In Hindi essay on pratibha palayan?
प्रतिभा किसी एक ही देश की परिरक्षित निधि नहीं है । प्रत्येक देश के अपने-अपने क्षेत्र के प्रवीण व्यक्ति होते हैं, जैसे वैज्ञानिक, प्रौद्योगिकी के विशेषज्ञ, साहित्य अथवा कलाओं के विद्वान, चित्रकार, कलाकार आदि । मुक्त असाधारण प्रतिभा सम्पन्न ऐसे पुरूष और स्त्रियाँ अपनै देश की प्रगति और समृद्धि में योगदान तो देते ही हैं परन्तु अपनी विशिष्टता वाले क्षेत्र में भी उत्कर्षता लाते हैं ।
यह कोई असामान्य बात नही है कि इन योग्य व्यक्तियों में से कुछ लोगों को अपने ही देश में कोई सन्तोषजनक काम नहीं मिल पाता या किसी न किसी कारण से वे अपने वातावरण से तालमेल नहीं बिठा पाते । ऐसी परिस्थितियों में ये लोग बेहतर काम की खोज के लिए अथवा अधिक भौतिक सुविधाओं के लिए दूसरे देशों में चले जाते हैं ।
इस निर्गमन अथवा प्रवास को हाल के वर्षो में ”प्रतिभा पलायन” की संज्ञा दी गई है । अपने कुशल और प्रतिभा-सम्पन्न व्यक्तियों की हानि से विकासशील देश सब से अधिक प्रभावित हुए हैं । इसका मुख्य कारण यह है कि विकासशील देशों में वेतन और अन्य सुविधाओं के रूप में प्राप्त होने वाले लाभ कम हैं ।
यह हो सकता है कि प्रत्येक मामलें में इन प्रतिभा सम्पन्न लोगों के लिए वेतन में रहने वाली रकम का इतना महत्व न भी हो जितना कि अपने आपको उच्चतम पूर्ति की भावना प्रदान करने, अपनी योग्यता को बढ़ाने अथवा अपनी प्रतिभा का विकास करने के लिए उचित सुविधाओं का प्राप्त होना है ।
अत: एक वैज्ञानिक या चिकित्सा अथवा ज्ञान के किसी अन्य क्षेत्र का विशेषज्ञ कम वेतन और अन्य कठिनाइयों को भी सह सकता है, यदि उसकी योग्यता को अच्छी मान्यता मिले, उसके काम का ठीक मूल्यांकन हो तथा विशेषत: उसकी विशेषता वाले क्षेत्र में अनुसंधान और सुधार के अच्छे अवसर प्राप्त हों । इस प्रकार अच्छी प्रकार से साधन सम्पन्न प्रयोगशाला अथवा पुस्तकालय राष्ट्रीय प्रतिभाओं में से अधिकांश को अपनी मातृभूमि छोड़ने से रोक देंगे चाहे विदेशों में कितना अधिक वेतन क्यों न मिले।
कीसी देश के मस्तिष्क को लगातार पोष, पुन: पूर्ति और उन्नति की आवश्यकता होती है । पैसे में यद्यपि बहुत आकर्षण होता है फिर वह इन महामानवों को सदा के लिए कुछ सीमाओं में बांध कर नहीं रख सकता । उन्हें अपनी प्रतिभा को परिपक्वता तक पहुँचाने में सहायक की आवश्यकता होती है तथा वे ईश्वर-प्रदत्त-योग्यता को परिपूर्णता तक ले जाना चाहते हैं ।
यद्यपि भौतिक सम्पदा बहुत बड़ा आकर्षण होता है परन्तु जिस आवश्यकता की पूर्ति ये लोग करना चाहते है उसका यह एक तुच्छ भाग ही है । जब कोई वैज्ञानिक अपने देश को छोड़ता है और किसी दूसरे देश को अपना लेता है तो उसकी इस कारवाई की प्रेरक वे आशाएं है जो उसके स्वप्नों को पूरा करेंगी, उसकी महत्वाकांक्षाओं के मार्ग को प्रशस्त करेगी ।
व्यक्ति अधिक धन कमाने के लिए विदेश में चला जाता है क्योंकि उसका अपना देश उसके मन की इच्छाओं की पूर्ति के मार्ग में बहुत से कानूनी तथा राजनैतिक प्रतिबन्ध लगाता है । साधनों और अवसरों के अभाव ने विकासशील देशों के योग्य व्यक्तियों को इस बात के लिए उत्प्रेरित किया है कि वे बेहतर अवसरों की खोज में संयुक्त राज्य अमेरिका तथा जापान, हांगकांग और सिंगापुर के उन्मुक्त राजनैतिक वातावरण में चलें जाए ।
