UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly  >  Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): August 2023 UPSC Current Affairs

Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): August 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

लूनर लैंडिंग मिशन में चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रूस का लूना-25 चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिससे पूर्व सोवियत संघ द्वारा आखिरी लैंडिंग के 47 साल बाद चंद्रमा की सतह पर भेजा गया उसका पहला मिशन समाप्त हो गया।

  • भारत का चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने वाला पहला अंतरिक्ष यान बनने की राह पर है।
  • रूस का लूना-25 चंद्र अन्वेषण में स्पर्द्धा एवं दिलचस्पी दोनों दर्शाता है जिस कारण उसने लूना शृंखला को जारी रखने की योजना बनाई।

लूना-25 मिशन

  • परिचय:
    • लूना 25 मिशन, जिसे मूल रूप से लूना-ग्लोब (Luna-Glob) नाम दिया गया था, 1976 में शुरू की गई ऐतिहासिक लूना शृंखला में शामिल होने से पहले इसके विकास में दो दशकों से अधिक का समय लगा।
    • इस मिशन का उद्देश्य अंतरिक्ष अन्वेषण और भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में इसके महत्त्व को देखते हुए चंद्रमा की सतह तक रूस की पहुँच को सुरक्षित करना था।
      • रूस और चीन अंतर्राष्ट्रीय चंद्र अनुसंधान स्टेशन (International Lunar Research Station- ILRS) का नेतृत्व करते हैं, जबकि अमेरिका आर्टेमिस समझौते (Artemis Accords) का नेतृत्व करता है।
  • असफलता:
    • लूना-25 अंतरिक्ष यान को अपनी परिचालन सीमा को पार करते हुए एक तकनीकी खराबी का सामना करना पड़ा।
    • यह विफलता इसकी वृत्ताकार कक्षा को लैंडिंग-पूर्व निचली कक्षा में स्थानांतरित करने के प्रयास से जुड़ी हुई प्रतीत होती है।
    • इस मैन्यूवर (Maneuver) के दौरान अत्यधिक प्रणोद (Thrust) और दिशा में विचलन के कारण यान चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
      • इस घटना के दौरान राॅसकाॅसमाॅस का संपर्क टूट गया।
    • रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण रूस ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में देशों द्वारा संचालित उपग्रह ट्रैकिंग सिस्टम का उपयोग करने के अपने विशेषाधिकार खो दिये। राॅसकाॅसमाॅस केवल तीन स्टेशनों (दो रूस में और एक रूस द्वारा अधिकृत क्रीमिया मेंपर लूना-25 से संपर्क कर सकता था तथा अंतरिक्ष यान से सिग्नल प्राप्त कर सकता था।
    • रूस के विपरीत ISRO को चंद्रमा के चारों ओर चंद्रयान 3 को ट्रैक करने के लिये राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (National Aeronautics and Space Administration- NASA) और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (European Space Agency- ESA) से सहायता मिल रही है।

सफल चंद्र लैंडिंग में जटिलताएँ

  • चंद्रमा पर लैंडिंग में जटिलता:
    • चंद्र लैंडिंग में चंद्र कक्षा से चंद्रमा की सतह तक एक चुनौतीपूर्ण अवरोह शामिल होता है, जिसे अक्सर "15 मिनट्स ऑफ टेरर" कहा जाता है।
    • इस महत्तवपूर्ण चरण के दौरान अंतरिक्ष यान की गतिप्रक्षेपवक्र और ऊँचाई पर सटीक रूप से नियंत्रण की आवश्यकता के चलते जटिलता की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
    • मानव दल द्वारा छह सफल लैंडिंग सहित 20 से अधिक सफल लैंडिंग के बावजूद भी यह तकनीकी त्रुटि हुई।
    • सबसे सफल चंद्र लैंडिंग 1966 से 1976 के बीच एक दशक के भीतर हुई, अपवाद के रूप में पिछले दशक में तीन चीनी लैंडिंग हुई।
    • 1960 और 1970 के दशक के दौरान 42 प्रयासों में 50% सफलता दर के साथ चंद्र लैंडिंग तकनीक उतनी उन्नत नहीं थी।
    • समकालीन चंद्र मिशन सुरक्षित, लागत-कुशल और ईंधन-कुशल प्रौद्योगिकियों से तैनात किये जाते हैं लेकिन परीक्षण और सत्यापन की आवश्यकता होती है।
  • जटिल प्रणोदन:
    • चंद्र लैंडिंग में अवरोह से लेकर अंततः उतरने तक नियंत्रित मैन्यूवर (Maneuver) का एक क्रम शामिल होता है। गति और ऊँचाई को सटीक रूप से प्रबंधित करने के लिये सटीक प्रणोदन प्रणाली को नियोजित करना आवश्यक होता है।
  • तापीय चुनौतियाँ
    • चंद्रमा पर तापमान में अत्यधिक परिवर्तन, चिलचिलाती गर्मी से लेकर जमा देने वाली ठंड अंतरिक्ष यान प्रणालियों के लिये चुनौतियाँ पैदा करते हैं। ऐसे में उपकरण के व्यवस्थित संचालन हेतु तापीय सुरक्षा तथा इन्सुलेशन महत्त्वपूर्ण हैं।

