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सिंचाई - भारतीय भूगोल | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

सिंचाई

  • भारत का कुल क्षेत्रफल 32.8 करोड़ हेक्टेअर है जिसके 92.2% भाग के भूमि उपयोग सम्बन्धी आंकड़े उपलब्ध है। 
  • वर्तमान समय में देश में शुद्ध बोया गया क्षेत्र 16.2 करोड़ हेक्टेअर है।
  • इस प्रकार कुल क्षेत्रफल का लगभग 51% भाग कृषि के अन्तर्गत आता है जबकि लगभग 4% भूमि पर चारागाह, 21% भूमि पर वन तथा 24% भूमि बंजर अथवा बिना किसी उपयोग की है।
  • 24% बंजर भूमि में 5% परती भूमि भी शामिल है जिसमें प्रति वर्ष फसलें न बोकर तीसरे या पांचवें वर्ष कृषि की जाती है, जिससे भूमि की उर्वरता संचित हो सके।
  • इस शुद्ध बोये गये 51% भूभाग के मात्र 28% भाग अर्थात् 4.5 करोड़ हेक्टेअर भूमि पर ही सिंचाई की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध है जबकि देश का समस्त सिंचित क्षेत्र 8 करोड़ हेक्टेअर है।
  • इस प्रकार कुल कृषि भूमि के लगभग 72% भाग पर की जाने वाली कृषि वर्षा पर ही निर्भर करती है और कुल सिंचित क्षेत्रफल के आधे से अधिक भाग पर सिंचाई के छोटे साधनों कुएं, तालाब, झीलों, जलाशय, बाँध, नलकूप, मिट्टी के कच्चे बाँध, नल तथा जल स्त्रोतों  द्वारा सिंचाई की जाती है। शेष भाग की सिंचाई बड़े साधनों यथा नहरों, नालियों आदि के माध्यम से की जाती है।

जल संसाधन क्षमता

  • देश की नदी प्रणाली में 1869 घन कि.मी. पानी होने का अनुमान है। इसमें से अनुमान है कि 690 घन कि.मी. पानी इस्तेमाल में लाया जा सकता है। 
  • इसके अलावा देश में भूमिगत जल का समुचित अक्षय भंडार है और इसके 432 घन कि.मी. होने का अनुमान है।
  • 1955 में प्रति व्यक्ति पानी उपलब्धता करीब 5277 घन मीटर थी जो अब घटकर 1970 घन मीटर रह गई है। 

सिंचाई विकास

  • खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ाने के लिए सिंचाई की वर्तमान पद्धतियों को सुव्यवस्थित बनाने के साथ-साथ अन्य सिंचाई सुविधाओं का विस्तार मुख्य नीति के अन्तर्गत आता है। 
  • बड़ी, मंझोली और लघु-सिंचाई परियोजनाओं तथा कमान क्षेत्र के व्यवस्थित विकास के जरिए सिंचाई सहायता उपलब्ध करायी जाती है। 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना शुरू होने के समय सिंचाई की जो क्षमता 226 लाख हेक्टेयर वार्षिक थी, वह आठवीं पंचवर्षीय योजना के अंत (1992-97) तक बढ़कर लगभग 894.4 (अनन्तिम) हेक्टेयर हो गई ।

लघु सिंचाई 

  • भूमिगत एवं सतह जल संबंधी वे सभी परियोजनाएं लघु सिंचाई योजनाओं के अंतर्गत आती हैं जिनमें 2000 हेक्टेयर तक कृषि-योग्य कमान क्षेत्र का विकास किया जाता है। 
  • भूमिगत जल का विकास किसानों द्वारा व्यक्तिगत और सहकारिता प्रयासों के जरिए किया जाता है। 
  • इसके लिए किसानों को निजी बचत और संस्थागत वित्तीय सहायता से धन जुटाया जाता है। सतह जल संबंधी लघु सिंचाई योजनाओं केे लिए आमतौर पर सार्वजनिक क्षेत्र के परिव्यय से धन का प्रबंध किया जाता है।

बाढ़ प्रबंध

  • देश के 3280 हेक्टेयर कुल भौगोलिक क्षेत्र में से 400 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को बाढ़ की आशंका वाला क्षेत्र माना गया है जिसमें से 320 लाख हेक्टेयर क्षेत्र ऐसा है जिसे बाढ़ से बचाया जा सकता है।

