विभिन्न भारतीय संवत् वेदांग ज्योतिष: ‘वेदांग ज्योतिष’ में उल्लिखित समय गणना के लिए भारत की सबसे प्राचीन पद्धति है, जिसमें वेदों का ज्योतिष की दृष्टि से अध्ययन किया गया है। वेदांग ज्योतिष का प्रामाणिक समय यद्यपि अनिश्चित है, फिर भी यह 400 ई. पू. से पहले का नहीं है। इसका प्रत्येक युग या चक्र 360 दिन के पांवर्षों एवं एक माह (30 दिन) का होता है। इस प्रकार सौर गणना पर आधारित सम्पूर्ण दिनों की संख्या हुई 1830 दिन। बुद्ध संवत्: श्रीलंका की गणना के अनुसार बुद्ध संवत् 544 ई. पू. में प्रारम्भ हुआ। बुद्ध के निर्वाण की वास्तविक तिथि 483 ई. पूर्व है जबकि चीनी कैंटन परम्परा के अनुसार यह तिथि 486 ई. पू. है। महावीर संवत्: महावीर स्वामी द्वारा 527 ई. पू. में आरम्भ इस संवत् का प्रयोग प्रायः ‘जैन धर्म’ से सम्बन्धित गणनाओं में ही किया गया। कलि संवत्: एक काल्पनिक गणना, जिसे पांचवी शताब्दी में आर्यभट्ट ने प्रमाणिक स्वरूप प्रदान करके ज्योतिष सम्बन्धी ग्रंथों में प्रयुक्त करते हुए 18 फरवरी, 3102 ई. पू. से इसका आरम्भ माना, जिसे सामान्यतः ‘महाभारत युद्ध’ का समय माना जाता है। ग्रामण (दक्षिणी आर्काट) से प्राप्त एक चोल अभिलेख पर अंकित कलि वर्ष 4,044 या 14,77,037 कलि दिन की संगति शनिवार 14 जनवरी, 943 ई. के साथ स्थापित होती है। इस संवत् का प्रयोग दक्षिण भारत में अब भी नवीनतम पंचांग बनाने में किया जाता है। सप्तर्षि संवत्: सप्तर्षि संवत् (लौकिक संवत्) का आरम्भ 25 कलि वर्ष के पश्चात् (3,076 ई. पू. से) माना जाता है। अलबरुनी के समय (11वीं शताब्दी) यह कश्मीर और इसके पड़ोसी क्षेत्रों में प्रचलित था। विक्रम संवत्: यह 58 ई. पू. से आरम्भ होता है तथा कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य ने उज्जयिनी में शकों को पराजित करने के उपलक्ष्य में इसकी शुरुआत की। शक संवत्: सर्वाधिक प्रसिद्ध कुषाण राजा कनिष्क द्वारा 78 ई. में आरम्भ किया गया। भारत सरकार भी इसी संवत् का प्रयोग करती है। दक्षिण भारत में यह बहुत ही लोकप्रिय संवत् है, जहां यह ‘शालिवाहन शकब्द’ के नाम से जाना जाता है। कल्चुरी संवत्: 248 ई. से प्रचलित यह संवत् सबसे पहले आभीरों द्वारा प्रयुक्त हुआ। इसके बाद चेदि या कल्चुरियों द्वारा प्रयुक्त होने पर उन्हीं के नाम से इस संवत् को जाना जाने लगा। गुप्त संवत्: गुप्त संवत् (319.320 ई.) की शुरुआत सम्भवतः गुप्त वंश के शासक चंद्रगुप्त प् ने की थी। हर्ष संवत्: इसकी शुरुआत कान्यकुब्ज (कन्नौज) के राजा हर्षवर्धन द्वारा 606 ई. में की गयी। लक्ष्मण संवत्: भ्रमवंश इसे बंगाल के सेनवंशीय राजा लक्ष्मण सेन द्वारा स्थापित माना जाता है। नेवाड़ी संवत्: नेपाल का नेवाड़ी संवत् 24 अक्टूबर, सन् 879 ई. को आरम्भ हुआ। मालाबार का कौलम संवत्: 825 ई. से आरम्भ। |
स्मरणीय तथ्य
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1. गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था क्या थी? |
2. गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था के इतिहास में कौन-कौन से प्रमुख तत्व शामिल थे? |
3. UPSC परीक्षा में गुप्तोत्तर काल की कृषिक व्यवस्था से सम्बंधित प्रश्न कैसे पूछे जा सकते हैं? |
4. गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था क्यों महत्वपूर्ण थी? |
5. गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था का प्रभाव क्या रहा? |
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