चंद्र लैंडिंग प्रयासों में हालिया विफलताएँ और सफलताएँ

  • विफलताएँ :
    • भारतइज़रायलजापान और रूस के सभी मिशनों को लैंडिंग प्रक्रिया के दौरान चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप चंद्रमा की सतह पर कई दुर्घटनाएँ हुईं।
    • इसरो का चंद्रयान-2: यह यान किसी खराबी के कारण वांछित गति हासिल नहीं कर सका और मिशन असफल रहा।
    • बेरेशीट (इज़रायल), हकुतो-आर (जापान): इन मिशनों में विभिन्न प्रकार की खराबी के कारण लैंडिंग योजनाएँ बाधित हुई।
  • सफलताएँ:
    • चीन के चांग'ई-3, चांग'ई-4 और चांग'ई-5 मिशनों ने चंद्रमा पर सफल लैंडिंग की।

आगे की राह

  • चंद्रयान-2 के विफल होने के बाद भारत द्वारा चंद्रयान-3 लॉन्च किया जाना अपनी असफलताओं से सीखने के महत्त्व का सबसे नवीनतम उदाहरण है।
  • हालिया विफलताएँ चंद्रमा पर सॉफ्ट-लैंडिंग की जटिलता को दर्शाती हैं, साथ ही यह इस क्षेत्र में निरंतर प्रगति तथा चंद्र अन्वेषण के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिये अंतरिक्ष एजेंसियों के दृढ़ संकल्प को भी दर्शाती हैं।
  • इन प्रयासों से लिये गए सबक भविष्य में अधिक विश्वसनीय और सफल चंद्र लैंडिंग प्रौद्योगिकियों के विकास में निश्चय ही योगदान देंगे।

जीन संपादित सरसो

हाल ही में भारतीय वैज्ञानिकों ने पहली बार कम तीखी गंध वाली सरसों विकसित की है, जो कीट रोधी होने के साथ रोग प्रतिरोधी भी है।

  • यह गैर-आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) और ट्रांसजीन – मुक्त होने के साथ-साथ CRISPR/Cas9 जीन एडिटिंग पर आधारित है।
  • विदित हो कि , भारतीय सरसों के बीज में ग्लूकोसाइनोलेट्स (glucosinolates) का स्तर काफी अधिक होता है, जो सल्फर और नाइट्रोजन युक्त यौगिकों का एक समूह है।  यह सरसों तेल और भोजन में गंध को तीखा कर देता है। इस वजह से कई उपभोक्ता ऐसे तेल का सेवन करने से बचते हैं।
  • वैज्ञानिकों द्वारा विकसित कम ग्लूकोसाइनोलेट वाली सरसों GM या ट्रांसजेनिक पौधों के विपरीत जीनोम एडिटेड या GE हैं।  ग्लूकोसाइनोलेट्स का संश्लेषण सरसों के पौधों की पत्तियों और फली की वॉल में होता है। बीजों में उनका स्थानांतरण और ‘संचय ग्लूकोसाइनोलेट ट्रांसपोर्टर (GTR)’ जीन की क्रिया के माध्यम से होता है।
  • GTR1 और GTR2 के दो अलग-अलग वर्गों के अंतर्गत 12 ऐसे जीन हैं जिनमें से प्रत्येक की छह प्रतियां हैं। शोधकर्ताओं ने अधिक उपज देने वाली भारतीय सरसों की किस्म ‘वरुणा’ में 12 GTR जीन में से 10 को एडिट किया है।
  • उन्होंने जीन एडिटिंग टूल CRISPR/Cas9 का उपयोग किया जो एंजाइम के माध्यम से जीन के सटीक लक्षित स्थानों पर डीएनए को काटने के लिए “आणविक कैंची” (molecular scissors) के रूप में कार्य करता है।
  • सरसों की जीन एडिटिंग के लिए स्ट्रेप्टोकोकस पाइोजेन्स बैक्टीरिया (Streptococcus pyogenes bacteria) से प्राप्त Cas9 एंजाइम का उपयोग पहली पीढ़ी के पौधों में लक्षित जीन के डीएनए को काटने के लिए किया गया था, यह प्रोटीन बाद की पीढ़ियों में अलग हो जाता है।
  • इस तरह बाद में सरसो में कोई Cas9 प्रोटीन नहीं होता है और ये ट्रांसजीन – मुक्त होते हैं। यह शोध भारत में घरेलू तिलहन उत्पादन को बढ़ाने की क्षमता रखता है, जिससे आयातित वनस्पति तेलों पर देश की निर्भरता कम हो जाएगी।