भूमिगत जल विकास

  • भारत में प्राचीनकाल से भूमिगत जल का उपयोग सिंचाई और घरेलू उपयोग के लिए किया जा रहा है। इस समय सत्तर प्रतिशत से अधिक आबादी घरेलू आवश्यकताओं के लिए भूमिगत जल का उपयोग करती है तथा आधी से अधिक सिंचाई इसी स्रोत से होती है।
  • अनुमान है कि भारत में कुल आपूरित भूमिगत जल करीब 431.8850 लाख हेक्टेयर मीटर प्रति वर्ष (करीब 432 अरब घन मीटर) है। 
  • करीब 80 लाख हेक्टेयर मीटर प्रतिवर्ष पानी का इस्तेमाल घरेलू एवं औद्योगिक आवश्यकताओं के लिए किया जाता है। 
  • अनुमान है कि सिंचाई के लिए लगभग 324.7264 लाख हेक्टेयर प्रतिवर्ष  पानी उपलब्ध है। 
  • केंद्रीय भूमिगत जल बोर्ड के आकलन के अनुसार अब तक उपलब्ध भूमिगत जल संसाधनों के 32 प्रतिशत हिस्से का विकास किया जा चुका है।

केंद्रीय संगठन

  • केंद्रीय जल आयोग को देशभर में बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई नौवहन और जल विद्युत उत्पादन के लिए जल संसाधनों के नियंत्रण, संरक्षण एवं उपयोग की योजनाओं को संबद्ध राज्य सरकारों के साथ विचार-विमर्श करके उनके बारे में पहल करने, तालमेल रखने और उन्हें आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई है।
  • केंद्रीय मृदा तथा पदार्थ अनुसंधान केंद्र, नई दिल्ली नदी घाटी परियोजनाओं की निर्माण सामग्री और मृदा यांत्रिकी के क्षेत्र में क्षेत्र अन्वेषण, प्रयोगशाला जांच तथा भू-यांत्रिकी के क्षेत्र में मौलिक और प्रायोगिक अनुसंधान से सम्बद्ध है।
  • अनुसंधान केंद्र मुख्य रूप से केँद्र सरकार के विभिन्न विभागों, राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के सलाहकार और परामर्शदाता के रूप में काम करता है। 
  • अनुसंधान केँद्र की गतिविधियों में मृदा-यांत्रिकी, फाउन्डेशन इंजीनियरी, कंकरीट टेक्नोलाॅजी, शैल यांत्रिकी निर्माण सामग्री प्रौद्योगिकी, उपकरण, भू-भौतिकी संबंधी जांच, रसायन विश्लेषण और भू-संश्लेषण शामिल हैं।

अधीनस्थ संगठन

  • पुणे स्थित केंद्रीय जल और विद्युत अनुसंधान केंद्र जल और ऊर्जा संसाधन विकास तथा जल परिवहन जैसे क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की परियोजनाओं के लिए व्यापक अनुसंधान एवं विकास सहायता उपलब्ध कराता है। 
  • इस केंद्र ने पिछले पाँच दशकों में जहाज, जलीय गतिशीलता, फोटो इलास्टीसिटी, पन-बिजली, मशीनरी, तट-अभियांत्रिकी, जलीय उपकरण, भू-विज्ञान, जलीय संरचनाएं और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे चुने हुए क्षेत्रों में परियोजनाएं शुरू की हैं। 
  • पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से मूलभूत ढांचे के समुचित विकास को देखते हुए नदी और सागर जल-अभियांत्रिकी के गणितीय प्रतिरूपण और ”सिंचाई नहर प्रणालियों के स्वतः संचालन“ जैसे क्षेत्रों में काम करने के लिए मार्ग प्रशस्त हो गया है।
  • इस अनुसंधान केंद्र को 1971 में ”ऐस्केप“ (एशिया प्रशान्त आर्थिक सामाजिक आयोग) की क्षेत्रीय प्रयोगशाला के रूप में मान्यता मिली।
  • इसकी अनुसंधान गतिविधियों में से करीब 80 प्रतिशत केंद्र और राज्यों की विभिन्न एजेंसियों के जरिए सरकारी धन से चलाई जा रही परियोजनाओं के अध्ययन से सम्बद्ध हैं।

