चित्ते तथा वाचि यदि अवक्रता भवेद्, तत् महात्मानः किम् आहुः?a)समत्वम्b)...
श्लोक में 'समत्वम्' शब्द का प्रयोग किया गया है जो अवक्रता का परिणाम है।
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चित्ते तथा वाचि यदि अवक्रता भवेद्, तत् महात्मानः किम् आहुः?a)समत्वम्b)...
समत्वम् का अर्थ
समत्वम् का अर्थ है समानता या संतुलन। जब चित्त और वाचि (मन और वाणी) में अवक्रता या विकृति होती है, तो इसका प्रभाव व्यक्ति के मानसिक संतुलन पर पड़ता है। महात्मा, जो कि उच्चतम नैतिकता और ज्ञान के प्रतीक होते हैं, वे इस बात को महत्व देते हैं कि व्यक्ति को अपने मन और वाणी में समत्व बनाए रखना चाहिए।
महात्माओं का दृष्टिकोण
महात्माओं का मानना है कि:
- मन की स्थिति: यदि मन में अशांति और विकृति है, तो यह व्यक्ति के विचारों और कार्यों को प्रभावित करता है।
- वाणी का महत्व: वाणी को नियंत्रित करना आवश्यक है, क्योंकि यह हमारी सोच और आचरण का प्रतिनिधित्व करती है।
- ध्यान और साधना: ध्यान और साधना के माध्यम से व्यक्ति मन को नियंत्रित करके समत्व की स्थिति प्राप्त कर सकता है।
महत्वपूर्ण बिंदु
- संवेदनशीलता: समत्व का अभ्यास व्यक्ति को संवेदनशील बनाता है, जिससे वे परिस्थितियों को बेहतर तरीके से समझ पाते हैं।
- आंतरिक शांति: समत्व से व्यक्ति को आंतरिक शांति मिलती है, जो जीवन में संतुलन और खुशी लाती है।
- सकारात्मक प्रभाव: जब व्यक्ति समत्व में रहता है, तो इसका सकारात्मक प्रभाव उसके आस-पास के लोगों पर भी पड़ता है।
निष्कर्ष
इस प्रकार, यदि चित्त और वाचि में अवक्रता होती है, तो महात्मा समत्व को प्राथमिकता देते हैं। यह जीवन में संतुलन और शांति के लिए आवश्यक है।