CRISPR तकनीक

  • यह एक जीन एडिटिंग तकनीक है, जो Cas9 नामक एक विशेष प्रोटीन का उपयोग करके वायरस के हमलों से लड़ने के लिये बैक्टीरिया में प्राकृतिक रक्षा तंत्र की प्रतिकृति का निर्माण करती है।
  • यह आमतौर पर जेनेटिक इंजीनियरिंग के रूप में वर्णित प्रक्रिया के माध्यम से आनुवंशिक सामग्री को जोड़ने, हटाने या बदलने में सहायक होती हैं।
  • CRISPR तकनीक में बाहर से किसी नए जीन को जोड़ना शामिल नहीं है।

जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC)

  • गौरतलब है कि GM फसलों को वर्तमान में भारत में न केवल व्यावसायिक खेती के लिए बल्कि फील्ड ट्रायल और बीज उत्पादन के लिए भी सख्त “पर्यावरण रिलीज” नियमों का पालन करना होता है।
  • ऐसी रिलीज़ के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक विशेष जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (Genetic Engineering Appraisal Committee: GEAC) से मंजूरी लेनी पड़ती है।
  • GEAC की सिफारिश को मानना केंद्र सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं है। इस तरह अंतिम मंजूरी पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के हाथ में है।

कायिक आनुवंशिक वैरिएंट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जीनोम अनुक्रमण में हुई प्रगति में कैंसर के विकास से लेकर प्रतिरक्षा संबंधी समस्याओं, मानव स्वास्थ्य पर कायिक आनुवंशिक वैरिएंट (Somatic Genetic Variants) के प्रभाव के बारे में पता चला है, यह बीमारी का पता लगाने और उपचार रणनीति में नवाचार को बढ़ावा देने में काफी मददगार साबित हो सकता है।

कायिक आनुवंशिक वैरिएंट

  • परिचय:
    • कायिक आनुवंशिक वैरिएंट को कायिक उत्परिवर्तन के रूप में भी जाना जाता है, इसका आशय विशेष रूप से किसी व्यक्ति के शरीर की कोशिकाओं (कायिक कोशिकाओंके भीतर DNA अनुक्रम में परिवर्तन से है, जर्मलाइन कोशिकाएँ (शुक्राणु और अंडाणु कोशिकाओं) इसके अंतर्गत नहीं आती हैं।
    • कायिक आनुवंशिक उत्परिवर्तन जन्म के बाद विकास के दौरान होते हैं और माता-पिता से बच्चे में नहीं आते हैं।
  • कायिक उत्परिवर्तन में प्रगति
    • मानव जीनोम में 23 जोड़े गुणसूत्र होते हैं जो एक बच्चे को माता-पिता से विरासत में मिलते हैं, और ये हमारी आनुवंशिक पहचान का खाका तैयार करते हैं।
    • एक शुक्राणु कोशिका द्वारा अंडे की कोशिका के निषेचन के बाद परिणामी एकल कोशिका में माता-पिता दोनों के आनुवंशिक तत्त्व शामिल होते हैं।
    • विभिन्न विभाजनों के बाद यह प्रारंभिक कोशिका बड़े पैमाने पर बढ़ना शुरू करती है और अंततः मानव शरीर का निर्माण करने वाली अनगिनत यानी खरबों कोशिकाएँ बनाती है।
    • DNA प्रतिकृति की प्रक्रिया के दौरान त्रुटि-सुधार करने वाले प्रोटीन द्वारा त्रुटियों का समावेश उल्लेखनीय रूप से कम कर दिया जाता है। फिर भी कुछ न्यूनतम त्रुटि दरें कायिक आनुवंशिक उत्परिवर्तन के उद्भव में योगदान करती है।
      • कोशिकाएँ जीवन भर नवीनीकृत होती रहती हैं और जैसे-जैसे पुरानी कोशिकाओं को प्रतिस्थापित करती रहती हैं, त्रुटियाँ होती रहती हैं जिससे समय के साथ कायिक उत्परिवर्तन का क्रमिक संचय होता रहता है।
      • यही कारण है कि जैसे-जैसे लोगों की आयु बढ़ती हैशरीर के विभिन्न ऊतकों के बीच आनुवंशिक संरचना में अंतर  जाता है।
  • मानव स्वास्थ्य पर दैहिक आनुवंशिक वैरिएंट का प्रभाव:
    • कैंसर का पनपनादैहिक आनुवंशिक परिवर्तन कैंसर की अनियंत्रित कोशिका वृद्धि और विभाजन को बढ़ा सकते हैं जिससे ट्यूमर की बीमारी हो सकती है।
    • तंत्रिका संबंधी विकार: मस्तिष्क कोशिकाओं में संचित दैहिक उत्परिवर्तन तंत्रिका संबंधी स्थितियों में योगदान कर सकते हैं, जो संज्ञानात्मक(Cognitive) और प्रेरण/गतिक प्रकार्य को प्रभावित कर सकते हैं।
    • आयु बढ़ना/जरण और ऊतक प्रकार्य: आयु बढ़ने के साथ दैहिक उत्परिवर्तन का क्रमिक संचय ऊतक के कार्य को प्रभावित कर सकता है और आयु से संबंधित बीमारियों को बढ़ा सकता है।
    • प्रतिरक्षा प्रणाली की निष्क्रियता: दैहिक वैरिएंट प्रतिरक्षा कोशिका के विकास और कार्य को बाधित कर सकता है, जिससे ऑटोइम्यून विकार(autoimmune disorder) और प्रतिरक्षा की कमी(immunodeficiencies) हो सकती है।
  • मानव स्वास्थ्य उन्नति/वृद्धि के लिए दैहिक आनुवंशिक वैरिएंट का उपयोग:
    • रोग बायोमार्करदैहिक वैरिएंट रोगों के लिये नैदानिक (Diagnostic) और पूर्वानुमानित (Prognostic) मार्कर के रूप में काम कर सकते हैं।
    • विशिष्ट उत्परिवर्तन का पता लगाने से रोग का शीघ्र पता चलने और रोग की प्रगति की भविष्यवाणी करने में सहायता मिल सकती है।
    • परिशुद्ध चिकित्साकिसी व्यक्ति के दैहिक उत्परिवर्तन का ज्ञान व्यक्तिगत उपचार योजनाओं में मदद कर सकता है।
    • किसी रोगी की विशिष्ट आनुवंशिक संरचना के अनुसार उपचार करने से परिणामों में वृद्धि हो सकती है।
    • जरण और दीर्घजीवन: आयु बढ़ने से जुड़े दैहिक उत्परिवर्तन का अध्ययन आयु बढ़ने की प्रक्रिया और आयु से संबंधित बीमारियों पर प्रकाश डाल डालता है, जो संभावित रूप से स्वस्थ आयु बढ़ाने में बाधक हो सकता है।
    • आनुवंशिक रोग का समाधानकुछ मामलों में दैहिक उत्परिवर्तन सामान्य व्यक्ति में हानिकारक परिवर्तन लाता है, जिसे रिवर्टेंट मोज़ेसिज़्म (Revertant Mosaicism) के रूप में जाना जाता है।
      • उदाहरण के लिये विस्कॉट-एल्ड्रिच सिंड्रोम (Wiskott-Aldrich syndrome) के लगभग 10% मामलों में एक दुर्लभ आनुवंशिक प्रतिरक्षा क्षमता, रिवर्टेंट मोज़ेसिज्म पाई गई है, जिसके परिणामस्वरूप कई व्यक्तियों में बीमारी की गंभीरता कम हो गई है।