दूसरी और विकसित देशों के ऐसे लोग बहुत ही कम होंगे जो अपना देश छोड़ कर विकासशील देशों में गए होंगे । नि:संदेह ऐसे उदाहरण मिलते हैं जहाँ विकसित देशों के लोग धन के लोभ में विकासशील देशों में आए ताकि प्राकृतिक साधनों तथा खनिज संपदा की खोज की जाए परन्तु उनकी खोज विकासशील देशों के प्रतिभाशाली लोगों के उद्देश्यों से हमेशा भिन्न थी ।
विकसित देशों के रहन-सहन के ऊँचे स्तर की चमक-दमक ने विकासशील क्षेत्रों के लोगों को सदा ही अत्यधिक आकृष्ट किया हे और प्रतिभाशाली लोग और विशेषज्ञ भी इस मोह-जाल से अपने आप को नहीं बचा पाए । इसका परिणाम यह हुआ कि विकासशील देशों के अधिकांश प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति रहन-सहन के इस स्तर को प्राप्त करने तथा कारों, रेफ्रिजरेटरों, दूरदर्शन आदि जैसी उपभोक्ता वस्तुओं को प्राप्त करने में प्रसन्नता का अनुभव करने लगे जो कि विकसित देशों के एक साधारण नागरिक को भी उपलब्ध होती है ।
अब प्रश्न यह है कि इस प्रतिभा पलायन का प्रभाव हमारी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर क्या पड़ा है और इस पलायन को रोकने के लिए कौन से कदम उठाए जाने चाहिए । इसके उत्तर में यही कहा जा सकता है कि उस प्रतिभा पलायन को तभी भारी हानि माना जा सकता है यदि बाहर जाने वाले इन व्यक्तियों का उपयोग राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और विकास के लिए किया जा सकता हो ।
परन्तु यदि उन की प्रतिभा का उनके देश में उचित उपयोग नही किया जा सकता तो देश के लिए यह बेहतर होगा कि इन प्रतिभा-सम्पन्न लोगों को बाहर जा कर अपने भाग्य का स्वयं निर्माण करने दिया जाए । ऐसी स्थिति में यह तथाकथित ”प्रतिभा पलायन” वास्तव में ”प्रतिभा का अतिरेक” बन जाता है ।
केवल इसलिए कि वे एक गरीब देश से संबद्ध है । उनकी क्षमताओं को कूड़े में फेंक दिया जाए, यह ठीक नहीं होगा । यदि वह राष्ट्र जिसके वे नागरिक हैं इन प्रतिभाशाली व्यक्तियों का सर्वोत्तम उपयोग नही कर सकता तो इसमें कोई बुराई नही कि विश्व के दूसरे देश उनकी प्रतिभा और क्षमताओं से लाभ उठा सके ।
प्रतिभा पलायन से संबद्ध आर्थिक समस्याओं को आसानी से हल नही किया जा सकता । जहाँ सरकार को इन प्रतिभासम्पन्न पुरूषों और महिलाओं को ऐसी प्रकार की सुविधाएं मुहैया करने का प्रयास करना चाहिए, वहां इन लोगो को भी पारस्परिकता की भावना को स्वीकार करना चाहिए और इसका महत्व समझना चाहिए ।
इन प्रतिभाशाली व्यक्तियों को अपने देश को अधिक प्यार और श्रद्धा की दृष्टि से देखने का प्रयास करना चाहिए और पहला अवसर प्राप्त होते ही इसे छोड़ कर नहीं भाग जाना चाहिए । यहाँ पर अन्याय, असमानता और पक्षपात हो सकता और कोई भी देश यह दावा नहीं कर सकता कि इन बुराइयों को बिल्कुल समाप्त कर दिया गया है परन्तु उनको यह याद रखना है कि वे प्रबुद्ध लोग है ।
उनका यह कर्तव्य है कि वे दूसरों का नेतृत्व और मार्गदर्शन करें न कि अपने को दबाया हुआ समझे और शिकायतें करते रहें । जिन लोगों ने देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी थी, उन्हें भी सामान्य लोगों से अधिक यातनाएँ और अपमान सहने पड़े थे ।