केंद्रीय भूमि जल बोर्ड

  • पुनर्मूल्यांकन सर्वेक्षणों के अंतर्गत जलक्रांति, भूमिगत जल का स्तर गिरने और भूमिगत जल प्रदूषण जैसे विशेष समस्याओं वाले क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाती है। देश में 15,000 पर्यवेक्षण केंद्रों के नेटवर्क के माध्यम से अब भूमिगत जल स्तरों और जल-गुणवत्ता की निगरानी पर विशेष बल दिया जा रहा है। 
  • जल संसाधनों के वैज्ञानिक प्रबंध को बढ़ावा देने के लिए, विशेषकर समस्या वाले क्षेत्रों में, बोर्ड ने भूमिगत जल के पुनर्भरण को बढ़ावा देने की प्रायोगिक परियोजनाएं शुरू की हैं जो कर्नाटक, महाराष्ट्र, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, संघशासित प्रदेश चंडीगढ़ और कुछ अन्य राज्यों में शुरू की गई है।
  • भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा दिसम्बर, 1966 में आदेश का पालन करते हुए पर्यावरण और वन मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी करके केंद्रीय भूमि जल बोर्ड को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत एक प्राधिकरण बनाया है जिसका उद्देश्य भूमिगत जल प्रबंधन और विकास का नियमन और नियंत्रण करना है।
  • इस प्राधिकरण को जनवरी, 1997 में गठित किया गया, लेकिन उसने 1998-99 में काम करना शुरू किया।  