पोस्ट-क्वांटम क्रिप्टोग्राफी 

चर्चा में क्यों?

कंप्यूटिंग ने बैंकिंग से लेकर युद्ध क्षेत्र तक मानव सभ्यता के विभिन्न पहलुओं को परिवर्तित कर दिया है, क्वांटम कंप्यूटिंग के उद्गम ने भविष्य में कंप्यूटर सुरक्षा पर इसके प्रभाव के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।

क्वांटम कंप्यूटिंग

  • परिचय:
    • क्वांटम कंप्यूटिंग एक तेज़ी से उभरती हुई तकनीक है जो पारंपरिक कंप्यूटरों की तुलना में बहुत जटिल समस्याओं को हल करने हेतु क्वांटम यांत्रिकी के नियमों का उपयोग करती है।
    • क्वांटम यांत्रिकी भौतिकी की उपशाखा है जो क्वांटम के व्यवहार का वर्णन करती है जैसे- परमाणु, इलेक्ट्रॉन, फोटॉन और आणविक एवं उप-आणविक क्षेत्र।
    • यह अवसरों से परिपूर्ण नई तकनीक है जो हमें विभिन्न संभावनाएँ प्रदान करके भविष्य में हमारी दुनिया को आकार देगी।
    • यह वर्तमान के पारंपरिक कंप्यूटिंग प्रणालियों की तुलना में सूचना को मौलिक रूप से संसाधित करने का एक अलग तरीका है।
  • विशेषताएँ:
    • जबकि वर्तमान में पारंपरिक कंप्यूटर बाइनरी 0 और 1 स्थिति के रूप में जानकारी संग्रहीत करते हैं, क्वांटम कंप्यूटर क्वांटम बिट्स (क्यूबिट्स/Qubits) का उपयोग करके गणना करने के लिये प्रकृति के मौलिक नियमों का उपयोग करते हैं।
    • एक बिट के विपरीत एक क्यूबिट, जिसे या 1 होना चाहिये, राज्यों के संयोजन में हो सकता है जो तेज़ी से बड़ी गणनाओं की अनुमति देता है तथा उन्हें जटिल समस्याओं को हल करने की क्षमता प्रदान करता है जिसमें सबसे शक्तिशाली पारंपरिक सुपर कंप्यूटर भी सक्षम नहीं हैं।
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  • महत्त्व:
    • क्वांटम कंप्यूटर जानकारी में हेर-फेर करने के लिये क्वांटम मैकेनिकल घटना (Quantum Mechanical Phenomenon) का उपयोग कर सकते हैं और उनसे आणविक तथा रासायनिक अंत:क्रिया की प्रक्रियाओं पर प्रकाश डालनेजटिल समस्याओं का अनुकूल समाधान करने तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता की क्षमता को बढ़ावा देने की अपेक्षा की जाती है।
    • ये नई वैज्ञानिक खोजों, जीवन रक्षक औषधियों एवं आपूर्ति शृंखलाओं, लॉजिस्टिक्स और वित्तीय डेटा के मॉडलिंग में प्रगति का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।