इसके अलावा देश को छोड़ने वाले बुद्धिजीवी लोगों को इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि उन की मातृभूमि ही एक ऐसा स्थान है जहाँ पर वे गौरव और सम्मान के उच्चतम शिखर तक जा सकते हैं और संरक्षण भी प्राप्त कर सकते है । विदेशों में अधिक वेतन और रहन-सहन का स्तर ऊँचा होने के बावजूद उनको वास्तव में समाज से बहिष्कृत ही समझा जाएगा । जिस स्नेह और सद्-भाव की आशा वे अपने देश में कर सकते हैं उसकी प्रतिपूर्ति विदेशों में प्राप्त होने वाले वेतन की बड़ी-बड़ी रकमों तथा अन्य सुख सुविधाओं मे नहीं हो सकती है ।
विकासशील देशों के लिए यह भी मुश्किल है कि वे अलग-अलग इकाइयों के लिए उचित राशियों की व्यवस्था करें चाहे वे व्यक्ति हो या सामग्री । जब उत्पादन अधिक होने लगेगा तभी मांगकर्ताओं को अधिक माँग करनी चाहिए परन्तु उस स्थिति के आने से पहले देश के हर व्यक्ति का यह कर्तव्य हो जाता है कि वे इसकी उन्नति के लिए कार्य करें ।
यदि वह अधिक कुछ नहीं कर सकता तो कम से कम नागरिक और राजनैतिक अधिकारों के लिए कार्य करें जिन्हें प्राप्त करना उनके देश के नागरिक का अधिकार है । देशभक्ति एक स्वाभाविक मनोभाव है जिसे बाहर से नहीं लादा जा सकता । यदि देश को छोड़कर जाने वाले प्रतिभाशाली व्यक्तियों को अपने देश से तनिक भी प्यार है तो उन्हें दूसरे देशों में विदेशी के रूप में रहने के लिए और अपने देश और अधिकारों को नहीं छोड़ना चाहिए ।
यदि वे ऐसा नहीं करते तो उनकी मातृभूमि का कुछ नहीं बिगड़ेगा क्योंकि यदि किसी विकासशील देश के ऐसे प्रतिभाशील लोग चले जाते है जिनका वह देश कोई भी उपयोग नही कर सकता तो उनके उनके जाने से उस देश को किसी प्रकार की भौतिक हानि नही होती ।
जब देश आर्थिक तथा औद्योगिक दृष्टि से आगे बढ़ता है, तो नई प्रतिभाए अंकुरित हो जाएगी और वे अपने देश को नही छोड़ना चाहेगी क्योंकि उस समय उनका देश स्वयं भी विशेष प्रतिभा वाले लोगों को बेहतर सुविधाएं देने की स्थिति में हो जाएगा । इस प्रकार यद्यपि बाहर जाने वाले प्रतिभाशाली व्यक्तियों के दृष्टिकोण में कुछ वजन है और फिर भी उनकी यह कारवाई युक्ति संगत दिखाई नहीं देती ।
In Hindi essay on pratibha palayan?
**प्रतिभा पलायन पर हिंदी निबंध**
**परिचय:**
प्रतिभा पलायन एक ऐसी स्थिति है जब कोई व्यक्ति अपनी प्रतिभा, कार्यक्षमता या दक्षता के कारण अपने देश से बाहर जाना चाहता है। ये एक गंभीर मुद्दा है जो आजकल बहुत सामान्य हो गया है। इस निबंध में हम प्रतिभा पलायन के कारणों, प्रभावों और समाधानों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
**कारण:**
- रोजगार की अवस्था: अपनी व्यक्तिगत और पेशेवर विकास के लिए लोग अक्सर प्रतिभा पलायन करते हैं। उन्नति के अवसरों की कमी भी इसका कारण होती है।
- अवसरों की खोज: कुछ लोग अपनी प्रतिभा के लिए अधिक अवसरों की तलाश में बाहर जाना चाहते हैं। यह एक बड़ी मुद्दा है जो विदेशों में अध्ययन या कार्य करने के कारण लोग प्रतिभा पलायन करते हैं।
- विदेशी नौकरी की आकर्षण: विदेशी नौकरी सामरिक वेतन, सुविधाओं और प्रगति की संभाव
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