयान कार्यक्रम के विकास में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि साबित होगा।
  • गगनयान मिशन की स्थिति:
    • गगनयान मिशन की समय सीमा फिलहाल 2024 या उसके बाद है, जिसमें जल्दबाज़ी से अधिक सुरक्षा पर ज़ोर दिया गया है। अगले वर्ष की शुरुआत में एक मानवरहित मिशन की योजना बनाई गई है और उसी वर्ष उसे निरस्त करने की भी योजना बनाई गई है।
    • विभिन्न परिदृश्यों के आधार पर मानवयुक्त मिशन की शुरुआत वर्ष 2024 के अंत तक या या वर्ष 2025 के आरंभ तक हो सकती है।
    • इसरो ने पहले ही महत्त्वपूर्ण रॉकेट घटकों के लिये मानव सुरक्षा रेटिंग हासिल कर ली है और क्रू एस्केप सिस्टम डिज़ाइन समय सीमा के भीतर अंतरिक्ष यात्रियों व सुरक्षा तंत्र सुनिश्चित करने हेतु बाध्य है।
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FAQs on Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): October 2023 UPSC Current Affairs - Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly

1. डिजिटल वर्ल्ड ऑफ कुकीज क्या है?
उत्तर. डिजिटल वर्ल्ड ऑफ कुकीज एक ऑनलाइन ट्रैकिंग टूल है जो वेबसाइटों द्वारा उपयोगकर्ताओं की गतिविधियों को ट्रैक करता है। यह ट्रैकिंग कुकीज के रूप में ज्ञात होता है और वेबसाइटों द्वारा उपयोगकर्ताओं को विशिष्ट विज्ञापन, सामग्री या सेवाओं की पेशकश करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
2. नोबेल पुरस्कार 2023 किस क्षेत्र में दिया जाएगा?
उत्तर. नोबेल पुरस्कार 2023 भौतिकी के क्षेत्र में दिया जाएगा। यह पुरस्कार वैज्ञानिक और शोधकर्ताओं को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रशंसा और पहचान करता है।
3. 'स्पेक्स 2030' क्या है?
उत्तर. 'स्पेक्स 2030' विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा शुरू की गई एक पहल है जो स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए विश्वव्यापी लक्ष्यों को स्थापित करती है। इसका उद्देश्य 2030 तक विश्वभर में स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।
4. भारत के अंतरिक्ष प्रयास क्या हैं?
उत्तर. भारत के अंतरिक्ष प्रयास विश्व को आगे बढ़ाने और वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा किए जाने वाले अंतरिक्ष मिशन हैं। इनमें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अधीन विभिन्न उपग्रहों का निर्माण, प्रक्षेपण और नियंत्रण शामिल होता है।
5. मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग क्या है?
उत्तर. मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग एक प्रौद्योगिकी है जिसमें जलमण्डल के ऊपरी तापमान और पानी की विषमता को मापने के लिए क्लाउड्स का उपयोग किया जाता है। यह जलमण्डल की स्वास्थ्य का मापन करने में मदद करता है और महत्वपूर्ण जलीय प्रक्रियाओं को समझने में सहायता प्रदान करता है।
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