क्वांटम कंप्यूटिंग की पोस्ट क्वांटम चिंताएँ

  • वर्तमान सुरक्षा तकनीकों में कमज़ोरियाँ:
    • वर्तमान सुरक्षा उपाय, जैसे कि RSA (रिवेस्ट-शमीर-एडलमैन/ Rivest- Shamir- Adleman), ECC (एलिप्टिक कर्व्स क्रिप्टोग्राफी/Elliptic Curves Cryptography) और डिफी-हेलमैन की एक्सचेंज (Diffie-Hellman Key Exchange), "कठिन" गणितीय समस्याओं पर निर्भर करते हैं जिनका समाधान शोर के क्वांटम एल्गोरिदम (Shor's Quantum Algorithm) द्वारा किया जा सकता है।
      • वर्ष 1994 में पीटर शोर ने एक क्वांटम एल्गोरिदम विकसित किया जो (कुछ संशोधनों के साथ) इन सभी सुरक्षा उपायों का आसानी से समाधान कर सकता है।
    • क्वांटम कंप्यूटिंग में विकास के साथ ही मौजूदा सुरक्षा उपाय कमज़ोर होते जाएंगेजिससे वैकल्पिक तकनीकों की खोज की आवश्यकता होगी।
  • मापनीयता और व्यावहारिकता:
    • विशेष हार्डवेयर की आवश्यकता और सख्त पर्यावरणीय बाधाओं के कारण क्वांटम क्रिप्टोग्राफी सिस्टम को बड़े नेटवर्क पर लागू करना एवं मापना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
  • लंबी दूरी पर क्वांटम की (Key) वितरण:
    • क्वांटम की डिस्ट्रीब्यूशन (Quantum Key Distribution) जैसी क्वांटम क्रिप्टोग्राफी प्रणालियों को उस दूरी के संदर्भ में सीमाओं का सामना करना पड़ता है जिस पर सिक्योरिटी की (Security keys) वितरित की जा सकती हैं। क्वांटम क्रिप्टोग्राफी शोधकर्त्ताओं के लिये इन Keys के वितरण की सीमा का विस्तार एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।
  • क्वांटम नेटवर्क अवसंरचना/बुनियादी ढाँचा
    • क्वांटम क्रिप्टोग्राफी के विकास के लिये एक मज़बूत क्वांटम नेटवर्क बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना एक जटिल कार्य है।
    • इसमें क्वांटम सूचना के सुरक्षित प्रसारण को सुनिश्चित करने के लिये अन्य घटकों के बीच विश्वसनीय क्वांटम रिपीटर्सक्वांटम राउटर और क्वांटम मेमोरी का विकास करना शामिल है।
  • हाइब्रिड विश्व में क्वांटम क्रिप्टोग्राफी:
    • हाइब्रिड संचार परिदृश्य, जिसमें क्वांटम और पारंपरिक संचार प्रणालियाँ सह-अस्तित्व में हैं, पोस्ट-क्वांटम क्रिप्टोग्राफी अधिक प्रचलित होने के साथ ही विकसित होने लगेंगी।
    • इन प्रणालियों के बीच निर्बाध एकीकरण और सुरक्षित संचार सुनिश्चित करना एक चुनौती है।

आगे की राह

  • पोस्ट-क्वांटम क्रिप्टोग्राफी में क्वांटम हमलों के प्रति कमज़ोरियों का मुकाबला करने के लिये वैकल्पिक क्रिप्टोग्राफिक तकनीकों पर शोध किया जाता है।
  • संभावित रूप से भविष्य की क्वांटम खामियों का फायदा उठाने के लिये संदेशों को रिकॉर्ड करने वाले हमलावरों के कारण इस क्षेत्र का महत्त्व और अधिक बढ़ गया है।
  • चूँकि व्यावहारिक और खतरनाक क्वांटम कंप्यूटर का विकास अभी दशकों दूर है, क्वांटम भविष्य के लिये तैयार रहना अभी से ही आवश्यक है। संवेदनशील डेटा और डिजिटल बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा के लिये सरकारों, संगठनों तथा व्यक्तियों को पहले से ही क्वांटम हमलों के खिलाफ सुरक्षित प्रौद्योगिकियों के विकास पर कार्य करना चाहिये।
  • पोस्ट-क्वांटम क्रिप्टोग्राफी के क्षेत्र में तेज़ी से विकास हो रहा है, जिसके लिये क्वांटम हमलों का सामना करने में सक्षम ठोस सुरक्षा उपायों को विकसित करने के लिये निरंतर अनुसंधान और सहयोगात्मक प्रयासों की आवश्यकता है। क्वांटम युग में डेटा को सुरक्षित रखने तथा डिजिटल बुनियादी ढाँचे की अखंडता को बनाए रखने हेतु क्वांटम-सुरक्षित प्रौद्योगिकियों के लिये एक सक्रिय एवं सावधानी पूर्वक नियोजित संक्रमण काफी महत्त्वपूर्ण होगा।

अंतरिक्ष मलबा


चर्चा में क्यों?