प्रमुख बहुउद्देश्यीय नदी घाटी परियोजनाएं

  • भाखड़ा नांगल परियोजना - यह परियोजना पंजाब, राजस्थान तथा हरियाणा राज्यों की संयुक्त परियोजना है। 
  • यह पंजाब में सतलज नदी पर अनुकूल स्थान पर बनाई गई है, जहाँ नदी की धारा के दोनों ओर पहाड़ियाँ एक-दूसरे के काफी निकट आ गई है। यह भारत का सबसे ऊंचा बाँध है। 
  • सिखों के दसवें गुरू गोविन्द सिंह के नाम पर बाँध के पीछे बने जलाशय का नाम गोविन्द सागर रखा गया है। 
  • यह जलाशय हिमाचल प्रदेश में है। इस बाँध से 1,100 किमी लम्बी नहरें निकाली गई है। इन नहरों की 3,400 किमी लम्बी जल वितरिकाएं है जिनसे 14.6 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है। 
  • भाखड़ा बाँध से 13 किलोमीटर नीचे नांगल में दूसरा बाँध बनाया गया है। यहाँ गंगुवाल तथा कोटला पर विद्युत गृह बनाए गए है। 
  • इससे 1,204 मेगावाट विद्युत का उत्पादन प्रतिवर्ष होता है।
  • व्यास परियोजना - यह पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान राज्यों की संयुक्त परियोजना है, जो व्यास नदी पर है। इसमें व्यास-समतल लिंक तथा पोंग (मुकरियन जालंधर के निकट) बाँध का निर्माण किया गया है। 
  • इस बाँध के द्वारा पंजाब तथा राजस्थान की 4 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है। इसके विद्युत गृहों से 660 मेगावाट तथा 240 मेगावाट विद्युत उत्पन्न की जाती है।
  • इन्दिरा गांधी (राजस्थान नहर) परियोजना -  इन्दिरा गांधी नहर परियोजना पूर्व राजस्थान नहर परियोजना के नाम से जानी जाती थी। यह नहर पंजाब में सतलुज एवं व्यास नदियों के संगम पर स्थित हरिके बाँध से निकाली गई है। हरिके बाँध से रामगढ़ तक इस नहर की लम्बाई 649 किमी है। 
  • इसके द्वारा उत्तरी-पश्चिमी राजस्थान, गंगानगर, बीकानेर, बाड़मेर तथा जैसलमेर जिलों में सिंचाई की जा सकती है। यह नहर पंजाब, हरियाणा व राजस्थान में 14.5 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई करती है।
  • कोसी परियोजना - कोसी नदी में आने वाली विनाशकारी बाढ़ की रोकथाम के उद्देश्य से इस परियोजना के लिए भारत और नेपाल में 1954 में समझौता हुआ था। 
  • इस नदी पर दो बाँध बनाए गए हैं जो बाढ़ को रोकने तथा 8.48 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई व 20 मेगावाट विद्युत की सुविधा प्रदान करने की क्षमता रखते है।
  • हीराकुड परियोजना - यह परियोजना उड़ीसा राज्य में महानदी पर सम्बलपुर से 14 किमी की दूरी पर स्थित है। जिसमें तीन बाँध हीराकुड, तिरकपाड़ा और बरोज का निर्माण किया गया है। 
  • इससे महानदी के डेल्टा प्रदेश की बाढ़ पर नियंत्राण किया जा सका है। इससे 2.51 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई तथा 27.2 मेगावाट विद्युत उत्पादित होगी। हीराकुड बाँध 4.8 किमी लम्बा विश्व का सबसेे लम्बा बाँध है।
  • तुंगभद्रा परियोजना - यह आन्ध्र प्रदेश तथा कर्नाटक राज्य की संयुक्त परियोजना है। इसमें तुंगभद्रा नदी पर मल्लपुरम् के निकट 2,441 मीटर लम्बा और 49.38 मीटर ऊंचा एक बाँध निर्मित है। 
  • इससे 3.92 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई तथा इस पर निर्मित दो विद्युत गृह 72.000 किलोवाट विद्युत प्रदान कर रहे हैं। 
  • नागार्जुन परियोजना - यह परियोजना आन्ध्र प्रदेश में नदी-कोंडा गाँव के पास कृष्णा नदी पर स्थित है। बौद्ध विद्वान नागार्जुन के नाम पर इसका नाम नागार्जुन सागर रखा गया है। 
  • आज जहाँ पर सागर में जल भरा है, पहले वहाँ अत्यन्त सुन्दर वास्तुकला के प्राचीन मंदिर थे, जिनके एक-एक पत्थर को हटाकर नए स्थानों पर ले जाया गया, फिर वहाँ इन्हीं पत्थरों से बिल्कुल पहले जैसे ही मन्दिरों का निर्माण किया गया। 
  • यहाँ 92 मीटर ऊँचा तथा 1,450 मीटर लम्बा बाँध बनाया गया है। इससे 8.95 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होगी।
  • चम्बल परियोजना - यह परियोजना मध्य प्रदेश एवं राजस्थान राज्यों की संयुक्त परियोजना है। इसके अन्तर्गत राणाप्रताप सागर बाँध, गाँधी सागर बाँध तथा जवाहर सागर बाँध बने है। 
  • कोटा बेराज तथा गांधी सागर बाँध का कार्य सन् 1960 में पूर्ण हो गया। द्वितीय चरण में राणा प्रताप सागर बाँध का कार्य पूर्ण हो गया है।
  • तृतीय चरण में जवाहर सागर बाँध और 99 मेगावाट शक्ति का विद्युत-गृह तैयार हुआ।
  • दामोदर घाटी परियोजना-इस परियोजना की रूपरेखा अमरीका की टेनिसी घाटी योजना के अनुरूप तैयार की गई है। बाढ़ को रोकना इस योजना का मुख्य उद्देश्य था। 
  • इसमें तिलैया, कोनार, माइथान तथा पंचेत हिल पर बाँध बने है और बोकारो, दुर्गापुर तथा चन्द्रपुर पर विद्युत-गृहों का निर्माण किया गया है जिनसे 1,077 मेगावाट तापीय और 104 मेगावाट जल विद्युत पैदा होती है। 
  • इस परियोजना से 5.15 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है।
  • काकड़ापार परियोजना - यह गुजरात राज्य में सूरत से 80 किमी की दूरी पर ताप्ती नदी पर स्थित है। इसका निर्माण कार्य 1963 में पूरा हो चुका है। 