हाल ही में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के तट पर इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) के रॉकेट का मलबा मिला है।

  • नवंबर 2022 में चीन के लॉन्ग मार्च 5B रॉकेट का बड़ा भाग अनियंत्रित होकर दक्षिण-मध्य प्रशांत महासागर में गिर गया। इस रॉकेट को तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन के तीसरे और अंतिम मॉड्यूल (मापांक) में प्रयोग किया गया था।
  • मई 2021 में 25 टन के चीनी रॉकेट का एक बड़ा भाग हिंद महासागर में मिला था।

अंतरिक्ष मलबा

  • परिचय:
    • अंतरिक्ष मलबा पृथ्वी की कक्षा में उन मानव निर्मित वस्तुओं को संदर्भित करता है जो अब किसी उपयोगी उद्देश्य की पूर्ति नहीं करती हैं।
    • अंतरिक्ष मलबे में प्रयोग किये गए रॉकेट, निष्क्रिय उपग्रहअंतरिक्ष निकायों के टुकड़े और एंटी-सैटेलाइट सिस्टम (ASAT) से उत्पन्न मलबा शामिल होता है।
  • अंतरिक्ष मलबे से खतरा:
    • समुद्री जीवन को ख़तराइसके महासागरों में गिरने की संभावनाएं अधिक हैं क्योंकि पृथ्वी की सतह का 70% भाग महासागरों से घिरा हुआ है, बड़ी वस्तुएँ (मलबा) समुद्री जीवन के लिये खतरा और प्रदूषण का स्रोत बन सकती हैं।
  • संचालित उपग्रहों के लिये खतरा:
    • तैरता हुआ अंतरिक्ष मलबा परिचालन उपग्रहों हेतु संभावित खतरा है क्योंकि इन मलबों से टकराने से उपग्रह नष्ट हो सकते हैं।
    • केसलर सिंड्रोम अंतरिक्ष में वस्तुओं और मलबे की अत्यधिक मात्रा को संदर्भित करता है।
  • कक्षीय स्लॉट की कमी:
    • विशिष्ट कक्षीय क्षेत्रों में अंतरिक्ष मलबे का संचय भविष्य के मिशनों हेतु वांछित कक्षीय स्लॉट की उपलब्धता को सीमित कर सकता है।
  • अंतरिक्ष स्थिति के प्रति जागरूकता:
    • अंतरिक्ष मलबे की बढ़ती मात्रा उपग्रह संचालकों एवं अंतरिक्ष एजेंसियों को अंतरिक्ष में वस्तुओं की कक्षाओं को सटीक रूप से ट्रैक करने तथा भविष्यवाणी करने हेतु अधिक चुनौतियाँ उत्पन्न करती है।

अंतरिक्ष गतिविधियों से निपटने में चुनौतियाँ

  • विभिन्न देशों के द्वारा अधिक उपग्रह प्रक्षेपण:
    • संयुक्त राज्य अमेरिकाचीनभारत और जापान जैसे देश मानव मिशन, चंद्र अन्वेषण (Lunar Exploration) और संसाधन दोहन समेत कई अंतरिक्ष गतिविधियों में सक्रिय रूप से लगे हुए हैं।
    • विगत दशक में उपग्रह प्रक्षेपण में तीव्रता से वृद्धि हुई है। जिसमें वर्ष 2013 में 210, वर्ष 2019 में 600, वर्ष 2020 में 1,200 और वर्ष 2022 में 2,470 उपग्रह प्रक्षेपित हुए हैं।
    • अंतरिक्ष संसाधन अन्वेषण पर एक सहमत अंतर्राष्ट्रीय ढाँचे की कमी के कारण क्षुद्रग्रहों और ग्रहों पर पाए जाने वाले मूल्यवान धातुओं की खोज में अंतर्राष्ट्रीय स्पर्द्धा और रुचि में काफी वृद्धि हुई है।
  • समन्वय एवं अंतरिक्ष यातायात प्रबंधन:
    • अंतरिक्ष यातायात का वर्तमान समन्वय विभिन्न देशों और क्षेत्रीय संस्थाओं द्वारा अलग-अलग मानकों तथा प्रथाओं को अपनाने के कारण खंडित है।
    • समन्वय की इस कमी से अंतरिक्ष में संभावित टकराव और दुर्घटनाएँ हो सकती हैं, जिससे परिचालन अंतरिक्ष यान के लिए जोखिम पैदा हो सकता है और अंतरिक्ष में मलबा बढ़ सकता है।
  • तकनीकी चुनौतियाँ:
    • अंतरिक्ष मिशनों को विकसित करने और तैनात करने के लिये अत्याधुनिक तकनीक की आवश्यकता होती है, जो महंगी हो सकती है और इसमें तकनीकी विफलताओं का खतरा हो सकता है। अंतरिक्ष एजेंसियों और निजी कंपनियों को अपने मिशन की सफलता सुनिश्चित करने हेतु इन चुनौतियों का समाधान करना होगा।
  • भू-राजनैतिक तनाव
    • जैसे-जैसे देश अंतरिक्ष यात्राओं में हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं, बाहरी अंतरिक्ष में भू-राजनैतिक तनाव की संभावना बढ़ रही हैं।
    • प्रतिस्पर्धात्मक हित और क्षेत्रीय दावे कूटनीतिक चुनौतियाँ पैदा कर सकते हैं और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में बाधा डाल सकते हैं।

आगे की राह

  • अंतरिक्ष मलबे (Space Debris) को ट्रैक करने और निगरानी करने की क्षमता में सुधार से परिचालन उपग्रहों तथा मानव अंतरिक्ष मिशनों के लिये उत्पन्न जोखिम को कम करने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
  • एकल-उपयोग रॉकेटों के बजाय पुनप्रयोज्य प्रक्षेपण वाहनों/रोकेटों का उपयोग करने से प्रक्षेपणों से उत्पन्न नए मलबे की संख्या को कम करने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
  • अधिक टिकाऊ सामग्रियों का उपयोग करने तथा अंततः डी-ऑर्बिटिंग के लिये उपग्रहों को डिज़ाइन करने से दीर्घावधि में उत्पन्न मलबे की संख्या को कम किया जा सकता है।

भारतीय आबादी में आनुवंशिक विविधत

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन जेनेटिक्स के एक अध्ययन में भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों में बड़ा आनुवंशिक अंतर पाया गया है।

अध्ययन की पद्धति

  • शोधकर्त्ताओं ने आनुवंशिक अध्ययन के लिये लगभग 5,000 व्यक्तियों का DNA एकत्र किया, जिनमें मुख्यतः भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के लोग शामिल थे। इस समूह में कुछ मलय, तिब्बती और अन्य दक्षिण-एशियाई समुदायों के लोगों के DNA भी शामिल थे।
  • इसके बाद उन्होंने DNA में परिवर्तन, DNA के उपलब्ध न होने, दो अलग-अलग DNA होने की स्थिति दर्शाने वाले क्षेत्रों की पहचान करने के लिये संपूर्ण-जीनोम अनुक्रमण का प्रयोग किया।

शोध के प्रमुख बिंदु

  • अंतर्विवाही प्रथाएँ:
    • भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न समुदायों के व्यक्तियों के बीच मेलजोल बहुत कम है।
    • जाति-आधारित, क्षेत्र-आधारित और सजातीय (करीबी रिश्तेदारविवाह जैसी अंतर्विवाही प्रथाओं ने सामुदायिक स्तर पर आनुवंशिक पैटर्न को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाई है।
    • एक आदर्श स्थिति में जनसंख्या में यादृच्छिक संभोग (random mating) का गुण होता है, जिससे आनुवंशिक विविधता और वेरिएंट/भिन्नता की आवृत्ति कम होती है, जो विकारों से जुड़ी होती है।
  • क्षेत्रीय रुझान:
    • ताइवान जैसी अपेक्षाकृत बहिष्कृत आबादी की तुलना में दक्षिण एशियाई समूह और इसमें स्थित दक्षिण-भारतीय एवं पाकिस्तानी उपसमूह ने संभावित सांस्कृतिक कारकों के कारण आनुवंशिक समयुग्मज की उच्च आवृत्ति का प्रदर्शन किया है।
    • सामान्यतः मनुष्य के पास प्रत्येक जीन की दो प्रतियाँ होती हैं। जब किसी व्यक्ति के पास एक ही प्रकार की दो प्रतियाँ होती हैं, तो इसे सम्युग्मज जीनोटाइप कहा जाता है।
    • प्रमुख विकारों से जुड़े अधिकांश आनुवंशिक वेरिएंट प्रकृति में अप्रभावी होते हैं जो केवल दो प्रतियों में मौज़ूद होने पर ही अपना प्रभाव डालते हैं। (विभिन्न प्रकार का होना - अर्थात् विषमयुग्मजी होना-सुरक्षात्मक होता है।)
    • एक अनुमान के अनुसार दक्षिण-भारतीय और पाकिस्तानी उपसमूहों में उच्च स्तर की अंतःप्रजनन दर थी, जबकि बंगाली उपसमूह में काफी कम अंतःप्रजनन देखा गया।
    • ऐसे वेरिएंट, जो जीन के कामकाज को बाधित कर सकते थे, न केवल दक्षिण एशियाई समूह में अधिक संख्या में पाए गए, बल्कि कुछ अनोखे वैरिएंट भी मोज़ूद थे जो यूरोपीय व्यक्तियों में नहीं पाए गए।
  • समयुग्मक वेरिएंट की उच्च आवृत्ति का जोखिम:
    • दुर्लभ समयुग्मक वेरिएंट की उपस्थिति से हृदय रोगमधुमेहकैंसर और मानसिक विकार जैसे रोगों का खतरा बढ़ गया है।