  • इसमें 621 मीटर लम्बा और नदी तल से 14 मीटर ऊँचा बाँध बनाया गया है। इससे 505 किमी और 83 किमी लम्बी दो नहरें निकाली गई है जिनसे 2.27 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की जाती है।
  • कोयना परियोजना - यह महाराष्ट्र राज्य में कोयना नदी पर स्थित है, इस पर 250 मीटर ऊँचा बाँध बनाया गया है। 
  • मचकुण्ड परियोजना - यह उड़ीसा व आन्ध्र प्रदेश राज्यों की संयुक्त परियोजना है। यह परियोजना मचकुण्ड नदी पर आन्ध्रप्रदेश तथा उड़ीसा राज्यों की सीमा पर स्थित है।
  • मयूराक्षी परियोजना - यह परियोजना पश्चिम बंगाल की मयूराक्षी नदी पर स्थित है। 
  • इसके द्वारा लगभग 2.51 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है। इस परियोजना पर बने जल-विद्युत गृह से 4 मेगावाट विद्युत उत्पन्न की जाती है।
  • हंसदेव-बंगो परियोजना - यह परियोजना मध्य प्रदेश राज्य में हंसदेव नदी पर बनी है। इस योजना के अन्तर्गत 85 मीटर ऊँचा पत्थर का बांध बनेगा। इस बाँध के जल से औद्योगिक उपयोग के अतिरिक्त 3.28 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकेगी।
  • उकाई परियोजना - यह परियोजना गुजरात की सूरत नगर से 116 किमी दूर उकाई गाँव के निकट ताप्ती नदी पर बनाई गई है।
  • इस पर 4,928 मीटर लम्बा और 68.6 मीटर ऊँचा एक बाँध है जिससे 1.53 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है और 300 मेगावाट क्षमता का विद्युत संयंत्र लगेगा।
  • सहारावसी जल विद्युत परियोजना - यह परियोजना कर्नाटक राज्य में जोरा प्रपात के निकट बनी है। यह एशिया की सबसे बड़ी विद्युत परियोजना है। इसका निर्माण व्यय 86 करोड़ रुपया है।
  • तवा परियोजना - यह परियोजना मध्य प्रदेश में नर्मदा की सहायक तवा नदी पर होशंगाबाद में बनी है। इसके अन्तर्गत 1,627 मीटर लम्बा एक बाँध बनाने की योजना है, जिससे 3.32 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकेगी।
  • पोंग बाँध - इसे व्यास बाँध भी कहते हैं। व्यास नदी पर तलवारा के निकट हिमाचल प्रदेश में 116 मीटर लम्बा और 12 मीटर ऊँचा यह बाँध बनाया गया है। इसका निर्माण पंजाब, हरियाणा, राजस्थान राज्यों के सहयोग से किया गया है।
  • माताटीला बाँध - उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के सहयोग से उत्तर प्रदेश के झाँसी जिले के पास बेतवा नदी पर बाँध बनाया गया है। इससे दो नहरें निकाली गई है जिनसे हमीरपुर और जालौन जिलों की लगभग 2.64 लाख एकड़ भूमि सींचीं जाती है।
  • फरक्का बैराज परियोजना - यह परियोजना पश्चिम बंगाल राज्य के -मुर्शिदाबाद जिले में कलकत्ता बन्दरगाह को साफ करने तथा हुगली नदी के जल के खारेपन को दूर करने के उद्देश्य से बनाई गई है।
  • कुण्डा परियोजना - यह तमिलनाडु राज्य की जल-विद्युत परियोजना है, जिसकी विद्युत उत्पादन की प्रारम्भिक क्षमता 425 मेगावाट थी जिसे कुछ दिन पूर्व बढ़ाकर 535 कर दिया गया है।
  • सबरिगिरि परियोजना - केरल राज्य की इस विद्युत परियोजना की संस्थापित क्षमता 300 मेगावाट है।
  • बालिमेला परियोजना - यह उड़ीसा राज्य की एक जल-विद्युत परियोजना है। इसकी संस्थापित क्षमता 360 मेगावाट है।
  • सलाल परियोजना - यह जम्मू-कश्मीर राज्य की जल-विद्युत परियोजना है, जो चिनाब नदी पर बनी है। 
  • कालिन्दी परियोजना - यह कर्नाटक राज्य की जल-विद्युत परियोजना है, जिसकी विद्युत उत्पादन क्षमता 270 मेगावाट है। इदुक्की परियोजना केरल राज्य की इस विद्युत परियोजना की उत्पादन क्षमता 390 मेगावाट है। नर्मदा घाटी परियोजना नर्मदा नदी का उद्गम स्थल स्थल मध्य प्रदेश में है और यह गुजरात होती हुई 1,312 किमी की यात्रा करके अरब सागर में गिरती है।
  • इन बाॅधों में से दो बाँध नर्मदा (इन्दिरा) सागर और सरदार सरोवर सबसे प्रमुख है।
  • इस बाँध के फलस्वरूप 1.23 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है।
  • सरदार सरोवर बाँध गुजरात के भरोच जिले में बादगाम के निकट बनाया गया।
  • इससे 15 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है।
  • पोचम्पाद परियोजना - यह परियोजना आंध्र प्रदेश की पोचमपाद नदी पर स्थित है। इसकी सिंचाई क्षमता 2.24 लाख हेक्टेयर है।
  • इसकी क्षमता 1.53 लाख हेक्टेयर क्षेत्र सींचने की है।
  • सोन परियोजना - बिहार की यह परियोजना सोन बाँध परियोजना के विस्तार के रूप में स्वीकार की गई। इसकी कुल क्षमता 1.61 लाख हेक्टेयर भूमि सिंचित करने की है।
  • माही परियोजना - यह गुजरात राज्य में माही नदी पर स्थित है। इसमें दो बाँध-प्रथम बाँध वानकबोरीरी गाँव के निकट तथा दूसरा बाँध कदाना गाँव के निकट स्थित है।
  • माही बजाज सागर परियोजना - राजस्थान के बाँसवाड़ा जिले में माही नदी पर बोरखेड़ा गाँव के निकट 1959-60 में इस परियोजना का कार्य प्रारम्भ हुआ था। इस परियेाजना को तीन भागों में बाँटा  गया है।
  • प्रथम चरण में बोरखेड़ा के निकट 3,109 मीटर लम्बा बाँध बनाया गया है।द्वितीय चरण में सिंचाई के लिए दो नहरें निकाली गई है और तृतीय चरण में 25-25 मेगावाट की दो विद्युत इकाइयाँ स्थापित की गई है।
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FAQs on सिंचाई - भारतीय भूगोल - भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