आनुवंशिक वैविध्य पर अन्य अध्ययन

  • वर्ष 2009 में, सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, हैदराबाद में कुमारसामी थंगराज के समूह द्वारा नेचर जेनेटिक्स में एक अध्ययन से पता चला कि भारतीयों के एक छोटे समूह को अपेक्षाकृत कम उम्र में हृदय विफलता का खतरा होता है।
  • ऐसे व्यक्तियों के DNA में हृदय की लयबद्ध धड़कन के लिये महत्त्वपूर्ण जीन में 25 आधारभूत-युग्मक (base-pair) की कमी थी (वैज्ञानिक इसे 25-आधारभूत-युग्मक का विलोपन कहते हैं)।
  • यह विलोपन भारतीय आबादी के लिये असामान्य था तथा दक्षिण पूर्व एशिया में कुछ समूहों को छोड़कर, यह अन्यत्र नहीं पाया गया था।
  • यह विलोपन लगभग 30,000 वर्ष पूर्व हुआ था, जब कुछ ही समय बाद लोगों ने उपमहाद्वीप में बसना शुरू किया था और आज लगभग 4% भारतीय आबादी इससे प्रभावित है।
    • ऐसी आनुवांशिक नवीनताओं की पहचान करने से जनसंख्या-विशिष्ट स्वास्थ्य जोखिमों और कमज़ोरियों को समझने में मदद मिलती है।

आनुवंशिक वैविध्य पर ऐसे अध्ययनों का क्या महत्त्व है?

  • अध्ययनों से पता चला है कि विशिष्ट आनुवंशिक विविधताएँ भारतीय आबादी के स्वास्थ्य से संबद्ध हैं, ये प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं के लिये अधिक प्रभावी हस्तक्षेप का कारण बन सकती हैं।
  • देश में किये गए आनुवंशिक अनुसंधान, वंचित समुदायों को बहुराष्ट्रीय निगमों और अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थानों द्वारा संभावित दुरुपयोग से बचा सकते हैं।

भारतीय जीनोम के विस्तृत मानचित्र का महत्त्व

  • भारत की अविश्वसनीय विविधता के कारण आर्थिक, वैवाहिक तथा भौगोलिक कारकों सहित विभिन्न कारणों से भारतीय जीनोम के विस्तृत मानचित्र की जानकारी आवश्यक है।
  • ऐसा मानचित्र स्वास्थ्य असमानताओं के आनुवंशिक आधार को समझने एवं जनसंख्या स्वास्थ्य हस्तक्षेपों का मार्गदर्शन करने में सहायता प्रदान कर सकता है।
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FAQs on Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): August 2023 UPSC Current Affairs - Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly

1. लूनर लैंडिंग मिशन में क्या चुनौतियाँ हैं?
उत्तर: लूनर लैंडिंग मिशन में कई चुनौतियाँ होती हैं। कुछ मुख्य चुनौतियाँ शामिल हैं: विज्ञान और तकनीकी चुनौतियाँ, वायुमंडलीय चुनौतियाँ, संचार चुनौतियाँ, ट्रैकिंग और नेविगेशन चुनौतियाँ, और भूतपूर्व चुनौतियाँ।
2. लूनर लैंडिंग मिशन में कायिक आनुवंशिक वैरिएंट क्या है?
उत्तर: कायिक आनुवंशिक वैरिएंट एक तकनीकी चुनौती है जो लूनर लैंडिंग में उपयोग होती है। इसमें अंतरिक्ष यान को लगातार यानी आगे जाने के बजाय उड़ान लगाई जाती है, जिससे उसे अपने नियंत्रण और गतिशीलता को बढ़ाने की अनुमति मिलती है।
3. पोस्ट-क्वांटम क्रिप्टोग्राफी क्या है?
उत्तर: पोस्ट-क्वांटम क्रिप्टोग्राफी एक नई तकनीक है जो क्रिप्टोग्राफी में आगे की प्रगति के लिए विकसित की गई है। यह तकनीक क्वांटम कंप्यूटिंग के उपयोग को ध्यान में रखकर डिजिटल सुरक्षा को सुदृढ़ करने का एक प्रयास है।
4. भारतीय आबादी में आनुवंशिक विविधतविज्ञान और प्रौद्योगिकी का मतलब क्या होता है?
उत्तर: भारतीय आबादी में आनुवंशिक विविधतविज्ञान और प्रौद्योगिकी एक अद्वितीय क्षेत्र है जिसमें आनुवंशिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी का अध्ययन और अनुसंधान किया जाता है। यह आबादी में विभिन्न जातियों और समुदायों के बीच आनुवंशिक संबंधों को समझने और उन्हें समर्थन करने के लिए बनाया गया है।
5. अगस्त 2023 में क्या होगा?
उत्तर: अगस्त 2023 में भारतीय आबादी में आनुवंशिक विविधतविज्ञान और प्रौद्योगिकी का एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम होने की संभावना है। इस कार्यक्रम में विभिन्न विषयों पर संशोधन पेपर्स, प्रस्तुतियाँ, और गतिविधियों का आयोजन किया जाएगा।
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