1. सिंचाई क्या है?
उत्तर: सिंचाई एक प्रक्रिया है जिसमें पानी को उचित प्रमाण में फसलों या पौधों की वृद्धि और पोषण के लिए उपयोग किया जाता है। यह भूमि को नमीपूर्ण करने, उच्चतम उत्पादकता दर और व्यापारिक मूल्य देने के लिए किया जाता है।
2. सिंचाई क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: सिंचाई महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पानी के उपयोग की सुरंग बनाता है और खेती में उच्चतम उत्पादकता और लाभ की संभावना प्रदान करता है। यह भूमि को नमीपूर्ण करके पोषक तत्वों की पुनर्संचयन करता है और तापमान और जलवायु बदलावों के प्रभाव को कम करता है।
3. सिंचाई के लिए कौन-कौन से तरीके हैं?
उत्तर: सिंचाई के लिए विभिन्न तरीके हो सकते हैं, जैसे कि नदी से पानी का उपयोग, तालाबों का निर्माण, कुँआं का खुदाई, जलाशयों का निर्माण और वर्षा जल का संचयन। इन तरीकों का उपयोग केवल वर्षा के समय ही नहीं किया जा सकता है, बल्कि वर्षा के बाद भी सिंचाई की जरूरत होती है।
4. सिंचाई का भारतीय भूगोल पर क्या प्रभाव होता है?
उत्तर: सिंचाई भारतीय भूगोल पर प्रभाव डालती है क्योंकि भारत एक विविधतापूर्ण देश है जिसमें विभिन्न जलवायु और धरातलों के अलग-अलग भाग होते हैं। सिंचाई भूमि की नमी को बढ़ाती है और जलवायु बदलावों के प्रभाव को कम करती है, जिससे खेती में उच्चतम उत्पादकता दर और लाभ की संभावना होती है।
5. सिंचाई किस प्रकार भूमि को नमीपूर्ण करती है?
उत्तर: सिंचाई भूमि को नमीपूर्ण करने के लिए पानी को बुवाई, नदी या तालाब से लाया जा सकता है। इसके अलावा, वर्षा जल का संचयन भी किया जा सकता है, जिससे भूमि उचित प्रमाण में पानी से संचालित होती है। सिंचाई के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग करके भूमि को नमीपूर्ण करने का प्रयास किया जाता है।
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